वस्त्र महिमा, नायिका शस्त्र महिमा / जयप्रकाश चौकसे

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वस्त्र महिमा, नायिका शस्त्र महिमा

प्रकाशन तिथि : 04 सितम्बर 2012

मधुर भंडारकर का कहना है कि उनकी फिल्म 'हीरोइन' की नायिका करीना कपूर के लिए 100 से अधिक पोशाकें लगभग दो करोड़ रुपए में बनीं और उनकी पहली फिल्म 'चांदनी बार' इससे कम बजट में बनी थी, जिसने न केवल मुनाफा कमाया, वरन् पुरस्कार भी जीते। आज फिल्म बनाना अत्यंत महंगा हो गया है, परंतु अब भी कुछ लोग 'विकी डोनर' और अल्प बजट में विद्या बालन अभिनीत 'कहानी' जैसी फिल्में बना लेते हैं। गोयाकि जब कथा के दम पर फिल्म बनाई जाती है, तब ज्यादा बड़े बजट की जरूरत नहीं होती। सिनेमा में ये दोनों शैलियां हमेशा मौजूद रही हैं। हर दौर में सृजनशील लोग सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्में अल्प बजट में बनाते रहे हैं। श्याम बेनेगल ने अपने लंबे कॅरियर के हर दौर में किफायत से फिल्में बनाई हैं। दरअसल बजट का संबंध गुणवत्ता से नहीं है। सैफ अली खान ने अपनी महत्वाकांक्षी 'एजेंट विनोद' में बेहिसाब धन लगाया, परंतु 'कॉकटेल' कम बजट में 'एजेंट विनोद' के घाटे पाटने के लिए बनाई गई थी।

जब अमिताभ बच्चन की तबीयत खराब हुई और यश चोपड़ा की महत्वाकांक्षी 'काला पत्थर' का निर्माण कुछ समय के लिए स्थगित करना पड़ा, तब उन्होंने अपने सहायक रमेश तलवार के आग्रह पर कम बजट की 'नूरी' बनाना स्वीकार किया। यह फिल्म सफल रही, परंतु 'काला पत्थर' को आशा अनुरूप सफलता नहीं मिली। ऋषिकेश मुखर्जी बहुसितारा फिल्में किफायत से बना लेते थे और सितारे भी उनसे अपने बाजार भाव से कम धन लेते थे। इस उद्योग में ही नहीं, सर्वत्र चाह हो तो राह बन जाती है। मधुर भंडारकर ने ही 'पेज-३' जैसी सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्म अत्यंत कम बजट में बना ली थी। उनका कहना है कि वह शिखर सितारे की जीवन-कथा बना रहे थे, अत: इतनी महंगी पोशाकें उनकी कहानी के लिए जरूरी थीं। करीना कपूर ने कहानी सुनकर उसे करने का फैसला लिया था, परंतु अपने मित्र और ड्रेस डिजाइनर मनीष मल्होत्रा से यह मालूम पडऩे पर कि इतनी महंगी पोशाकें बनाई जा रही हैं, यकीनन उन्होंने फिल्म के निर्माण में जोश-खरोश से सहयोग किया होगा। संभवत: मधुर ने फिल्म निर्माण का पुराना आजमाया तरीका अपनाया हो कि नायिका को खुश करके उसको पूरी तरह फिल्म निर्माण में शामिल कर लो। बहरहाल, आज 'हीरोइन' के प्रचार में उसकी कहानी की बात नहीं करके दो करोड़ी पोशाकों की बात की जा रही है। समाज में भी दिखावे का दौर चल रहा है और साध्य को नजरअंदाज करके साधन की महिमा का गान करना इस पूरे कालखंड का चरित्र बन गया है। माल से महत्वपूर्ण है पैकेजिंग, सत्य से महत्वपूर्ण है आंकड़े, जैसे इंडिया टुडे के एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी लिखते हैं कि कोयला घोटाले के आंकड़े आकलन (प्रिजम्शन) हैं, असल घाटा नहीं।

बहरहाल, 'हीरोइन' की कथा महत्वाकांक्षी सुंदर कन्या का शोषण नारी विमर्श का विषय होना चाहिए। श्याम बेनेगल ने 'भूमिका' में मराठी फिल्मों की सितारा हंसा वाडकर की आत्मकथा को आधार बनाकर स्त्री की असहायता और पुरुष की क्रूरता को रेखांकित किया था। मधुर भंडारकर कदाचित मर्लिन मुनरो से प्रेरित हैं। इसके पूर्व 'फैशन' में भी वह इसी तरह की कथा प्रस्तुत कर चुके हैं। इस विषय पर अनेक फिल्में बनी हैं। विजय आनंद की 'तेरे मेरे सपने' में हेमा मालिनी ऐसी सितारा हैं, जिसकी सेहत को खतरे में डालकर उसकी अपनी सगी मां उसे निरंतर काम करने को बाध्य करती है।

नायिकाओं के जीवन पर शोषण की कथा आज की नायिकाओं के जीवन पर लागू नहीं होती। आज करीना कपूर, कैटरीना कैफ और दीपिका पादुकोण इतनी शक्तिशाली और महत्वाकांक्षी हैं कि उनका शोषण कोई नहीं कर सकता, वरन वे शासन और शोषण करने के स्थान पर विराजमान हैं। उनके एक इशारे पर अन्य कलाकारों का चयन या निष्कासन संभव है। एक जमाने में मीना कुमारी अपना नायक तय करती थीं और उन्होंने लगातार उभरते सितारे धर्मेंद्र की सिफारिश की थी। इसके बावजूद कहीं वह निरीह नजर आती हैं, परंतु आज की सितारा तो शक्तिपुंज बन चुकी हैं। उनका अपना मिजाज और मूड महत्वपूर्ण हो चुका है। आज की नायिकाएं स्वयं ही आइटम भी करती हैं और आइटम में माहिर लड़कियां घर बैठी हैं। सुना है कि 'दबंग-2' में करीना आइटम करने जा रही हैं, जिसका अर्थ है कि निर्माता-निर्देशक की पत्नी मलाइका को 'मुन्नी' बनने का अवसर घरेलू फिल्म में संभव नहीं है। बहरहाल, मधुर भंडारकर की 'हीरोइन' में मनीष मल्होत्रा के डिजाइन किए कपड़ों को सितारा बनाया जा रहा है, जैसे बलदेवराज चोपड़ा की 'वक्त' में राजकुमार के सफेद जूतों को प्रचारित किया गया था। कमाई जूते की हो या चमड़ी प्रदर्शन की, वह खाई जा सकती है।