वह कौन थी? / उषा राजे सक्सेना

Gadya Kosh से
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स्ट्रेथम पार्क का वह हिस्सा जिसे रुकरी कहते हैं, मुझे शुरु से बेहद पसन्द था।रुकरी एक वक्त में किसी रोमांटिक अंग्रेज लॉर्ड ने अपनी प्रेयसी बीवी को तोहफे में दिया था। जो एक बहुत खूबसूरत बागीचा है जिसमें बहुत कलात्मक ढंग से हर मौसम में फर्क़ फर्क़ किस्म के फूल खिलाए जाते हैं।चारों तरफ फ़ैली हरियाली, खूबसूरत लॉन, ऊंचे लम्बे दरख्त बीच बीच में लगे फव्वारे, जगह जगह कल कल करते बहते नाले, सर्प सी बल खाती घुमावदार पगडंडियां,कटावदार सीढियां, लताओं और द्रुमों से ढम्के आँख मिचौली खेलते भूल भुलैय्या से अर्धगोलाकार गलियारे, और रास्ते और उनके बीच लाल और गुलाबी फूलों से ढंके आर्चेज,साथ में बेहद मनमोहक गोल आयताकार, चौरस और त्रिकोण क्यारियों में कलात्मक ढंग से उगाये गए मनमोहक फूलों के गलीचे मन को ऐसा लुभाते हैं कि वहीं रम जाने को जी चाहता है। अब यह पब्लिक पार्क है। कोई भी वहाँजाकर प्रकृति के साहचर्य में सारा दिन गुजार सकता है।

मैं अकसर रुकरी के उस बैंच पर बैठा करती हूँ जो अजेलिया और फोरसाईथिया के झाडियों के बीच बडे ही कलात्मक ढंग से छुपा कर रखा गया है। जो मेरे जैसे ही एकान्तप्रिय लोगों के सुविधा के लिये रखी गई होगी। यूं यह जगह बेहद खामोश और महफूज है। काफी लोगों को तो पार्क के इस हिस्से के बारे में पता भी नहीं है।

बात यह थी कि इधर कुछ दिनों से मैं बेहद बेचैन थी, और इस बेचैनी का मतलब जाहिर था कि मेरे अन्दर कुछ पक रहा है और कलम उसे कलमबन्द करने को बेजार था।

खैर वहाँ बैठी मैं इस सोच में थी कि अपने खयालों का शायरी का अन्दाज दूँ या कहानी का, कि एक अजब सी मगर बेहद लुभावनी खुश्बू मेरे नथनों में समा गई। और मैं ने देखा एक खुशगवार औरत जिसके वजूद में कशिश थी,हल्के कदमों से चलती हुई आकर मेरे सामने पडे हुए कटे दरख्त के तने पर बैठ गई। मेरी नजर उसकी नजरों से टकराई, वह हौले से मुस्कुराई। मैं उसकी उम्र का अन्दाजा लगाने ही जा रही थी कि मेरी नजर उसके रंगों के चुनाव और कपडे पहनने के सलीके पर गयी, जो कि बेहद दिलकश था, उसके बाल कटे हुए थे। उसकी नाजुक़ उंगलियों के नाखून रंगे हुए थे, जो उसके वज़ूद को और भी खुशगवार बना रहे थे। वह अपनी उंगलियों से खेल रही थी। अचानक उसकी उंगलियां आपस में उलझ गईं और वह मेरी तरफ मुखातिब होकर मुस्कुराई फिर बोली -

“आप अदीब हैं ना अफसाने लिखती हैं और शायरी भी करती हैं।” मुझे कुछ हैरत सी हुई, फिर मैं ने सोचा शायद मेरे अफसाने उसने रिसालों में पढे हों या मेरी तस्वीर किसी अखबार में देखी हो। फिर भी अपने हमशहर गोरों की तरह चेहरे पर एक अंग्रेजी मुस्कुराहट फैलाते हुए मैं ने कहा - “आपने कैसे पहचाना कि मैं अफसानानिगार हूँ?“ उसने जरा शोख अन्दाज से कहा - “ वैसे ही जैसे आप अपने अफसानों के मौजूं को कहीं भी पहचान लेती हैं फिर उसको लफ्ज़ों का जामा पहना कर दुनिया के सामने रख देती हैं।”मुझे उसके बात करने का ढंग न सिर्फ अच्छा ही लगा बल्कि खासा दिलचस्प भी लगा।

