लेकिन कब? / अंजना वर्मा

Gadya Kosh से
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मम्मी-डैडी पता नहीं, नैनीताल में होंगे या चले गये। मुझे कैसे स्कूल में छोड़ गयी है मम्मी! एकदम बुरा स्कूल है। मम्मी कहती थीं कि यह स्कूल बहुत अच्छा है। कुछ भी तो अच्छा नहीं है यहाँ, एकदम बुरा है। कब तक यहाँ रहना पड़ेगा? सुवर्णा कहती है कि यहाँ बहुत दिनों तक रहना होगा! तब तक मैं मम्मी को छोड़कर रहूँगी? अकेली?

मम्मी की याद बहुत आती है। मम्मी तो कितना प्यार से रखती थीं मुझे! खाना भी कितना ज्यादा खिला दिया करती थीं। जूस पिलाया करती थीं। यहाँ तो कोई खाने के लिए नहीं पूछता। अपने से जाओ डाइनिंग हॉल में, बैठकर खा लो। खाना खाने का मन नहीं करता। कैसा खाना बनाते हैं यहाँ! टोस्ट-आमलेट! अपने घर का टोस्ट-आमलेट कितना अच्छा लगता था? छीः, अंडा महकता है। मैं तो नहीं खाती अपने हिस्से का आमलेट। मम्मी से कहकर मैं यहाँ से अपना नाम कटवा लँूगी । सुवर्णा भी तो कहती है और मोनिका भी, कि वे यहाँ नहीं पढे़ंगी।

मम्मी कब आयेंगी? मम्मी बोली थीं कि मैं फिर आऊँगी। मम्मी की याद आती है तो लगता है जैसे मेरा हार्ट फेल हो जायगा। रोज सोने के समय मम्मी याद आती हैं और खाने के समय भी। मम्मी मुझे अपने पास सुलाती थीं। रोज मैं और राजू झगड़ते थे कि मम्मी के पास कौन सोयेगा। राजू चट् से मम्मी की बगल में जाकर सो जाता था! और मम्मी से ज़िद करता था कि उसी की ओर घूमकर सोयें तो मम्मी उसी की ओर घूमकर सो जाती थीं। जब मैं गुस्सा जाती थी तो मम्मी मुझे आँख मारती थीं कि राजू सो जायगा तो मम्मी मुझे अपनी गोद में सुला लेंगी। राजू से मम्मी चालाकी करती हैं। प्यार वह मुझे ही ज्यादा करती हैं। कभी-कभी जब राजू सो जाता था और मैं जगी रहती थी तो मम्मी मेरी ओर घूमकर मुझे ही गोद में लेकर सोती थीं। राजू बड़ा शैतान है। सवेरे उठकर लड़ाई करने लगता है। हमलोग कितना खेलते थे ट्रेन-ट्रेन? जीने के ऊपर हमलोग बैठ जाते थे। मैं मम्मी की साड़ी पहन लेती थीं, सैंडल भी और लिपस्टिक लगा लेती थीं। फिर गुड़िया के सूटकेस में कपड़े रखकर हमलोग ट्रेन से दिल्ली जाने का खेल खेलते थे। राजू कैसे छुक-छुक किया करता था! यहाँ सुवर्णा मेरी पक्की दोस्त बन गयी है, लेकिन यहाँ वैसे ट्रेन-ट्रेन नहीं खेल सकते न? यहाँ तो चारों ओर बेड्स लगे हैं और फिर प्लेग्राउंड में.....उहूं।

वहाँ तो मैं कहानियाँ भी सुना करती थी मम्मी से। मुझे कहानियाँ सुनना बहुत अच्छा लगता है। नानी माँ भी बहुत कहानियाँ सुनाती थीं और नाना भी। खूब सवेरे जब रात ही रहती थी उस समय जब भी मेरी नींद खुलती थीं, मैं तो नाना को जगाकर कहानियाँ सुन लिया करती थी। सबसे अच्छी कहानियाँ तो मीरा आंटी सुनाती थीं। खूब मजेदार कहानियाँ। एकदम सवेरे......एकदम सवेरे, मम्मी जगकर नहीं कहती थी पर वह तो सोये-ही-सोये कहानी कह देती थी, आँखें ही मूँदे हुए। कितनी मजेदार कहानियाँ कहती थी! कहती थीं कि भैंस ने साड़ी पहन ली और पर्स लेकर, कार चलाकर मार्केट जाने लगी। कितना अच्छा! यहाँ वे सब मजे नहीं हैं। बस टाइम से उठो, टॉयलट जाओ, नाश्ता करो, पढ़ने बैठ जाओ। कब आंटी से, नानी माँ से भेंट होंगी? इस बार मम्मी छुट्टी में मुझे लेने आयेंगी तो मम्मी से कहूँगी मुझे नानी माँ के यहाँ भी रहने देंगी। खूब खेलेंगे वहाँ.....सौरभ है, नीटी है। सौरभ बड़ा प्यारा है और नीटी भी। इस बार भी राजू के साथ ट्रेन-ट्रेन खेलेंगे। बड़ा मज़ा आयेगा। राजू हर बार मुझसे पूछता है। मुझे दीदी-दीदी बोलता रहता है। राजू से कब मिलूँगी? पता नहीं, मेरी गुड़िया कहाँ होगी? मम्मी ने रख दी होगी सँभालकर। और हाँ, नया गुड्डा? दोनों रखे होंगे। इस बार जाकर दोनों की शादी करूँगी। मम्मी से कहकर खूब कपड़े सिलवाऊँगी गुड़िया के लिए। गुड्डा-गुड़िया दोनों पलंग पर सोयेंगे। कितना अच्छा लगेगा। लेकिन कितने दिन घर पर रहूँगी, ज्यादे दिन नहीं न? सुवर्णा कहती है कि ज्यादे दिन होस्टल में ही रहना पड़ेगा, कम दिन घर में।

