लाश / मधुकर सिंह

Gadya Kosh से
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महंगाई और भ्रष्टाचार से जनता त्रस्त है। चारों तरफ जनता का हंगामा है। अशांति और विरोध है। लोग जगह-जगह प्रधानमंत्री का पुतला-दहन कर रहे हैं। भूखे-नंगों की टोलियां पागल हो गई हैं। प्रधानमंत्री का बयान मीडिया में आता है- मेरे खिलाफ मेरे विरोधियों की साजिश चल रही है। इनके पास कोई मुद्दा नहीं रह गया है। इनके साथ सरकार सख्ती से पेश आएगी। जमाखोरों, कालाबाजारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू हो चुकी है। महंगाई-भ्रष्टाचार कहां नहीं है? हमारे यहां कम है। अमरीका-चीन में हमसे ज्यादा है। हर जगह है। हम विदेशी बैंकों से सबके खाता जमाकर सरकारी खजाने में डाल देंगे। किसके पास कितना काला धन है, इसका खुलासा अपने आप हो जाएगा।

जनता बेमतलब पागल हो गई है। विपक्ष ने उसे बहका दिया है। जनता पागल हो गई है। प्रधानमंत्री की कुर्सी अडिग है। भूकंप आ जाए तो बात दूसरी है। प्रधानमंत्री हिले तो जनता भी धराशायी हो जाएगी।

जनता सड़कों पर उतर आई है। महंगाई, बेकारी और भ्रष्टाचार के मूल पर वार कर रही है। संसद में इन सवालों पर बहस चाहती है। सड़क से संसद तक हिल रहा है। इतने में मीडिया की खबर आती है कि प्रधानमंत्री की हत्या हो चुकी है।

प्रधानमंत्री आपातकाल लागू करने का विधेयक लाना चाहते हैं। विरोधी दल इसका विरोध कर रहे हैं। सड़क से संसद तक शोर थम नहीं रहा है। बढ़ता ही जा रहा है।

प्रधानमंत्री राजधानी से उड़े और अपनी हत्या का मुआयना करने घटना-स्थल पर पहुंच गए। उन्होंने बड़े गौर से अपनी लाश को देखा। वे मुस्कुराते हुए बोले- ‘‘नहीं, नहीं। यह लाश मेरी नहीं है। यह लाश तो विपक्षी दल के नेता की है। मैं जिंदा हूं। मेरी प्यारी जनता, मैं जिंदा हूं।’’

संसद हक्का-बक्का थी। संसद से सड़क तक हंगामा लौट आया था। विपक्ष सकते में था। विपक्षी नेता, अपनी लाश पहचानने घटना-स्थल पर रवाना हुए। उन्होंने लाश को चारों तरफ से देखा। कहा, ‘‘यह लाश मैं कतई नहीं हूं। प्रधानमंत्री खुद को मुझे बता रहे हैं।’’

विपक्ष ने संसद चलने नहीं दी। बहस दूसरी दिशा में बदल चुकी थी।

‘‘तुम्हारी लाश है।’’

‘‘मेरी नहीं, तुम्हारी’’

‘‘तुम्हारी’’

‘‘तुम झूठे हो।’’

‘‘हम नहीं, तुम हो।’’

दोपहर तक ऐसा ही चलता रहा।

अध्यक्ष ने उस दिन के लिए संसद स्थगित कर दी। सरकार आपातकाल की मुद्रा में आ गई।

पुलिस ने लाश से घेराबंदी उठा ली थी। नाक पर रूमाल रखकर लोग आ-जा रहे थे।

देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था। कई दिनों से पड़ी लाश से बदबू आ रही थी। महामारी फैलने का अंदेशा था। नगर निगम की गाड़ी उस बदबूदार लाश को उठाने के लिए अभी तक नहीं आई थी। जनता की परेशानी बढ़ती जा रही थी। वह चीख पड़ी- यह तुम दोनों की मिली-जुली लाश है, तुम दोनों की।