यूं मुझे अजनबी लोगों से बात करने में कम ही मज़ा आता है। सच कहूँ तो कई बार मैं नये लोगों से मिलने में इस कदर कतराती हूँ कि जी चाहता है किसी कंदरा में चलीजाँऊ। यही वजह है कि मुझे पार्क का यह हिस्सा, जो बेहद खामोश है सुनसान है, बेहद अच्छा लगता है। एक बात और है मुझे अकेले और अकेलेपन से कोई डर नहीं लगता।मेरे अफसानों के मौजूं और शायरी के तसव्वुर हमेशा अकेले में ही आते हैं। जो मेरी जिन्दगी को खुशगवार और दिलचस्प बनाए रखते हैं।

खैर उसके बात करने का अन्दाज मुझे इस कदर भाया कि मेरा दिल करने लगा कि वह बोलती जाये और मैं सुनती जाऊं। शायद उसने मेरे खयालों को पढ लिया। और वह कुछ शायराना अन्दाज में बोली -

“ मैं अकसर आपको यहां तन्हाई में बैठे देखती हूँ, और आपके जहन में आते खयालों को पढने की कोशिश करती हूँ।” मैं जरा हैरत में आ गई। मैं ने तो उसे कभी देखा नहीं था फिर भी मैं ने उसी के अन्दाज में उसे छेडते हुए कहा, “यह तो सरासर ज्यादती है, एक तो आप बिलाइजाजत मेरे बेहद अजीज़ और दिली खयालों को पढने की कोशिश करती हैं और फिर मुझे अन्दाज भी नहीं होने देती हैं।” उसकी खूबसूरत गरदन जरा हिली, उसकी आँखे और होंठ जरा मुस्कुराए, फिर जैसे मुझे दावत सी दे रही हो बेहद दिलचस्प अन्दाज में बोली - “उसी का तो मुआवजा देने आई हूँ। आपको एक अजीबोगरीब मगर बेहद सच्ची कहानी सुनाती हूँ जो खुद मुझ पर से गुजरी है।” उसकी आवाज क़ी कशिश ने मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया, और मैं ने दावत कबूल कर ली। वह इत्मीनान से पेड क़े तने पर बैठ गई और कहने लगी -

“ एक बारहसाला लडक़ी जिसकी आँखों में सपने भरे हैं। आरगंडी की बूटे वाली सफेद फिराक पहने, अपनी बडी बहन के साथ किसी जल्से में सबसे आगे की कुर्सी पर बैठी है। मंच पर कई लोग बैठे हैं। उनमें बैठा एक शख्स जिसकी आँखे बेहद गहरी हैं जिसने सफेद लिबास पहन रखा है उसे बहुत अच्छा लगता है। फिर वह एक गीत गाता है - आज नहीं, प्रिय कल कलकल लडक़ी को लगता है कि वह गीत शायर सिर्फ उसके लिये गा रहा है। वह विभोर हो उठती है। उसे शायर की आवाज बेहद दिलकश और वजनदार लगती है। उसकी अदाएं उसके जहन में उतरती जाती हैं। उसे लगता है अचानक उसके अन्दर एक नए कायनात का जन्म हुआ है। जलसा खत्म हो जाता है। वह अभी भी कुर्सी पर बैठी है। उसकी बहन उसे हाथ पकड क़र उठाती है। शायर जो ऊंचे कद का है। उसकी बडी बहन से बातें करता है। अचानक उसने उसकी मौजूदगी का एहसास किया और उसके रुखसार को छुते हुए बोला, बडी प्यारी बच्ची है। और थोडा सा झुक कर उसकी ओर मुखातिब हो कर पूछता है, आपको हमारी गज़ल पसन्द आई? उस बारहसाला लडक़ी के अन्दर कुछ होता है। उसक तन बदन झनझना उठता है। वह शर्मा कर अपनी बहन के दुपट्टे को जोर से खींचती है। एक खुश्बू , अजब सी खुश्बू उसके जहन को सराबोर कर उसमें समा जाती है। लडक़ी की सपनीली आंखें और सपनीली हो जाती हैं। शायर, शायरी, तसव्वुर, खयाल ख्वाब उस लडक़ी की जिन्दगी के तमाम पहलू बन जाते हैं। वक्त वक्त पर उसके जहन में ढेरों सवाल उठते हैं। जिन्दगी की तेज रफ्तार उन्हें हवा में उछाल देती है। उधर जल्द ही बडी बहन का ब्याह हो जाता है, और वह अपने शौहर के साथ चली जाती है। फिर वह अकेली रह जाती है। स्कूल, पढाई,खेल कूद में जिन्दगी भागती जाती है।

