लिखे जो खत तुझे सितारे बन गए ! / जयप्रकाश चौकसे

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लिखे जो खत तुझे सितारे बन गए !
प्रकाशन तिथि : 08 अक्तूबर 2012


विधु विनोद चोपड़ा 'चिठ्ठीयां' नामक प्रेम-त्रिकोण बनाने जा रहे हैं और खबरचियों के अनुसार इसकी प्रेरणा उनकी अपनी प्रेमकथा से ली गई है। ज्ञातव्य है कि पुणे फिल्म संस्थान में प्रशिक्षित विधु चोपड़ा ने अपनी सहपाठी और फिल्मों की संपादक रेणु सलूजा से प्रेम विवाह किया था। रेणु को संपादन के लिए चार राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे और वे अनेक फिल्मों का संपादन करती रही हैं। कहा जाता है कि सुधीर मिश्रा से भी उनकी मित्रता रही तथा उनके बीच पनपते प्रेम को देखकर विनोद चोपड़ा अलग हट गए। उनके तलाक के बावजूद रेणु सलूजा विधु विनोद चोपड़ा की फिल्मों का ताउम्र संपादन करती रहीं। उनकी मृत्यु कैंसर से हुई और विधु विनोद चोपड़ा ने रिश्तों की दरार के बाद भी उनकी सेवा की और इलाज पर धन भी खर्च किया। यह विधु विनोद चोपड़ा का कमाल है कि किसी के साथ मतभेद होने के बाद भी अगर मनुष्य को काम आता है, तो उन्होंने उसके साथ काम करने से इनकार नहीं किया।

दरअसल गुणवत्ता के प्रति तीव्र आग्रह चोपड़ा के व्यक्तित्व का मूलमंत्र है। सारे सृजनधर्मी व्यक्तिगत जीवन के अनुभव से प्रेरित रहते हैं और कृतियों का आत्म-कथात्मक होना तथा उनकी आत्मकथाओं में काल्पनिकता का पुट आश्चर्यजनक नहीं है। ये दोनों छोर सृजनशील व्यक्ति की प्रक्रिया के दो किनारे हैं और उनकी रचनाएं वो इंद्रधनुष है, जिस पर भाव और विचार यात्रा करते हैं।

बहरहाल, आपबीती प्रेम-त्रिकोणों का ईंधन रही हैं। महेश भट्ट ने परवीन बॉबी और अपनी पत्नी के संबंधों से प्रेरित होकर 'अर्थ' बनाई थी, जिसमें पत्नी की भूमिका में शबाना आजमी थीं और परवीन बॉबी प्रेरित पात्र स्मिता पाटील ने अभिनीत किया था। कैफी आजमी साहब ने इसमें कमाल के गीत लिखे थे- 'तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो, रेखाओं का खेल है मुकद्दर, रेखाओं से मात खा रहे हो।' कमाल अमरोही की पत्नी मीना कुमारी के धर्मेंद्र से प्रेम की खबरें गरम रही हैं और उन्होंने अपनी फिल्म 'रजिया सुल्तान' में धर्मेंद्र की पत्नी हेमामालिनी को रजिया की भूमिका दी। फिल्म में विजयेंद्र घाटगे से उनका निकाह तय था, परंतु वे अपने साहसी गुलाम धर्मेंद्र से प्यार करती है। सामंंतवादी तौर-तरीकों में मलिका और गुलाम का प्रेम-संबंध स्वीकार नहीं किया जा सकता था। कमाल साहब ने गुलाम को काले हब्शी के रूप में पेश करके संभवत: धर्मेंद्र के प्रति अपने क्रोध का इजहार किया। बहरहाल, हेमा और धर्मेंद्र ने पेशेवर कलाकारों की तरह इसे लिया।