मम्मी ने वादा किया था पाँच कॉमिक्स खरीदने का। शायद भूल गयीं। मुझे होस्टल में पहुँचाते समय बिस्कुट और टॉफियाँ भर ही तो खरीद पायीं। कितना पानी बरस रहा था उस दिन। जब मम्मी-डैडी मुझसे मिलने आयेंगे तो जरूर कॉमिक्स लेकर आयेंगे। और फिर उस दिन कोई कॉमिक्स की दूकान भी तो नहीं थी रास्ते में।

यहाँ तो मुझे आया कहती है बिछावन करने के लिए। भला मुझसे उतनी मोटी रजाई उठती है? हाथ दर्द करने लगते हैं। सुवर्णा तो मुझसे बड़ी है। उससे उठ जाती है। सुवर्णा अपना बिछावन खुद कर लेती है। मेरा भी बिछावन कभी-कभी कर देती है, लेकिन हमेशा तो नहीं न? सुवर्णा कहती है आया तुम्हें बिगड़ती नहीं, बिछावन करना सिखाती है। नहीं, आया बहुत बदमाश है। मैं मम्मी से बोल दूँगी। नहीं......फिर मम्मी कहीं आया को डाँटें तो.......नहीं-नहीं बोलूँगी। क्या दाई-नौकर बच्चों को डाँटते हैं? वहाँ तो मुझे रामसरूप चिढ़ाता था तो मम्मी उसे बिगड़ती थी।

सुवर्णा अच्छी है, मेरी बहुत अच्छी दोस्त! मेरे साथ खाती है, पढ़ती है और मैं पेंटिंग करती हूँ तो बैठकर देखती है। वह भी पेंटिंग करती है लेकिन मेरे जितना अच्छा नहीं। अपने स्केच पेनों में से कुछ उसे भी दे दूँगी। मेरी दोस्त है न?

मिसेज जोसेफ अच्छी है। वे नहीं बिगड़तीं। मम्मी को चिट्ठी लिख दूँ, लेकिन मिसेज जोसेफ बोलीं थीं कि सैटर-डे को चिट्ठी लिखवायी जायेगी। कब सैटर-डे आयेगा? आज मनडे है, ट्यूज-डे .....वेडनेस-डे, थर्स-डे.....फ्राई-डे....सैटर-डे.......कितने दिन हुए। वन.....टू.....थ्री.......फोर......फाइव.......फाइव डेज। सैटर-डे आने में अभी बहुत दिन बाकी हैं। पर क्या करूँ? डैडी से तो पता ले लिया था। पता मेरे ओवरकोट के पॉकेट में है, पर कैसे लिखूँ? मैडम ही पोस्टकार्ड देंगी लिखने के लिए।

मम्मी के आने में अभी बहुत दिन है, मार्च.......मार्च के बाद एप्रिल......मे......जून.....जुलाई। जुलाई में जाकर छुट्टी होगी। कितने दिनों की होगी? कम दिनों की होगी तो.....तो......? मम्मी-डैडी को छोड़कर रहना मुझे नहीं अच्छा लगता है। लेकिन पढ़ने के लिए तो सब मम्मी-डैडी से दूर जाते ही हैं, मम्मी ने बताया था। वहाँ राजू है। राजू कितनी प्यारी-प्यारी बातें करता है। वहाँ मेरी गुड़िया है और कितने सारे फूल खिले थे अभी बगीचे में? मेरा नया गुलाब खिला है कि नहीं? वहाँ रोज राजू अकेले मम्मी के पास सोता होगा। मैं कहती थी कि राजू मुझे सोने दो। मैं तो होस्टल चली जाऊँगी। लेकिन नहीं मानता था।

इस बार जाऊँगी तो सब जगह जाऊँगी, नानी माँ के यहाँ भी, मम्मी-डैडी के पास भी। लेकिन कब? अभी तो बहुत दिन रहना है।