विकास स्वरूप के उपन्यास पर फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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विकास स्वरूप के उपन्यास पर फिल्म
प्रकाशन तिथि : 16 नवम्बर 2013


विकास स्वरूप की 'क्यूएंडए' पर आधारित 'स्लमडॉग मिलिनियर' ने सफलता का इतिहास रचा था। उनकी किताब 'सिक्स सस्पेक्ट' के फिल्मांकन अधिकार बिके अरसा हो गया है परन्तु उनकी ताजा थ्रिलर 'द एक्सिडेन्टल एप्रेन्टिस' को श्रीराम राघवन निर्देशित करने जा रहे हैं। यह दिल्ली की एक मध्यमवर्गीय युवा कन्या और उद्योगपति के रिश्तों की कहानी है। विकास स्वरूप के थ्रिलर में सामाजिक प्रतिबद्धता होती है। दरअसल किसी भी सामाजिक संदेश को थ्रिलर ढांचे में अच्छे ढंग से गूंथा जा सकता है। दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात पेरिस में थ्रिलर फॉरमेट में मानवीय करुणा की कहानियों पर फिल्में बनीं है। उनकी सिक्स सस्पेक्ट में एक धनाड्य परिवार का बलात्कारी युवा जमानत पर छूटा है और फार्म हाउस में उसका कत्ल हो जा सकता है जहां मौजूद 6 अतिथियों के पास हत्या का कारण है परन्तु कातिल कोई और निकलता है।

इसी परम्परा में उनकी नई किताब में अपराधी को पहचान पाना केवल अंतिम अध्याय में संभव होता है। परिचय के साहित्य और सिनेमा में यह ढांचा बहुत पहले से लोकप्रिय है। इस पुस्तक के फिल्म अधिकार प्राप्त करते समय श्रीराम राघवन ने कहा कि विजय आनंद की 'गाइड' मूल उपन्यास से अलग और बेहतर थी। 'गाइड' का पर्ल एस बक द्वारा बनाया गया अंग्रेजी संस्करण भी विजय आनंद के संस्करण से अलग है।

विकास स्वरूप ने कहा कि हॉल केन के उपन्यास 'मैन्कसमैन' पर बनाई हिचकॉक की फिल्म राजकपूर की 'संगम' से अलग है। दरअसल एक ही किताब पर दो फिल्मकार जुदा फिल्में बना सकते है क्योंकि उनके नजरिये अलग होते हैं, यहां तक कि एक ही फिल्मकार अपनी पुरानी रचना से प्रेरित नई फिल्म मूल से अलग बना सकता है जैसे मेहबूब खान ने अपनी फिल्म 'औरत' 1939 से बेहतर और जुदा फिल्म मदर इंडिया 1956 में प्रस्तुत की। बहरहाल विकास स्वरूप की किताबें प्राय: यथार्थ की कहानी से प्रेरित होती है जैसे जेसिका लाल के कत्ल से प्रेरित है उनकी 'सिक्स कन्विक्ट'। इसलिए इस संभावना को निरस्त नही कर सकते कि कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली में एक युवा महिला पत्रकार का कत्ल हुआ था और उन दिनों उस युवा पत्रकार और नेता प्रमोद महाजन की अंतरंगता की अफवाह भी थी और संभवत: यह ताजा किताब भी उस घटना से प्रेरित हो। इस तरह 'क्यूएंडए' से प्रेरित स्लमडॉग मिलिनियर थी परन्तु उस किताब में अनेक बातें ऐसी हैं जिनका फिल्म में समावेश नही हो पाया।

उपन्यासों पर अनेक फिल्में बनीं हैं। उपन्यास विधा और फिल्म में बहुत अंतर है। कोई भी फिल्म किसी उपन्यास में प्रस्तुत सारी बातों का समावेश कर पाती है। गुरुदत ने बिमल मित्र के उपन्यास की राजनैतिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि का सतही इस्तेमाल 'साहब बीबी गुलाम' में किया क्योंकि उनकी सहानुभूति केवल उस आदर्श पत्नी से है जो अपने पति को वापस पाने के लिए उसके कहने पर शराब पीती है परन्तु पति के लौटने तक वह शराब की आदी हो चुकी है। यह त्रासदी ही फिल्म का केन्द्र है।

श्रीराम राघवन ने सैफ अली खान और उर्मिला मांतोडकर के साथ एक अच्छी फिल्म गढ़ी थी जिसका नाम था 'एक हसीना थी'। परन्तु एजेन्ट विनोद में साधनों की विपुलता और संभवत: निर्माता की दखलंदाजी के कारण उनसे चूक हो गई। कथा के फैलाव से उसकी सघनता नष्ट हो गई।

श्रीराम राघवन बहुत कुशल तकनीशियन हैं और उन्हें माध्यम की गहरी जानकारी है। थ्रिलर और सस्पेंस के मास्टर अल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्मों का उन्होंने गहरा अध्ययन किया है, मसलन उनका कहना है कि 'साइको' की कथा नायक के दृष्टिकोण से भी कही जा सकती थी परन्तु हिचकॉक ने उसे नायिका के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। नाटक में किसी भी पात्र को देखने की स्वतंत्रता दर्शक के पास है परन्तु फिल्म में फिल्मकार क्लोज-अप द्वारा अपने केन्द्र को देखने के लिए दर्शक को बाध्य कर सकता है।