वह अद्भूत दृश्य! / सत्य के प्रयोग / महात्मा गांधी

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एक ओर से रौलट कमेटी की रिपोर्ट के विरुद्ध आन्दोलन बढता गया , दूसरी ओर से सरकार कमेटी की सिफारिशो पर अमल करने के लिए ढृढ होती गयी। रौलट बिल प्रकाशित हुआ। मै एक बार ही धारासभा की बैठक मे गया था। रौलट बिल की चर्चा सुनने गया था। शास्त्रीजी ने अपना जोशीला भाषण दिया , सरकार को चेतावनी दी। जिस समय शास्त्रीजी की वाग्धारा बह रही थी, वाइसरॉय उनके सामने टकटकी लगाकर देख रहे थे। मुझे तो जान पड़ा कि इस भाषण का असर उन पर हुआ होगा। शास्त्रीजी की भावना उमड़ी पड़ती थी।

पर सोये हुए आदमी को जगाया जा सकता है, जागनेवाला सोने का बहाना करे तो उसके कान मे ढोल बजाने पर भी वह क्यों सुनने लगा?

धारासभा मे बिलो की चर्चा का 'फार्स' तो करना ही चाहिये। सरकार ने वह किया। किन्तु उसे जो काम करना था उसका निश्चय तो हो चुका था। इसलिए शास्त्रीजी की चेतावनी व्यर्थ सिद्ध हुई।

मेरी तूती की आवाज को तो भला कौन सुनता ? मैने वाइसरॉय से मिलकर उन्हें बहुत समझाया। व्यक्तिगत पत्र लिखे। सार्वजनिक पत्र लिखे। मैने उनमे स्पष्ट बता दिया कि सत्याग्रह को छोड़कर मेरे पास दूसरा कोई मार्ग नहीं है। लेकिन सब व्यर्थ हुआ।

अभी बिल गजट मे नही छपा था। मेरा शरीर कमजोर था , फिर भी मैने लम्बी यात्रा का खतरा उठाया। मुझमे ऊँची से बोलने की शक्ति नही आयी थी। खड़े रहकर बोलने की शक्ति जो गयी , सो अभी तक लौटी नहीं है। थोड़ी देर खड़े रहकर बोलने पर सारा शरीर काँपने लगता था और छाती तथा पेट मे दर्द मालूम होने लगता था। पर मुझे लगा कि मद्रास मे आया हुआ निमंत्रण स्वीकार करना ही चाहिये। दक्षिण के प्रान्त उस समय भी मुझे घर सरीखे मालूम होते थे। दक्षिण अफ्रीका के सम्बन्ध के कारण तामिल-तेलुगु आदि दक्षिण प्रदेश के लोगो पर मेरा कुछ अधिकार है , ऐसा मै मानता आया हूँ। और , अपनी इस मान्यता मे मैने थोडी भी भूल की है , ऐसा मुझे आज तक प्रतीत नही हुआ। निमंत्रण स्व. कस्तूरी आयंगार की ओर से मिला था। मद्रास जाने पर पता चला कि इस निमंत्रण के मूल मे राजगोपालाचार्य थे। राजगोपालाचार्य के साथ यह मेरा पहला परिचय कहा जा सकता है। मै इसी समय उन्हें प्रत्यक्ष पहचानने लगा था।

सार्वजनिक काम मे अधिक हिस्सा लेने के विचार से और श्री कस्तूरी रंगा आयंगार इत्यादि मित्रो की माँग पर वे सेलम छोड़कर मद्रास मे वकालत करनेवाले थे। मुझे उनके घर पर ठहराया गया था। कोई दो दिन बाद ही मुझे पता चला कि मै उनके घर ठहरा हूँ , क्योकि बंगला कस्तूरी रंगा आयंगार का था, इसलिए मैने अपने को उन्हीं का मेहमान मान लिया था। महादेव देसाई ने मेरी भूल सुधारी। राजगोपालाचार्य दूर-दूर ही रहते थे। पर महादेव ने उन्हें भलीभांति पहचान लिया था। महादेव ने मुझे सावधान करते हुए कहा, 'आपको राजगोपालाचार्य से जान-पहचान बढा लेनी चाहिये।'

मैने परिचय बढाया। मै प्रतिदिन उनके साथ लड़ाई की रचना के विषय मे चर्चा करता था। सभाओ के सिवा मुझे और कुछ सूझता ही न था। यदि रौलट बिल कानून बन जाय, तो उसकी सविनय अवज्ञा किस प्रकार की जाये ? उसकी सविनय अवज्ञा करने का अवसर तो सरकार दे तभी मिल सकता है। दूसरे कानूनो की सविनय अवज्ञा की जा सकती है ? उसकी मर्यादा क्या हो ? आदि प्रश्नो की चर्चा होती थी।

श्री कस्तूरी रंगा आयंगार ने नेताओ की एक छोटी सभा भी बुलायी। उसमे भी खूब चर्चा हुई। श्री विजयराधवाचार्य ने उसमे पूरा हिस्सा लिया। उन्होने सुझाव दिया कि सूक्ष्म-से-सूक्ष्म सूचनाये लिखकर मै सत्याग्रह का शास्त्र तैयार कर लूँ। मैने बताया कि यह काम मेरी शक्ति से बाहर है।

इस प्रकार मन्थन-चिन्तन चल रहा था कि इतने मे समाचार मिला कि बिल कानून के रूप मे गजट मे छप गया है। इस खबरो के बाद की रात को मै विचार करते-करते सो गया। सवेरे जल्दी जाग उठा। अर्धनिद्रा की दशा रही होगी , ऐसे मे मुझे सपने मे एक विचार सूझा। मैने सवेरे ही सवेरे राजगोपालाचार्य को बुलाया और कहा, 'मुझे रात स्वप्नावस्था मे यह विचार सूझा कि इस कानून के जवाब मे हम सारे देश को हड़ताल करने की सूचना दे। सत्याग्रह आत्मशुद्धि की लड़ाई है। वह धार्मिक युद्ध है। धर्मकार्य का आरम्भ शुद्धि से करना ठीक मालूम होता है। उस दिन सब उपवास करे और काम-धंधा बन्द रखे। मुसलमान भाई रोजे से अधिक उपवास न करेंगे, इसलिए चौबीस घंटो का उपवास करने की सिफारिश की जाये। इसमे सब प्रान्त सम्मिलित होगे या नही, यह तो कहा नही जा सकता। पर बम्बई, मद्रास, बिहार और सिन्ध की आशा तो मुझे है ही। यदि इतने स्थानो पर भी ठीक से हड़ताल रहे तो हमें संतोष मानना चाहिये। '

राजगोपालाचार्य को यह सूचना बहुत अच्छी लगी। बाद मे दूसरे मित्रो को तुरन्त इसकी जानकारी दी गयी। सबने इसका स्वागत किया। मैने एक छोटी सी विज्ञप्ति तैयार कर ली। पहले 1919 के मार्च की 30वीं तारीख रखी गयी थी। बाद मे 6 अप्रेल रखी गयी। लोगो को बहुत ही थोडे दिन की मुद्दत दी गयी थी। चूंकि काम तुरन्त करना जरूरी समझा गया था , अतएव तैयारी के लिए लम्बी मुद्दत देने का समय ही न था।

लेकिन न जाने कैसे सारी व्यवस्था हो गयी। समूचे हिन्दुस्तान मे - शहरो मे औऱ गाँवो मे - हडताल हुई ! वह दृश्य भव्य था !