वर्णिक छंदों का वाचिक प्रयोग / ओम नीरव

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कुछ छंदों में वर्णों की संख्या निश्चित होती है, इन्हें वर्णिक छंद कहते हैं। इनमें से कुछ वर्णिक छंदों में वर्णों का मात्राभार भी सुनिश्चित होता है, इन्हें वर्णवृत्त कहते हैं। वर्ण वृत्तों की एक निश्चित वर्णिक मापनी भी होती है जिसमें गुरु के स्थान पर दो लघु प्रयोग करने की छूट नहीं होती है, इसलिए इन्हें मापनीयुक्त वर्णिक छंद भी कह सकते हैं। मापनीयुक्त वर्णिक छंदों अर्थात वर्णवृत्तों में यदि गुरु गा के स्थान पर दो लघु लल प्रयोग करने की छूट ले ली जाये तो छंद को रचना बहुत सरल हो जाता है और वह नये रूप में वर्णिक छंद का वाचिक रूप होता है। इस रूप में इन छंदों का प्रयोग गीत, गीतिका, ग़ज़ल, मुक्तक, भजन, कीर्तन और फ़िल्मी गानों में बहुलता से हो रहा है और यह प्रयोग बहुत ही लोकप्रिय सिद्ध हुआ है। मापनी युक्त वर्णिक छंदों या वर्णवृत्तों को वाचिक रूप में प्रयोग करना शास्त्र सम्मत है भी या नहीं? इस प्रश्न पर विचार करें तो हम पाते हैं कि हमारे पारंपरिक छंद शास्त्र में स्वयं इस प्रकार के प्रयोग किये गये हैं। अनेक मात्रिक छंद जैसे गीतिका, हरिगीतिका, शक्ति, राधा, रजनी, चामर आदि वस्तुतः मापनीयुक्त वर्णिक छंदों या वर्णवृत्तों के वाचिक रूप ही है। इससे स्पष्ट है कि ऐसा प्रयोग करने की अनुमति हमारा छंद शास्त्र देता है। तथापि किसी वर्णिक छंद का वाचिक रूप में प्रयोग करते समय यह परख लेना आवश्यक है कि इस परिवर्तन से छंद का मूल स्वरूप विकृत न होने पाये। हम केवल उन्हीं वर्णिक छंदों को वाचित रूप में प्रयोग कर सकते हैं जिनकी मूल प्रकृति ऐसा करने से अक्षुण्ण बनी रहती है। आइए अब कुछ उदाहरणों के माध्यम से ऐसे प्रयोगों पर दृष्टिपात किया जाये।

(1) सीता एक 'मापनीयुक्त वर्णिक छंद' है, जिसमें वर्णों की संख्या निश्चित होती है अर्थात किसी गुरु गा या 2 के स्थान पर दो लघु लल या 11 प्रयोग करने की छूट नहीं होती है। ऐसे छंद को 'वर्ण वृत्त' भी कहा जाता है। इसका विधान निम्नप्रकार है-

वर्णिक मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गालगा

अथवा-2122 2122 2122 212

पारंपरिक सूत्र-राजभा ताराज मातारा यमाता राजभा (अर्थात र त म य र)

जबकि य म त र ज भ न स ल ग क्रमशः यगण (यमाता या लगागा) , मगण (मातारा या गागागा) , तगण (ताराज या गागाल) , रगण (राजभा या गालगा) , जगण (जभान या लगाल) , भगण (भानस या गालल) , नगण (नसल या ललल) , सगण (सलगा या ललगा) , लघु (ल) और गुरु (गा) को व्यक्त करते हैं।

मूल सीता छंद का उदाहरण-

शीत ने कैसा उबाया, क्या बतायें साथियों!

माह दो कैसे बिताया, क्या बतायें साथियों!

