लोकवार्ता / रंजन

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परिचय

साधारणतः वैन्होॅ विश्वास, परम्परा आरो लोकसभ्यता के ज्ञान, जेकरोॅ अभिव्यक्ति मौखिक रूप सें व्यक्त करलोॅ जाय-ओकरा 'लोकवार्ता' कहलो जाय रहलोॅ छै। स्थान विशेष आरो वर्ग-विशेष के लोगें आपनोॅ परम्परागत-परम्परा केॅ, पीढ़ी-दर-पीढ़ी संरक्षित करै छै। स्मृति में सुरक्षित यै ज्ञान, समय के साथें, एक सें दुसरा आरो फेनू तीसरोॅ मानस के यात्रा करतें, स्वभाविक तौर सें, थोड़ोॅ-थोड़ोॅ परिवर्तित होते रहै छै। अंग्रेज़ी साहित्य में पहनें एकरोॅ नाम छलै 'पोपूलर एन्टीक्यूटीज' (Popular Antiquities) लेकिन 1846 में इ विधा के अन्वेषक विलियम जाॅन थोम्स नें एकरोॅ नाम देलकै फोकलोर (Folklore) आरो तहिया सें, यही नाम प्रचलित होय गेलै।

फोकलोर के अंर्तगत पारम्परिक-सम्पदा के साधारणतह पांच अलग-अलग भागोॅ में विभक्त करलोॅ जाबेॅ सकै छै-विचार आरो विश्वास, परम्परा आरिन, मौखिक कथन, लोकवार्ता, लोककला।

लोक विश्वास (Folk Beliefs)

के अंर्तगत ऊ सब्भे विचार आवै छै, जे सोंसे मानव समुदाय सें सम्बंधित छै। वर-बिमारी होय के कारण आरो एकरोॅ इलाज के विधि सें लेॅ केॅ मरला के बाद के जीवन-सम्बंधी-मान्यता तक एकरो अंतर्गत आवै छै। यै कारणंे एकरा अंदर अंधविश्वास, भूत-प्रेत, सकुन विचार, जादू-टोना, जंतर-मंतर आरो डायन-जोगिन विद्या के साथें, भूत-प्रेत, अलौकिक सत्ता आरो धार्मिक मान्यता सिनी आवै छै।

परम्परा (Tradition)

पर्व त्यौहार, पूजा-पाठ, शादी-बीहा, खेल-कूद आरो नाच आदि से सम्बंधित परम्परा, पारम्परिक परिधान आरो खान-पान, इ वर्ग में

आवै छै।

मौखिक कथा सिनी (Narratives)

इ वर्ग के अंतर्गत लोकगाथा (बैलेड) के साथे साथ विभिन्न प्रकारोॅ के लोक कथा (Folk Tales) , आरो लोक संगीत आवै छै, जेकरोॅ आंशिक सम्बंध, सच्चा ऐतिहासिक घटना के साथ होय सकै छै।

लोक कहावत (Folk Sayings)

एकरोॅ अंर्तगत मुहाबरा, कहावत, बुझौव्वल, फैकड़ा, पिहानी आरो शिशु गेय आदि आवै छै।

लोककला (Folk Arts)

पांचवा आरो एकलौता अ-मौखिक इ श्रेणी में कला के उ सौंसे प्रकार आवै छै जेकरोॅ माध्यम से वर्ग विशेष आपनोॅ अभिव्यक्ति करै छै।

प्रारंभिक अध्ययन

फोकलोर के अध्ययन के शुरूआत आय सें तीन सौ इकत्तीस साल पहलें फ्रांस में होलै। 'ट्रीट्रीज आॅन सूपरस्टीशन्स' नाम के पहलोॅ ग्रंथ 1679 में प्रकाशित होलै, जेकरोॅ लेखक फ्रांस के 'जीन बंपटिस्ट' छलै। एकरोॅ बादे इंग्लैण्ड के लेखक जाॅन आबरे के एक ग्रंथ 'मीसलेनीज' के प्रकाशन 1696 में होलै, जेकरोॅ मुख्य विषय छलै-स्वप्न, दूसरोॅ दृष्टि आरो भूत-प्रेत आदि।

