लॉक डाउन में बुढ़ापा / गिरीश पंकज

Gadya Kosh से
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यह कथा कोरोना काल की है ।

कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन क्या लगा, देखते- ही -देखते देश में बूढ़े और बुढियों की संख्या में अचानक इज़ाफ़ा हो गया। जैसे कभी-कभार सेंसेक्स उछाल मारता है, बिलकुल उसी तरह बुढ़ापे ने उछाल मारी है। फेसबुक में यकायक हुए कुछ बूढों को देख कर मैं सोचने लगा, क्या कोरोना के कारण बुढापा भी वायरस की तरह तेजी से हमला कर रहा है? ये लोग तो कल तक अच्छे-खासे जवान टाइप के नजर आते थे । क्लीन शेव और सिर पर चमकदार काले बालों के साथ ही फेसबुक में एंट्री मारा करते थे। लेकिन अचानक इनको बुढ़ापे ने कैसे जकड़ लिया ? एक दिन रहा नहीं गया, तो हमने मित्र झंडू सिंह को फोन लगाया और पूछा, "यह क्या हाल बना रखा है ? कुछ लेते क्यों नहीं ?"

वह बोला, "क्या लेना है? मैं तो ठीक हूँ।"

मैंने कहा, "तुम्हारे चेहरे को देख कर लग रहा है, तुम काफी बूढ़े हो गए हो। सफेद दाढ़ी, सफेद बाल। यह सब क्या है?"

हमारी बात सुनकर मित्र हँसा और कहने लगा, "यह सब लॉक डाउन का चक्कर है, प्यारे। घर से बाहर निकल नहीं सकते और घर पर नाई को भी नहीं भुला सकते । बस, इसी चक्कर में बाल बढ़ गए और उधर सफेद बालों को काला करने की क्रीम भी बाजार से गायब है । मजबूरी में बुढ़ापा ओढ़ना पड़ रहा है, वरना तुम तो जानते ही हो कि हमारा बाल तुम्हारे दिल की तरह करिया ही रहा करता है। कोई बात नहीं, कुछ दिन के बाद पुराने हुलिए में आ जाएंगे।"

मैंने सहानुभूति दिखलाते हुए कहा, " लेकिन अब तो लगता है, चंद्रबदन मृगलोचनी भी तुमको बाबा या अंकल कहने लगेंगी। क्योंकि काले के भीतर छिपी सफेदी का भेद खुल गया है। यह कैसे बर्दाश्त करोगे?"

मित्र रुआँसे हो कर बोले, "सचमुच, बुरे दिन शुरू हो चुके हैं। अब तो मैसेंजर में आकर कुछ फेसबुकवाली चालाक मृगलोचनियाँ यही सन्देश देती हैं कि अंकलजी, मेरी रचना पर कोई अच्छी टिप्पणी कर दीजिए न! क्योंकि बुजुर्गों का आशीर्वाद फलीभूत होता है। जब कि कल तक कहती थी,' सर मेरी रचना को सिर्फ लाइक ना करें वहाँ कुछ लिखें भी'। सब समय का खेला है, बंधु।"

मित्र से बात करने के बाद फिर फेसबुक पर नजर घुमाने लगा, तो एक जगह सफेद बालों वाली बुजुर्ग महिला की चेहरा नज़र आया। चेहरा कुछ जाना- पहचाना -सा था। गौर से देखा । उनका नाम लिखा था, सुमुखी देवी । ओह, तो ये है सुमुखी देवी?। वह परिवार के साथ बैठी हुई थी। पोस्ट उसकी बेटी ने लिखा था। कैप्शन था, "अपने माता-पिता के साथ लॉक डाउन का आनंद लेते हुए"। मैं मन-ही-मन सोचने लगा, ओह, तो ये भी अचानक बूढ़ी हो गई? कल तक तो फेसबुक में रोज एक नई मुद्रा के साथ अवतरित होती थी। इसकी आड़ी-तिरछी कविताओं को लोग महादेवी वर्मा और सुभद्राकुमारी चौहान की टक्कर का बताया करते थे।। खूब लाइक और कमेंट्स छोंकती थी। लेकिन जब से उसके सफेद बाल लोगों ने देखें हैं, इसकी 'ग्राहकी' तो एकदम से घट गई है। उसकी बातों को दो-चार लोग ही लाइक करते हैं। एक-दो ने टिप्पणी पाने के लालच में टिप्पणी कर दी, तो गनीमत है। सुमुखी देवी के यहां लाइक्स और कमेंट्स का भयंकर सूखा चल रहा है। यह सब सफेद बालों के कारण हो रहा है। अब तो सुमुखी देवी अतीत की मधुर स्मृतियों में ही विचरण करने लगी हैं। अपनी पुरानी तस्वीरें फेसबुक में शेयर करके लाइक्स और कमेंट के सेंसेक्स को उछालने की असफल कोशिश कर रही है । और यह अच्छी बात कि काफी हद तक सफल भी हो रही हैं। सुमुखी देवी को रह-रह कर गालिब का शेर याद आता है और वे मुस्करा देती हैं,

"हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन

दिल को बहलाने के लिए ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है।"

यह सब सोच ही रहा था कि अचानक दर्पण के सामने खड़ा हुआ तो चौंक गया, अरे ! सामने कौन बुजुर्ग आ गया। फिर गौर से देखा, तो उस चेहरे पर बरबस मुस्कान उभर आई, अरे, यह तो मैं हूं! जिसके बाल भी कोरोना काल में काले से अचानक सफेद हो गए हैं। दाढ़ी के सफेद नज़र आने लगी है।

हाय-हाय, लॉक डाउन का मारा हूँ मैं

उफ़्फ़ कितना बेचारा हूँ मैं?

हे भगवान, कब लॉकडाउन खत्म हो और कब नाई के पास जाऊँ और साधुओं की तरह बढ़ चुके सफेद बालों को जल्दी से कटाऊँ। उन्हें काला करके अपनी खत्म होती जा रही मार्केटिंग को मजबूत करना हर सीनियर सिटीजन का प्रथम कर्तव्य होता है। समय रहते ऐसा हो जाय तो अच्छा, वरना वह दिन दूर नहीं जब जीवन की सच्चाई को स्वीकार करने की आदत बन जाएगी और सफेद बालोंसे ही प्यार होने लगेगा। फिर कोई बाबा कहे, अंकल बोले, कोई फर्क नहीं पड़ेगा।