रक्त में गर्मी नहीं, गर्मी न देखी नोट में,

सूर्य भी देखा छुपा-सा कोहरे की ओट में। -स्वरचित

अब यदि इस छंद में गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक सीता छंद कहेंगे जो मात्रिक छंद गीतिका के नाम से हमारे छंद शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-

गीतिका (26 मात्रा, 14, 12 या 12, 14 पर यति उत्तम, मापनीयुक्त)

वाचिक मापनी–गालगागा गालगागा-गालगागा गालगा

अथवा-2122 2122 2122 212

विशेष-पारंपरिक छंद शास्त्र में ऐसी मापनी न लिख कर 3, 10, 17, 24 वीं मात्रा लघु होने का संकेत दिया गया है जिसका सरल-सुबोध रूप उपर्युक्त मापनी है। इसी प्रकार अन्य उदाहरणों में समझना चाहिए।

गीतिका छंद का उदाहरण-

आँसुओं, सहचर बनो तो, कहकहाते ही रहो।

नीड़ से निकलो कभी तो, चहचहाते ही रहो।

वेदना पहचान में होगी, मिली तुमको कहीं,

अस्मिता अपनी कभी यों, ही लुटा देना नहीं। -स्वरचित

उर्दू ग़ज़लों में इस छंद की मापनी को इसप्रकार लिखा जाता है-

उर्दू मापनी-फाइलातुन फाइलातुन-फाइलातुन फाइलुन

उर्दू बहर-बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़

और इसप्रकार छंद वाचिक सीता अथवा मात्रिक गीतिका पर आधारित ग़ज़लों का बहुलता से सर्जन किया जाता है।

वाचिक सीता या गीतिका छंद पर रचित दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल का मुखड़ा दृष्टव्य है।

गीतिका छंद पर आधारित एक शेर-

एक गुड़िया कि कई कठपुतलियों में जान है,

आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है। -दुष्यंत कुमार

इसी वाचिक सीता या गीतिका पर अनेक फ़िल्मी गानों का भी सर्जन किया गया है।

गीतिका छंद पर आधारित फ़िल्मी गीत-

1 चुपके'-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

2 आपकी नज़रों ने' समझा प्यार के काबिल मुझे

इसी क्रम में हम कुछ और उदाहरण संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं जिनमें वणिक छंदों को वाचिक रूप में प्रयोग किया गया है-

(2) मुनिशेखर एक मापनीयुक्त वर्णिक छंद या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-

वर्णिक मापनी-ललगालगा ललगालगा-ललगालगा ललगालगा

अथवा-11212 11212 11212 11212

पारंपरिक सूत्र-सलगा जभान-जभान भानस राजभा सलगा लगा (अर्थात स ज-ज भ र स ल गा)

मूल मुनिशेखर छंद का उदाहरण-

कर दे कृपा वर दे सुधा कमलासिनी शुभ शारदे।

तम है घिरा पथ को दिखा तमनाशिनी शुभ शारदे।

सुविचार दे रसधार दे पयवाहिनी शुभ शारदे!

उर में बसो नित अम्बिका वर दायिनी शुभ शारदे! -ओम नीरव

अब यदि इस छंद में गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक मुनिशेखर छंद कहेंगे जो मात्रिक छंद हरिगीतिका के नाम से हमारे छंद शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-

हरिगीतिका (28 मात्रा, 16, 12 पर यति उत्तम, मापनीयुक्त)

वाचिक मापनी-गागालगा गागालगा-गागालगा गागालगा

अथवा-2212 2212 2212 2212

हरिगीतिका छंद का उदाहरण-

उस ज्ञान का हम क्या करें जो, दंभ में अनुदार हो।

उस रूप का हम क्या करें जिस, में न मृदुता-प्यार हो।

जो हैं अकारण रूठते, हम, उन गृहों से क्या डरें।

जो मूलतः व्यापार हो उस, धर्म का हम क्या करें।

(स्वरचित)

उर्दू मापनी–मुस्तफ़्इलुन मुस्तफ़्इलुन-मुस्तफ़्इलुन मुस्तफ़्इलुन

उर्दू बहर-बह्र-ए-रजज़ मुसम्मन सालिम

हरिगीतिका छंद पर आधारित एक युग्म-

आकर सवेरे बाग़ को मेरे सजातीं तितलियाँ।

चारों तरफ उड़ती हुई मन को लुभातीं तितलियाँ। -बसंत शर्मा

फ़िल्मी गीत-

1 हम बेवफा हरगिज न थे पर हम वफ़ा कर ना सके।

2 इक रास्ता है ज़िन्दगी जो थम गये तो कुछ नहीं।

(3) भुजंगी एक मापनीयुक्त वर्णिक छंद या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-