यश चोपड़ा की 'सिलसिला' में अमिताभ बच्चन और रेखा के साथ शूटिंग शुरू होने के दिन ही परवीन बॉबी की जगह जया बच्चन को शामिल करके फिल्म को सनसनीखेज कर दिया गया। यह जीवन के गरम त्रिकोण की नरम अभिव्यक्ति सिद्ध हुई। दर्शक की अपेक्षा कुछ और थी। अपनी हास्य भूमिकाओं के लिए प्रसिद्ध राधाकृष्ण नामक कलाकार ने एक फिल्म का निर्माण किया, जिसके दौरान उनकी पत्नी का प्रेम फिल्म के नायक के साथ हो गया और इस दुख के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली। कभी-कभी फिल्म निर्माण इस तरह भी जान लेता है।

रबींद्रनाथ टैगोर के बारे में इस तरह की बातें प्रचलित रही हैं कि वे अपनी भाभी से प्यार करते थे। अनेक लोग इसे मात्र अफवाह मानते हैं। इस विषय पर एक फिल्म भी बनी है और स्वयं टैगोर महोदय की कथा 'नष्ट नीड़' को भी इसी तथाकथित रिश्ते से जोड़ा जाता है। सत्यजीत राय की 'चारुलता' को उनकी श्रेष्ठ फिल्म भी माना जाता है, परंतु 'चारुलता' का क्लाइमैक्स कथा से भिन्न है। माधवी मुखर्जी ने इसमें श्रेष्ठ अभिनय किया। त्रिकोण का एक पात्र सफल अखबार के प्रकाशन में डूबा रहता है और उसकी पत्नी का अकेलापन उसका युवा देवर दूर करता है।

गुरुदत्त की 'कागज के फूल' को भी उनके जीवन के प्रेम-तिकोण से जोड़ा जाता है। उनका प्यार अपनी नायिका वहीदा से हुआ और पत्नी गीता दत्त इससे आहत हुईं, परंतु अंतरंग जानकारी वाले लोग कहते हैं कि गीता को महज वहम था, गुरुदत्त काम में संपूर्णता की तलाश में थे। गरिमापूर्ण खामोशी वहीदा रहमान की चारित्रिक विशेषता हमेशा रही है। शांतारामजी की 'नवरंग' में नायक कवि को अंत में ज्ञात होता है कि उसके सपनों में आकर उसे प्रेरणा देने वाली कोई दूसरी स्त्री नहीं, उसकी अपनी पत्नी है। प्राय: फिल्मकार अपनी नायिका को नयनाभिराम स्वरूप में प्रस्तुत करते हैं और नायिकाएं उस स्वरूप को देखकर आत्ममुग्ध हो जाती हंै और छवि गढऩे वाले से प्रेम करने लगती हैं।

राज कपूर को जीवन में तीन स्त्रियों े प्रेम हुआ - पत्नी कृष्णाजी, नरगिस और वैजयंती माला; परंतु उनकी तथाकथित आत्म-कथात्मक फिल्म 'मेरा नाम जोकर' के तीन प्रेम प्रसंग उनके जीवन के नहीं हैं। उनकी 'संगम' की पटकथा इंदरराज आनंद ने टेनीसन की लंबी कविता 'ऑडेन' से प्रेरित 'घरौंदा' के नाम से १९४७ में लिखी थी, परंतु राज कपूर ने उसे 'संगम' के नाम से वर्ष १९६४ में बनाया। फिल्म के एक प्रसंग में पति को पत्नी के नाम लिखा एक प्रेम पत्र मिलता है, जो उसे उस समय लिखा गया था, जब वह विवाहित नहीं थी और यह खत का प्रसंग उनके जीवन से लिया गया है, जब नरगिस के पास उन्हें सुनील दत्त का लिखा खत मिला। बहरहाल, प्रेम कहानियों में खतों का बड़ा महत्व हुआ करता था। परंतु आज के दौर में युवा प्रेमी खत नहीं लिखते, वरन 'एसएमएस' करते हैं या ई-मेल भेजते हैं। इस मशीनी 'इंग्लिश विंग्लिश' संवाद में प्रेम-पत्र वाली भावना कहां?