उस दिन जब बडी आपा घर आई, बोलीं - अब्बू आपके ब्याह की बात कर रहे हैं कोई है तो बता दो।

वह क्या बताए, उसे आज तक कोई पसन्द ना आया, फिर उसने सोचा, कोई पसन्द तो है? पर है कौन? कहाँ है? क्या नाम है उसका? वह खुश्बू, वह छुअन? वह तन बदन में उठती झनझनाहट? नहीं नहीं उसे शादी नहीं करनी है।शायद एक दिन वह उसे मिल जाएगा, उसे इन्तजार करना है, उस खुश्बू का, उस छुअन का, उस झनझनाहट का, उस सपने का! और उसने बडी आपा से कहा, उसे शादी नहीं करनी है, वह और पढना चाहती है। अब्बू ने थोडी नाराजग़ी के बाद उसकी बात मान ली, और वह कॉलेज में दाखिल हो गई।

और फिर वह उसे उन तमाम चेहरों में ढूंढती रही, जो उसके आस पास थे। वह नहीं मिला, वह खुश्बू नहीं मिली,वह गीत नहीं मिला। उन तमाम लोगों की कोशिशें बेकार गईं जो उसके आस पास थे। कोई उसे लुभा न सका या कोई उसे पसन्द ना आया।

एक दिन तंग आकर अब्बू ने उसका ब्याह अपनी पसन्द के एक खूबसूरत और नेकदिल नौजवान से कर दिया, जिसका विलायत में मकानों के खरीद फरोख्त का कारोबार था।उसके खाविन्द ने उसे पहली नजर में ही पसन्द कर लिया और उसकी नेकनीयती, मासूमियत और पाकीजग़ी पर फिदा हो गया। जल्द ही वह अपने खाविन्द के साथ विलायत आ गई। नया मुल्क, नये तौर तरीके। बिलकुल नई दुनिया।खुद को सम्हालने में उसे काफी वक्त लगा। साथ ही उसे अपने तमाम फरायज क़ा इल्म भी था।

एक दिन उसने एक खासे वक्त में अपने खाविन्द से पूछा- क्या आप वही शख्स हैं जिसका मुझे इंतजार था?उसका खाविन्द उसकी मासूमियत पर निसार होता हुआ बोला - हो सकता है और नहीं भी हो सकता है। ख्वाब ख्वाब होते हैं और हकीक़त हकीक़त होती है, आप नाजुक़ खयालों की मलिका हैं, शायराना दिल रखती हैं और मैं उसकी कदर करता हूँ।”

उसने खुदा से दुआ की अपने नेक और कद्रदान खाविन्द के लिये। यूं जिन्दगी चलती रही। दिन और साल निकलते रहे। इसी बीच उसके दो खूबसूरत बच्चे हुए। वह बच्चों की परवरिश में मसरूफ हो गई। पर उसके ख्वाब, उसके तसव्वुर उसकी आंखों में जवां रहे - वह खुश्बू, वह आवाज उसके ज़हन में जब तब बांसुरी बजाती रही उसका इंतजार कभी ना खत्म हुआ। इसी तरह एक लम्बा अरसा गुज़र गया। उसके बच्चों की शादियां हो गईं। और वो अपनेजोडों के साथ अपने अपने घोंसलों में रहने चले गए। उसके बालों में कहीं कहीं चांदी के रेशे भी झिलमिलाने लगे थे।