वर्णिक मापनी-लगागा लगागा-लगागा लगा

पारंपरिक सूत्र-यमाता यमाता-यमाता लगा (अर्थात य-य य ल ग)

मूल भुजंगी छंद का उदाहरण-

बहाना नहीं नैन से नीर को।

भवानी सदा ही हरें पीर को।

कभी तो उन्हें पीर जा के बता।

तभी तो क्षमा वे करेंगी खता। -महेश जैन 'ज्योति'

अब यदि इस छंद में गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक भुजंगी छंद कहेंगे जो मात्रिक छंद शक्ति के नाम से हमारे छंद शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-

शक्ति छंद (18 मात्रा, मापनीयुक्त)

वाचिक मापनी-122 122 122 12

वाचिक लगावली-लगागा लगागा-लगागा लगा

शक्ति छंद का उदाहरण-

चलाचल चलाचल अकेले निडर,

चलेंगे हजारों, चलेगा जिधरl

दया-प्रेम की ज्योति उर में जला,

टलेगी स्वयं पंथ की हर बलाl -स्वरचित

उर्दू मापनी-फ़ऊलुन फ़ऊलुन-फ़ऊलुन फ़अल

उर्दू बहर-बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर

शक्ति छंद पर आधारित एक शेर-

इबादत की किश्तें चुकाते रहो

किराये पर है रूह की रौशनी

शक्ति छंद पर आधारित फ़िल्मी गीत-

1 तुम्हारी नज़र क्यों ख़ता हो गयी,

ख़ता बख़्स दो ग़र ख़ता हो गयी।

2 दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया

हमें आप से भी जुदा कर चले

3 बहुत प्यार करते है' तुमको सनम

कसम चाहे' ले लो खुदा कि कसम

(4) राधा एक मापनीयुक्त वर्णिक छंद या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-

वर्णिक मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गा

अथवा-2122 2122 2122 2

पारंपरिक सूत्र-राजभा ताराज मातारा यमाता गा (अर्थात र त म य ग)

मूल राधा छंद का उदाहरण-

है अँधेरा छा रहा दो रश्मियाँ माते!

ज्ञान की धात्री जला दो बत्तियाँ माते!

क्षारदे माँ दो मिटा अज्ञानता सारी!

जीव की संजीवनी-सी प्रीति दो न्यारी! -स्वरचित

अब यदि इस छंद में गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक राधा छंद कहेंगे जो मात्रिक छंद रजनी के नाम से हमारे छंद शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-

रजनी छंद (18 मात्रा, मापनीयुक्त)

वाचिक मापनी-गालगागा गालगागा-गालगागा गा

अथवा-2122 2122 2122 2

उर्दू मापनी-फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन फ़ैलुन

रजनी छंद का उदाहरण-

कौन ऊपर बैठकर रस-कुम्भ छलकाये।

छोड़ कर दो-चार छींटे प्यास उमगाये।

कौन विह्वलता धरा कि देख मुस्काता,

छेड़ता है राग, गाता और इठलाता। -स्वरचित

रजनी छन्द पर आधारित गीतिका का मुखड़ा और एक युग्म-

मात्र जीने के लिए नीरव जिया ही क्यों?

पी रहा है रश्मियाँ अपनी दिया ही क्यों?

ज़िंदगी जीकर चला हूँ मौत जीने अब,

पागलों से पढ़ रहे तुम मरसिया ही क्यों? -स्वरचित

रजनी छन्द पर आधारित फ़िल्मी गीत-

बस यही अपराध में हर बार करता हूँ,

आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ।

(5) चामर एक मापनीयुक्त वर्णिक छंद या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-

वर्णिक मापनी-गाल गाल-गाल गाल गाल-गाल गाल गा

अथवा-21 21 21 21 21 21 21 2

पारंपरिक सूत्र-राजभा जभान राजभा जभान राजभा (अर्थात र ज र ज र)