लेकिन इ विषय पर पहलोॅ महत्त्वपूर्ण ग्रंथ 'दी एन्टीक्यूटीज आॅफ दी काॅमन पीपुल' के प्रकाशन 1725 में होलै। एकरोॅ लेखक द्वय छलै, इंग्लैण्ड के 'क्लीरगी मैन' आरो 'हेनरी बोर्न'। इ ग्रंथ में धार्मिक परम्परा आरो जन-उत्सव पर विस्तृत चर्चा करलोॅ गेलै।

एकरोॅ बाद 1765 में अंग्रेज कवि 'एन्टीक्येरी' आरो 'विशप थामस पर्सी' के सम्पादन में इंग्लैण्ड आरो स्काॅटलैण्ड में प्रचलित लोकगाथा (बैलेड) के संकलन, तीन भागोॅ में प्रकाशित होलै।

1777 में इंग्लैण्ड के 'क्लर्गीमैन' आरो'जाॅन ब्रैण्ड' के महत्त्वपूर्ण

कृति आबजरबेशन्स आॅन दी पोपुलर एन्टीक्यूटीज आॅफ ग्रेट ब्रिटेन' के प्रकाशन होलै।

इ गं्रथ में विभिन्न लोक परम्परा के उत्पत्ति पर विस्तृत अनुशीलन प्रस्तुत करलोॅ गेलै। एकरोॅ प्रकाशन के बाद 'फोकलोर' विषय पर प्रकाशित इ ग्रंथ के आधिकारिक ग्रंथ स्वीकारलोॅ गेलै।

जर्मनी में दर्शनशास्त्राी 'जोहान गौट फ्रायड वोन हर्दर' आरो 'जेकब' आरो 'विलहेम ग्रमी' आदि के विषय के अग्रणी अध्ययनकर्ता रहै। जर्मन लोकगीतों के संग्रह 1778 में 'हर्दर' नें प्रकाशित करवैलकै आरो ग्रीम ब्रदर्श द्वारा दू खण्डोॅ में 'हाउस होल्ड टेल्स' के प्रकाशन 1812-1515 में करवैलो गेलै। इ ग्रंथ में जर्मनी के लोक कथा संग्रहित करलो

गेलोॅ छै।

उन्नीसवीं आरो बीसवीं सदी के अध्ययन

इ दोनों सदी में, सौंसे यूरोप में, एकरोॅ अध्ययन आरो संग्रह के अभिरुचि जाग्रत होय गेलै। अनेक संस्था आरो 'वांग्मय' एकरोॅ संग्रह-संरक्षण में लागी गेलै आरो, फोकलोर के 'ध्वन्यांकन' (रेकाडिंग) के महत्त्वपूर्ण कार्य प्रारंभ होलै। उन्नीसवीं शताब्दी के (संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान) जर्मन निवासी, 'थियोडर बेनफे' नें फोकलोर के हर-एक विधा के अध्ययन-अनुशीलन के सिद्धांत के प्रतिपादन करलकै। बेनके के सिद्धांत पर इंग्लैण्ड के शास्त्राीय आरो लोकगायक 'एन्ट्रयू लैंग' ने 1884 में एक किताब 'कस्टम एण्ड मीथ' लिखलकै, फनु 1887 में हिनकोॅ दू खण्डों में दुसरोॅ किताब 'लिटरेचर एण्ड रिलीजन' के नामोॅ संे प्रकाशित होलै। यही कड़ी में 1890 में 'गोल्डेन बो' के अति महत्त्वपूर्ण प्रकाशन इंग्लैण्ड में होलै। सर जेम्स जाॅर्ज फ्रेजर के इ ग्रंथ के प्रकाशन तेरह खण्डोॅ में होलै जेकरा फोकलोर विषय पर प्रकाशित सौंसे ग्रंथों में मील रोॅ पत्थर मानलोॅ गेलै।

