लिजार्ड, रोजी और दलाई लामा / जयप्रकाश चौकसे

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लिजार्ड, रोजी और दलाई लामा
प्रकाशन तिथि :28 सितम्बर 2015


विगत कुछ वर्षों से ईरान जैसे छोटे देश में बनी फिल्में आश्चर्यचकित कर रही हैं। आजकल कोरिया में भी थ्रिलर बहुत अच्छे बन रहे हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात फ्रांस में सामााजिक सोद्‌देश्यता का स्पर्श लिए थ्रिलर बनाए गए और फ्रांस के समालोचकों ने अमेरिकन फिल्मकार हिचकॉक की फिल्मों के महत्व को प्रतिपादित किया, उनमें छुपी सामाजिक सोद्‌देश्यता को उजागर किया। ईरान की एक फिल्म का नाम 'लिजार्ड' है। वह चोर दीवारों पर छिपकली की तरह आसानी से चढ़ जाता है, इसलिए पुलिस महकमे में उसे लिजार्ड कहकर पुकारते हैं।

एक बार वह जेल की दीवार फांदकर भाग जाता है और चलती रेलगाड़ी में बैठ जाता है। जब ट्रेन के अंतिम स्टेशन पर वह उतरता है, तब वहां उसको अपनी मस्जिद के लिए आने वाला नया व्यक्ति समझकर उसका स्वागत किया जाता है। वह उस कस्बे की मस्जिद में बड़ी सरल भाषा में जटिल मसलों को प्रस्तुत करता है और उसकी भाषा में चोरों की शब्दावली का इस्तेमाल भी करता है। वह हर मजहबी मसले को अपने नज़रिये से प्रस्तुत करता है। उसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ जाती है कि तकलीफ में पड़े लोग दूर-दूर से इबादत के लिए आने लगते हैं। एक बार एक दरिद्र व्यक्ति की दशा देखकर, रात में वह एक जगह चोरी करता है और वह धन उस दरिद्र को देता है। इस तरह की घटनाओं से उसकी लोकप्रियता बढ़ती जाती है। अपनी इस अकस्मात और गैर इरादतन बनी छवि के अनुरूप वह जीने का भी प्रयास करता है और धीरे-धीरे एक बेहतर इंसान बन जाता है।

गौरतलब है कि आरके नारायणन के उपन्यास 'गाइड' पर बनी फिल्म का नायक भी फिल्म के अंतिम भाग में अपने पर लादी छवि जीते हुए सचमुच भोजन व जल छोड़ वर्षों के लिए उपवास व प्रार्थना करता है और उसे शहादत नसीब होती है। जब नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखिका पर्ल एस. बक जिनकी 'गुडअर्थ' पर ऑस्कर जीतने वाली फिल्म बनी थी, देव आनंद से मिलीं और उन्होंने 'गाइड' पर फिल्म बनाने का प्रस्ताव रखा, तब देव सहर्ष तैयार हो गए। तय हुआ कि फिल्म के हिंदुस्तानी व अंग्रेजी संस्करण साथ शूट किए जाएंगे। अंग्रेजी संस्करण के निर्देशक टेड थे और अन्य संस्करण चेतन आनंद को निर्देशित करना था, परंतुु थोड़े ही दिनों की शूटिंग के बाद वैचारिक मतभेद के कारण चेतन आनंद हट गए और उनके बदले विजय आनंद को लिया गया। दो-चार दिन की शूटिंग के बाद ही विजय आनंद ने बड़े भाई देव को समझाया कि अंग्रेजी संस्करण को पर्ल एस. बक व उनके निर्देशक टेड की अवधारणा के अनुरूप बनने दें और विजय हिंदुस्तानी संस्करण की पटकथा नए सिरे से लिखेंगे और बाद में शूटिंग करेंगे।

विजय आनंद ने मुंबई आकर नए सिरे से पटकथा लिखी तथा सचिन देव बर्मन और शैलेंद्र के साथ बैठकर 'गाइड' के गीत संगीत पर सघन विचार किया। अंग्रेजी संस्करण के पूरे होने के कई माह बाद विजय आनंद ने देव, वहीदा रहमान और किशोर साहू के साथ शूटिंग उदयपुर में प्रारंभ की। जब मुंबई के मेहबूब स्टूडियो में एक गीत के फिल्मांकन के लिए दो भव्य सेट लगा चुके थे, तब शैलेंद्र की तबियत खराब हो गई और नए गीतकार को लेने के दबाव के बावजूद विजय आनंद ने पंद्रह दिन शूटिंग नहीं की। पहली बार एक गीतकार के लिए इंतजार किया गया। शैलेंद्र ने जिस गहरी संवेदना के साथ 'गाइड' के मूल भाव को आत्मसात करके गीत लिखे, उसका ही परिणाम है कि 'गाइड' का गीत-संगीत प्रदर्शन के पचास बरस बाद भी लोगों को याद है। 'गाइड' की नायिका 'रोजी' के अवचेतन में एक नैतिक संघर्ष के बाद जो भाव आता है, उसे शैलेंद्र ने कितने सरल शब्दों में प्रस्तुत किया 'तोड़ के बंधन बांधी पायल, आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है'। रोजी जैसा साहसी पात्र हिंदुस्तानी सिनेमा में पहली और आखिरी बार आया है। वह एक नाचने वाली की बेटी है और मोम की गुड़िया की तरह रहेगी, यही सोच बड़ी उम्र का पुरानी गुफाएं खोजने वाला व्यक्ति उससे विवाह करता है। वह अपने काम में प्रवीण परंतु लम्पट स्वभाव का है और रंगे हाथों पकड़ने के बाद रोजी विद्रोह करती है।

गाइड राजू उसे सितारा बनाने की प्रक्रिया में अति महत्वाकांक्षी होकर अपनी प्रेमिका को टकसाल में बदलते हुए स्वयं भी एक मायने में रोजी के पति की तह आत्मकेंद्रित बन जाता है। प्रेम मर जाता है और भ्रम मुक्त होने को शैलेंद्र ने बखूबी प्रस्तुत किया 'दिन ढल जाए हाय, रात न जाए, तुम मुझसे, मैं दिल से परेशां, दोनों हैं मजबूर ऐसे में किसको कौन मनाए'। राजू गाइड के आमरण अनशन का समाचार मिलते ही रोजी पैदल आते हुए सारे आभूषण फेंकती जाती है गोयाकि देव आनंद को शहादत में मुक्ति मिलती है और रोजी को जीवन रहते ही सारी भौतिकता से मुक्ति मिलती है। दरअसल, गाइड के क्लाइमैक्स के बाद रोजी की शेष कथा लिखी जा सकती है। रोजी अब सशरीर स्वर्ग के से आनंद के साथ इस धरती के नर्क को बिना अपने गाइड के कैसे झेलती है? क्या अब वह मदर टेरेसा की तरह है? एक सुंदर सफल स्त्री का जीवन आसान नहीं होता। आज दलाई लामा ने संभवत: रोजी जैसी स्त्री को ही अगले दलाई लामा बनाने की बात कही है। इस विषय में अनंत संभावनाएं हैं।