फिर एक दिन वह अपने शौहर के साथ जल्से में गई। वह सबसे आगे कुर्सी पर अपने खाविन्द के साथ, सफेद बूटे वाली साडी पहने बैठी है। मंच पर बहुत से शायर बैठे हैं।वह गज़ल सुन रही है। गीत सुन रही है। फिर वह जिसने सफेद लिबास पहन रखा है। जिसके सर पर ढेरों चील से सुफैद बाल हैं, जिसकी आंखें बेहद गहरी हैं, जिसकी आवाज बेहद दिलकश और वजनदार है। वह कोई गीत गाता है।वह अंदाज, वह अदा उसके जहन में उतरती है। और वह खयालों में खो जाती है। मुशायरा खत्म हो जाता है। उसका खाविन्द उसके कन्धें पर हाथ रख कर कहता है, चलिये आपका तआरुफ आज के शाने महफिल से कराते हैं। वह बादलों पर चलती हुई वहाँ तक पहुंचती है। शायर के बदन से एक खुश्बू सी उठती है जो उसकी सांसोंमें समा जाती है। उसे कुछ अजीब सा महसूस होता है। कभी उसे लगता है कि उसका कुछ खो गया है, कभी उसे लगता है कि उसे कुछ मिल गया है। अजीब कश्मकश है। उसे कुछ बेचैनी सी होने लगती हैवह कुछ पकडना चाहती है मगर पकड नहीं पा रही है। वह शायर को आदाब करती है, शायर उसे कबूल करता है और कहता है- आपसे मिल कर बेहद खुशी हुई। उम्मीद करता हूँ आपको हमारी नज्म पसन्द आई।फिर वह कन्धे थपथपा देता है।

वह छूना, उसके अन्दर कहीं गहरे छू लेता है। उसका तन बदन झनझना उठता है। अचानक उसके अन्दर एक बारहसाला लडक़ी आएगंडी की फूलोंवाली झालरदार फिराक पहने नजर झुकाए खडी हो जाती है। वह अपने खाविन्द के कोट का कोना पकड क़र खींचती है। उसका शौहर उसे अपनी बांहों के घेरे में ले कर तसल्ली देता है। वह बादलों पर सवार घर पहुंचती है और अपने शौहर से लिपट जाती है। उसका शौहर उसके प्यार में डूब जाता है। औरत को लगता है कि उसके जिस्म के अन्दर कहीं गहरे में कोई मर्सिया गाता रहा है। और आज वह फूट फूट कर बह निकलेगा। वह खुद को बटा बटा महसूस करती है मगर उसे हर वक्त यह खयाल रहता है कि शौहर इस दुनिया का खुदा होता है। और वह अपने शौहर की छोटी से छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिये अपना जिस्म और जान लगा देती है। इधर उसे अपने जज्बातों पर कोई काबू नहीं रहता है। और वह एक खत शायर के नाम हवाईडाक से भेज देती है। जिसके जवाब का इंतजार उसे हर रोज होता है।

उसकी जहनी हालत दिन पे दिन नाजुक़ होती चली जाती है। और वह दिन रात तस्बीह के दानों में उसका नाम फेरती है। उसकी जिन्दगी का कोई लम्हा ऐसा नहीं जाता जिसमें उसका तसव्वुर ना होता हो। वह खुदा से दुआ करती, अल्लाह उसे सब्र दे, उसे राह दिखाए।

कुछ ही दिनों बाद मुल्क से उसकी आपा का खत आता है कि उसके बेटे की शादी तै हो गयी है। शादी में उसका शिरकत करना बेहद जरूरी है। उसका खाविन्द उसे मुल्क ले जाता है। शादी की गहमा गहमी खत्म होने के बाद वह अपने तमाम अज़ीज रिश्तेदारों से मिलती है, फिर महज इत्तफाकन, एक दिन वह अपने आपको उस कदीमी शायर के रू ब रू खडा पाती है। वह उसका इस्तकबाल करता है।उसके सारे बदन में बिजली सी मचल जाती है। उसका खुद पर से इख्तियार खत्म सा होने लगता है मगर वह खुद को सम्हालती हुई धीमे सुर में कहती है -

'अल्लाह! मैं ने जिन्दगी भर आपका इंतजार किया, आपके खत का मुझे हर रोज इंतजार रहता है। आपसे फक़त एक गुज़ारिश है। खुदा के लिये, आखिरी सफर पर मुझे आवाज दीजियेगा।

शायर जो खामोश खडा था, उसकी उंगलियों का बोसा लेते हुए बोला कि आगे से वह उसके खत का जवाब देगा।