मूल चामर छंद का उदाहरण-

शीत यों डटा हुआ कि बंधु पूछिए नहीं,

आग जो मिले कहीं, लगे कि छोड़िए नहीं।

एक शीत जो कटा, किसी बुजुर्ग के लिए,

आयु एक वर्ष की बढ़ी सदैव जानिए। -ओम नीरव

अब यदि इस छंद में गुरु गा के स्थान पर, उच्चारण के अनुरूप, दो लघु लल का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक चामर छंद कहेंगे, इसकी उपर्युक्त मापनी 'वाचिक मापनी' हो जायेगी और छंद की प्रकृति मात्रिक छन्द जैसी हो जायेगी।

वाचिक चामर छंद का उदाहरण-

राग-द्वेष भूलिए समान भाव धारिये

व्यर्थ हो न काम-काज ध्यान से संवारिये

गर्व हो समाज को, परोपकार कीजिये

फूल हो कि शूल हो सदैव प्यार कीजिये -छाया शुक्ला

उर्दू मापनी-फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन-मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

उर्दू बहर-बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

वाचिक चामर छंद पर आधारित युग्म-

छंद को सहेजती, विधा रसाल गीतिका।

कवि निकुंज में खिली, करे कमाल गीतिका।

(स्वरचित)

वाचिक चामर छन्द पर आधारित फ़िल्मी गीत

कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। -गोपालदास नीरज

(6) स्रग्विणी एक मापनीयुक्त वर्णिक छंद या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-

वर्णिक मापनी-गालगा गालगा-गालगा गालगा

अथवा-212 212 212 212

पारंपरिक सूत्र-राजभा राजभा-राजभा राजभा (अर्थात र-र र र)

मूल वाचिक छंद का उदाहरण-

दाढ़ियाँ हैं निरी, हैं निरी चोटियाँ।

धर्म की विश्व में हैं निरी कोटियाँ।

नाम क्या दें भला व्यक्ति के धर्म को,

जो जिये स्वार्थ में त्याग सत्कर्म को। -स्वरचित

अब यदि इस छंद में गुरु गा के स्थान पर, उच्चारण के अनुरूप, दो लघु लल का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक स्रग्विणी छंद कहेंगे, इसकी उपर्युक्त मापनी 'वाचिक मापनी' हो जायेगी और छंद की प्रकृति मात्रिक छन्द जैसी हो जायेगी।

वाचिक स्रग्विणी पर आधारित मुक्तक-

रोटियाँ चाहिए कुछ घरों के लिए।

रोज़ियाँ चाहिए कुछ करों के लिए।

काम हैं और भी ज़िंदगी में बहुत-

मत बहाओ रुधिर पत्थरों के लिए। -स्वरचित

वाचिक स्रग्विणी पर आधारित युग्म-

बात फिर से वही क्यों सुनाने लगे।

भूलने में जिसे थे जमाने लगे।

-बृजेश सिंह

फ़िल्मी गीत-

1 खुश रहे तू सदा ये दुआ है मे' री

2 कर चले हम फ़िदा जानो'-तन साथियों

3 तुम अगर साथ देने का' वादा करो

(7) भुजंगप्रयात एक मापनीयुक्त वर्णिक छंद या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-

वर्णिक मापनी–लगागा लगागा-लगागा लगागा

अथवा-122 122 122 122

पारंपरिक सूत्र-यमाता यमाता-यमाता यमाता (अर्थात य-य य य)

मूल भुजंगप्रयात का उदाहरण-

अब यदि इस छंद में गुरु गा के स्थान पर, उच्चारण के अनुरूप, दो लघु लल का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक भुजंगप्रयात छंद कहेंगे, इसकी उपर्युक्त मापनी 'वाचिक मापनी' हो जायेगी और छंद की प्रकृति मात्रिक छन्द जैसी हो जायेगी।

वाचिक भुजंगप्रयात छंद पर आधारित मुक्तक-

बहुत प्यार करते कहें हर किसी से।

मिला जो खुशी से मिलें हैं खुशी से।

गरल जो छिपा था दिखाई दिया कब,

मिले मित्र ऐसे कई बेबसी से। -प्रमोद तिवारी हंस

वाचिक भुजंगप्रयात पर आधारित फ़िल्मी गीत-

तुम्हीं मेरे'मंदिर तुम्हीं मेरी' पूजा

वाचिक भुजंगप्रयात पर आधारित शेर-

ये 'दरवाज़ा' खोलें तो' खुलता नहीं है,

इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ। -दुष्यन्त कुमार

वाचिक भुजंगप्रयात छन्द पर आधारित फ़िल्मी गीत-

1 तुम्हीं मेरे'मंदिर तुम्हीं मेरी' पूजा ...