डेनमार्क में 1905 में पहलोॅ बार 'एडीसन फोनोग्राफ' पर लोकगीत संरक्षित करलोॅ गेलै। संग्रह आरो संरक्षण के इ कामोॅ में डेनमार्क के साथे-साथ ग्रीनलैण्ड आरो फेरू द्वीप-समूह के लोकगीत के 'ध्वन्यांकन' के महत्त्वपूर्ण काम प्रारंभ होलै।

फोकलोर के अनुशीलन अध्ययन में फिनलैंड के 'एन्ट्टी आर्ने' के काम महत्त्वपूर्ण छलै। लोकगीत के उत्पत्ति आरो विकाश पर हिनकोॅ अध्ययन सें बड़ोॅ लाभ पहुँचलै।

1910 में 'एन्ट्टी आर्ने' के द्वारा लोक कथा के तालिका निर्मित होलै, बादोॅ में जेकरोॅ अनुवाद आरो विकास के काम अमेरिका के 'स्टीथ थामसन' के द्वारा ' दी टाइप्स ऑफ दी फोक टेल्स (1928) में होलै।

फोकलोर संस्था

फोकलोर (लोकवार्ता) के अध्ययन, अनुशीलन, आरो संग्रह-संरक्षण लेली इंग्लैण्ड आरो अमेरिका सहित सौंसे युरोप में अनेक संस्था बनी गेलै। टेपरिकार्डर पर ध्वन्यांकन के साथें-साथें फोटोग्राफी के द्वारा एकरोॅ संरक्षण, वर्गीकरण आरो प्रकाशन के कार्य करलोॅ गेलै।

फ्रांस में स्थापित संस्था 'फ्रेंच सोसायटी दे-ट्रेडिसंस पोपुलरीस' के द्वारा 1886 सें इ विषय में सामग्री के प्रकाशन शुरू करलोॅ गेलै। इंग्लैण्ड में 'इंगलिश फोकलोर सोसाइटी' 1878 में आरो अमेरिका में, ' दी अमेरिका फोकलोर सोसायटी के स्थापन 1888 में होलै।

फोकलोर के एक अंर्तराष्ट्रीय संस्था'इन्टरनेशनल आॅरगेनाइजेशन्स फोकलोर' के स्थापना 1907 में करलोॅ गेलै, जेकरोॅ प्रधान कार्यालय फीनलैण्ड के हेलसिंकी में स्थापित छै। इ संस्था द्वारा प्रकाशित ' फोकलोर फेलोज कम्यूनिकेशन के मार्फत दू सौ सें ज़्यादा प्रकाशन जेकरा में करीब चालीस तालिका भी सम्मिलत छै, प्रकाशित करलोॅ गेलै।

1959 में फिनलैण्ड के दूसरा शहर 'टूर्कू' में स्थापित 'दी इन्टरनेशनल सोसाइटी फार फोक-नरेटिव रिसर्च' के द्वारा भी ऐ विषय के उच्चतर-

अध्ययन में महत्त्वपूर्ण मदद मिललै।

यै सिनी संस्था के द्वारा शुरू करलोॅ गेलोॅ फोकलोर-अध्ययन के कारण, Anthropological, Ethnological आरो मनोवैज्ञानिक क्षेत्रा में उल्लेखनीय शोध करलोॅ गेलोॅ छै।

लोक वार्ता के अंर्तगत हम्में लोक के कोईयो विषय पर वार्ता करेॅ पारै छियै चाहे वै में आम जीवन रहै या राजनीति, मगर आय कल 'लोकवार्ता' के अर्थ 'लोक-संस्कृति' समझी लेलोॅ गेलोॅ छै। एकरोॅ व्यापक अर्थवत्ता के इ संकीर्ण परीसीमन वास्तव में अति-भ्रामक आरो अनुचित छै।