उसने अपने शौहर को बताया कि पिछले दिनों उसकी मुलाकात उस कदीमी शायर से हुई थी। उसके शौहर ने कहा, आपको उनका शागिर्द बन कर उनसे अपनी नज्मों की इस्लाह करानी चाहिये। वह एक नफीस इन्सान और आला दर्जे क़े शायर हैं। उसने कहा - अल्लाह! मैं ने कोशिश तो करी है। और उसकी आंखों में एक बूंद आंसू छलक पडता है। उसके खाविन्द ने प्यार से कहा, हिम्मते मर्दा मददे खुदा और उसके कंधे प्यार से थपथपा देता है।छुट्टियां मना कर कुछ ही दिनों बाद दोनों वापस अपने घर लौट आते हैं।” कहते कहते वह उठ खडी हुई और जल्दी से कहा - “ अल्लाह! देर हो गयी, मुझे चलना चाहिये, मेरा इंतजार हो रहा है।”

अभी मैं कुछ पूछना चाह रही थी, और इसके पहले कि मैं उसे रोकती। वह छोटे मगर तेज क़दम रखती हुई उस दरख्त की ओर बढ ग़ई जिसके नीचे, ऊंचे कद का, चील से सफेद बालों वाला, एक खूशगवार शख्स खडा था। जल्द ही उस शख्स ने उसके कंधों को अपने दाहिने हाथ के घेरों में ले लिया, और पल भर में दोनों मेरी आँखों से ओझल हो गए।

काफी देर तक मैं वहां बैठी उस अद्भुत जोडे क़े बारे में सोचती रही।

उस सारी रात मैं सो नहीं पाई। रात भर उस दिलकश औरत, उस ऊंचे कद वाले खुशगवार शख्स, जिसके बाल चील की तरह सफेद थे, मेरे सपनों में आते रहे। वह अधूरी कहानी मुझे बेचैन करती रही। सुबह उठते ही मेरा इरादा पार्क में डेरा डालने का था, इस उम्मीद में कि शायद वह आ ही जाए और कहानी पूरी होने के साथ साथ, मैं उसकी दिलचस्प शख्सियत का लुत्फ उठाऊं।

अभी मैं ने चाय बनाई ही थी, और पहली चुस्की पीने के लिये प्याला उठाया ही था कि बाहर दरवाजे क़ी घण्टी बजी। तमाम जरूरी और गैरजरूरी खतों के साथ एक मोटा सा रजिस्टर्ड लिफाफा भी था। कौतुहलवश सबसे पहले मैं ने उस मोटे लिफाफे क़ो ही खोला, खोलते ही एक खत मेरी चाय की प्याली में गिरते गिरते बचा। खत किसी अजनबी की बेहद नपी तुली लिखावट में था। उसने मेरी तस्वीर,एक आर्टिकल के साथ अखबार में देखी थी। जिससे उसे जानकारी मिली कि मैं ने लन्दन में एशियन विमेन राईटर्स क्लब की स्थापना की है। और मैं उन तमाम एशियाई औरतों को क्लब में आने की दावत देती हूँ जिन्हें साहित्य में रुचि है ताकि हम औरतें आपस में मिलें और एक दूसरे की जरूरतों को जान और पहचान कर अपने लिये एक साहित्यिक माहौल पैदा कर सकें।

आगे उसने लिखा था, कुछ दिनों पहले उसकी बीवी जो बेहद नेक और पाक ख़यालात की थी की एक हादसे में मौत की गिरफ्त में आ जन्नतनशीं हो गई है। वह इस खत के साथ अपनी बीवी की नज्मों का मसविदा और फोटो भेज रहा है। और साथ ही यह गुज़ारिश करता है कि मैं किसी प्रकाशक से मिल कर इन नज्मों को एक खूबसूरत किताब की शक्ल दे दूँ। वह मेरा बहुत शुक्रगुज़ार होगा।उसकी खुद की सेहत ठीक नहीं है वरना यह तकलीफ वह मुझे नहीं देता।

मैं बेहद अजीब महसूस कर रही थी। जल्दी से मसविदा खोला और जो मेरी नजर फोटो पर पडी ज़ो मसविदे के साथ रखी थी, मैं सकते में आ गई, मेरा सर चकरा गया और मुझे चक्कर सा आने लगायहयह फोटो तो उस दिलकश औरत की है, जो मुझे कल पार्क में अपनी अधूरी कहानी सुना गई थीऔर जिसके लिये मैं रात भर बेचैन रही और वह ऊंचे कद का, चील से सफेद बालों वाला शख्स? जो उसका इंतजार दरख्तों के नीचे कर रहा था वह कौन था?