2 वो' जब याद आये बहुत याद आये।

3 जो'उनकी तमन्ना है' बर्बाद हो जा।

4 हमें और जीने की' चाहत न होती।

5 ऐ'फूलों की' रानी बहारों की' मलिका।

6 मुहब्बत की'झूठी कहानी पे' रोये।

7 तुम्हें प्यार करते हैं करते रहेंगे।

8 अकेले-अकेले कहाँ जा रहे हो।

9 ते' रे प्यार का आसरा चाहता हूँ।

10 बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा।

11 अजी रूठकर अब कहाँ जाइयेगा।

12 अगर साज छेड़ा तराने बनेंगे।

(8) बाला एक मापनीयुक्त वर्णिक छंद या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-

वर्णिक मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा

अथवा-212 212 212 2

पारंपरिक सूत्र-राजभा राजभा-राजभा गा (अर्थात र-र र ग)

वर्णिक बाला का उदाहरण-

देखिए आज क्या हो रहा है?

प्रेम-विश्वास भी खो रहा है।

झूठ का है हुआ बोलबाला,

सत्य जाने कहाँ सो रहा है। -स्वरचित

अब यदि इस छंद में गुरु गा के स्थान पर, उच्चारण के अनुरूप, दो लघु लल का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक बाला छंद कहेंगे, इसकी उपर्युक्त मापनी 'वाचिक मापनी' हो जायेगी और छंद की प्रकृति मात्रिक छन्द जैसी हो जायेगी।

वाचिक बाला छंद का उदाहरण-

रोटियाँ चाहिए कुछ घरों को।

रोज़ियाँ चाहिए कुछ करों को।

काम हैं और भी ज़िंदगी में।

क्या रखा इश्क़ आवारगी में। -स्वरचित

वाचिक बाला छन्द पर आधारित फ़िल्मी गीत-

1 रात भर का है 'मे' हमां अँधेरा 2 आज सोचा तो आंसूं भर आए 3 जा रहा है वफ़ा का जनाज़ा

इसी प्रकार बहुत से अन्य वर्णिक छंदों को वाचित रूप में प्रयोग किया जा सकता है, जिनका यहाँ पर मापनी सहित उल्लेख किया जा रहा है-

(9) सुधी–लगालगा

(10) धारि–गालगाल

(11) क्रीडा–लगागागा

(12) रंगी–गालगागा

(13) धरा–गागालगा

(14) रति–ललगागा

(15) यशोदा–लगालगागा

(16) हारी–गागालगागा

(17) सोमराजी–लगागा लगागा

(18) विमोहा–गालगा गालगा

(19) समानिका–गाल गाल-गाल गा

(20) भक्ती–गागाल लगागागा

(21) नराचिका–गागाल गालगालगा

(22) प्रमाणिका–लगालगा लगालगा

(23) मयूरी–गालगाल गालगाल गागा

(24) संयुक्ता–ललगालगा ललगालगा

(25) श्येनिका–गालगाल गालगाल गालगा

(26) विलासिनी-लगालगा लगालगा लगागा

(27) माया–गागागा गागाल, लगागा ललगागा

(28) राग–गालगाल गालगाल-गालगाल गा

(29) मनहंस–ललगालगा ललगालगा ललगालगा

(30) चंचला-गालगाल गालगाल-गालगाल गालगाल

(31) पंचचामर-लगालगा लगालगा-लगालगा लगालगा

(32) मंदारमाला–गागाल गागाल-गागाल गागाल, गागाल-गागाल गागाल गा

(33) वागीश्वरी–लगागा लगागा-लगागा लगागा, लगागा-लगागा लगागा लगा

(34) सर्वगामी-गागाल गागाल-गागाल गागाल, गागाल-गागाल गागाल गागा

(35) गंगोदक–गालगा गालगा-गालगा गालगा, गालगा-गालगा गालगा गालगा

(36) महाभुजंगप्रयात-लगागा लगागा-लगागा लगागा, लगागा-लगागा लगागा लगागा