चन्द्रप्रकाश जगप्रिय जी के अनुसार 1968 में प्रकाशित 'समाजशास्त्राी विश्वकोष' में, 'लोकवार्ता' केॅ स्पष्ट करतें लिखलोॅ गेलोॅ छै-एकरोॅ अंतर्गत-लोककला, लोक दस्तकारी, लोक उपकरण, लोक वेशभूषा, लोकाचार, लोक विश्वास, लोक उपचार, लौकिक नुस्खा, लोक संगीत, लोकनृत्य, लौकिक खेल-कूद, लोक चेष्टा, तथा लोकवाणी के साथे-साथ अभिव्यक्ति के उ सब मौखिक रूपो सम्मिलित छै, जेकरा लोक-साहित्य कहलोॅ जाय छै।

उपरोक्त ग्रंथ के प्रकाशन नें एक्के साथें दू काम करी देलकै। एक तेॅ 'लोकवार्ता' के नामोॅ पर मोहर लगैलकै दूसरा एकरोॅ परिधि केॅ निर्धारित करी देलकै।

आबेॅ ज़रा पीछू मूड़ी केॅ देखलोॅ जाय कि आखिर सौंसे 'लोक-संस्कृति' के सम्बोधन में इ नयका सम्बोधन, 'लोक वार्ता' केना अवतरित होय गेलै। एकरा साथें यहू विचार करलोॅ जाय कि आय के समय में स्थापित इ शब्द वास्तव में सही आरो उचित छै कि नै।

अंगिका के विद्वान सम्पादक आरो रचनाकार चन्द्रप्रकाश जगप्रिय ने आपनोॅ पुस्तक 'अंगिका लोकसाहित्य एक अध्ययन' में लिखने छै-

आदि समय के मनुक्खोॅ के (लोक) साहित्य के अनेक विद्वानें अनेक नाम देनें छोत। इ तरह के साहित्य के सन् 1846 में इंगलैण्ड के पुरातत्ववेत्ता विलियम टाॅमस नें सबसें पहिनें 'फोक लोर' कहलकै, जेकरोॅ हिन्दी रूपान्तर नाम 'लोकवार्ता' पड़लै। लोक साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान पं। रामनरेश त्रिपाठी नें लोक के जग्धा पर 'ग्राम' शब्द प्रयोग करी, ओकरा 'ग्रामसाहित्य' आरो 'ग्रामगीत' कहलकात। यहाँ पर एकरो उल्लेख करी देना ज़रूरी छै कि 'लोकवार्ता' शब्द के प्रयोग पहिलोॅ-पहल वासुदेव शरण अग्रवाल ने करनें छेलथिन।

डाॅ। सुनीति कुमार चटर्जी आरो कृष्णदेव उपाध्याय नें 'लोकवार्ता' आरो 'ग्रामसाहित्य' के जग्धा पर क्रमशः 'लोकयान' आरो 'लोकसंस्कृति' शब्द के प्रयोग करलखिन, मतर कि डाॅ। चटर्जी आरो डाॅ। उपाध्याय द्वारा सुझैलोॅ इ दोनों नाम लोकप्रिय नै हुवेॅ पारलै आरो सबके जग्धा पर 'लोकवार्ता' ही अधिक लोकप्रिय बनलोॅ रहलै।

अंगिका के विद्वान सम्पादक आरो रचनाकार श्री चन्द्रप्रकाश जगप्रिय नें 'लोकवार्ता' शब्द के संक्षिप्त जन्मकथा इ प्रकार लिखी

देनै छै।

निचोड़ इ छै कि इंग्लैण्ड में एक पुरातत्ववेत्ता विलियम टाॅमस 1846 में (लोक) साहित्य? के फोक लोर (Folk lore) कहि देलकै।

इ सम्बंध में पहलोॅ सवाल इ छै कि हुनी छलै की? लोकसाहित्य के अन्वेषक या पुरातन संस्कृति के अध्ययनकर्ता? चन्द्रप्रकाश जगप्रिय जी लिखी चुकलोॅ छै कि हुनी पुरातत्ववेत्ता छलै। तेॅ दूसरोॅ सवाल इ छै कि हुनी 'फोक लोर' आखिर कहलकै केकरा? साहित्य केॅ कहलकै या कि लोक संस्कृति केॅ?

इ सवाल के जवाब 'फोक लोर' शब्द में ही छुपलोॅ छै। अंग्रेज़ी शब्द फोक (Folk) के अर्थ छै- 'लोग' 'जनता' । अंग्रेज़ी में फोक के पर्यायवाची छै पीपुल (People) । लोर (Lore) के अर्थ छै-ट्रैडिशन्स (Traditions) जेकरा हिन्दी में 'परम्परा' कहलोॅ जाय छै। इ प्रकार फोक लोर (Folk Lore) के स्पष्ट अर्थ छै-पोपुलर टैªडिशन (Popular Tradition) यानी लोकप्रिय परम्परा या सर्वप्रिय परंपरा, या सर्वमान्य परम्परा। मतर 'फोक लोर' शब्द के लेली सबसें उपयुक्त शब्द छै-'लोक-परम्परा' (Popular Tradition) । आक्सफोर्ड के अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश भी फोक लोर के अर्थ, 'लोक-परम्परा' ही मानै छै। 1846 में इंग्लैण्ड के पुरातत्वविद, विलियम टाॅमस के देलोॅ नाम 'फोक लोर' के परिधि में कैन्हें कि सौंसे लोक-परम्परा सिमटलोॅ छै, यही सें 1968 में प्रकाशित 'समाजशास्त्राी विश्वकोष' में एकरोॅ अंर्तगत जतना विषय बतैलोॅ गेलोॅ छै, उ उचित लागै छै।

लेकिन 'फोक लोर' केॅ 'लोकवार्ता' कहना आपत्तिजनक छै। 'लोकवार्ता' के अर्थ आरो परिधि असीमित होय छै। सौंसे लोक (पृथ्वी) के चर्चा एकरा में, हुवेॅ पारै, उ इतिहास हुवेॅ कि भूगोल, संस्कृति हुवेॅ अथवा विज्ञान। एकरोॅ परिधि में लोक के सभ्भे विषय आरो विचार छै, नै कि खाली 'लोक-परम्परा'।

आबेॅ इ स्थिति में विचार करलोॅ जाय कि श्री वासुदेव शरण अग्रवाल नें जबेॅ 'लोकवार्ता' शब्द पहले-पहल सुझैलकै तेॅ एकरोॅ की कारण रहै?

'लोक' शब्द के एक अर्थ 'लोक-जीवन' भी होय छै आरो, हमरोॅ देश में 'लोक-जीवन' के एक भावार्थ 'ग्राम-जीवन' भी होय छै। हमरोॅ विचार सें श्री वासुदेव शरण अग्रवाल नें यदि इ सोची केॅ-'लोक-परम्परा' केॅ 'लोक-वार्ता' कहैलकै त एकरा में हुनका सें कोय, अर्थ के अनर्थ नै होलै जबकि हमरोॅ भाषाशास्त्राी-सिनी नें अंग्रेज़ी शब्द के अनुवाद करै में ढेरे अनर्थ करलेॅ छै। सर्वोत्तम उदाहरण छै, अंग्रेज़ी शब्द 'रेलवे स्टेशन' के अनुवाद। अंग्रेज़ी शब्द 'रेल' के अर्थ छै 'पटरी' , आरो 'वे' माने रास्ता। 'रेलवे' शब्द के अर्थ होलै 'पटरी वाला रास्ता'। 'स्टेशन' शब्द के भावार्थ छै 'ठहराव' । इ प्रकार 'रेलवे स्टेशन' के अर्थ होलै 'पटरी वाला रास्ता के ठहराव' एकरोॅ अनुवादित शब्द देलोॅ गेलै 'धुम्रशकट् विश्रामालय' (धुंआँ छोड़ै वाला यान के विश्राम-स्थल) 'रेलगाड़ी पड़ावस्थल' कहतियै तइियो अनर्थ नै होतियै, कैन्हें कि बिजली के उपयोग के

बाद रेलगाड़ी 'धुआँ विहीन' होय गेलै, आबेॅ 'धुम्रशकट्' केकरा

कहलोॅ जाय?

एना भी अंग्रेज़ी शब्द के कई अनुवाद हमरोॅ असावधानी के कारण भ्रामक होय जाय छै-जेना 'वेटिंग रूम' (प्रतीक्षालय) के अनुवाद छै-विश्रामालय।

विदेशी शब्द के या तेॅ मूल रूप में ग्रहण करी लेना चाहियोॅ, या तेॅ ओकरो अनुवाद में सावधानी बरतना आवश्यक छै। नै त भ्रामक अनुवादित शब्द 'मति-भ्रम' उत्पन्न करी दै छै।

लोक साहित्य के विद्वान पं। रामनरेश त्रिपाठी नें जबेॅ 'लोक साहित्य आरो गीत' के 'ग्राम साहित्य आरो गीत' कहलकै तेॅ, हमरोॅ विचार

सें ठीके कहलकै, कैन्हें कि लोक परम्परा शहरो में नै, गांवों में ही जीवित छै।

डाॅ। सुनीति कुमार चटर्जी नें 'फोक लोर' केॅ कहलकै 'लोक यान' (लोकायन) । वास्तव में हुनकोॅ इ शब्द 'फोक लोर' के स्थान पर अति सुसंस्कृत देशी शब्द छलै मतर एकरोॅ सबसें सुन्दर आरो सरल शब्द देलकै कृष्णदेव उपाध्याय नें-'लोक-संस्कृति'। इ शब्द अंग्रेज़ी में फोक लोर (लोक परम्परा) संे भी सुन्दर आरो सटीक शब्द छै। हमरोॅ लोक-साहित्य, संगीत, कला आरो परम्परा के यदि एक शब्द में समेटना छै तेॅ 'लोक-संस्कृति' कहबै कि लोकवार्ता?

अंगिका साहित्य केॅ हमरोॅ विद्वान मित्रा आपनोॅ पुस्तक ' अंगिका लोक साहित्य: एक, अध्ययन में लिखै छोत कि-

डाॅ। सुनीति कुमार चटर्जी आरो कृष्णदेव उपाध्याय नें लोकवार्ता आरो ग्रामसाहित्य के जग्घा पर क्रमशः 'लोकयान' आरो 'लोकसंस्कृति' शब्द के प्रयोग करलखिन, मतरकि डाॅ। चटर्जी आरो डाॅ। उपाध्याय द्वारा सुझैलोॅ ई दोनों नाम लोकप्रिय नै हुवेॅ पारलै; सबके जग्घा पर लोकवार्ता ही अधिक लोकप्रिय बनलोॅ रहलै।

यानी साफ छै कि जगप्रिय जी नै केवल 'लोकवार्ता' शब्द सें खुदे सहमत छै बल्कि यहू घोषित करै छोॅत कि यही शब्द 'लोकप्रिय' छै। आरो यहू सच छै कि अंग जनपद के मुख्यालय भागलपुर में स्थित 'तिलकामांझी विश्वविद्यालय' के अंगिका विभाग में भी 'लोकवार्ता' शब्द स्वीकृत होय चुकलोॅ छै।

मतर एकरोॅ इ अर्थ नै छै कि अंगिकांचल के लोक-जन-मानस में 'लोक संस्कृति' के वास्तें 'लोकवार्ता' शब्द सर्वस्वीकृत होय केॅ लोकप्रिय होय चुकलोॅ छै। हकीकत तेॅ यही छै कि अंगिका में सांस लै बाला आम आदमी के कानोॅ में आय तक इ शब्द पड़बे नै करलोॅ छै। यही लेॅ विद्वानोॅ के इ विषय पर पुनर्विचार करना अति आवश्यक छै।