वित्त में अमृतत्व नहीं / विनोबा भावे

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पुरानी कहानी है। याज्ञवलक्य ऋषि के दो पत्नियां थीं। एक सामान्य, संसार में आसक्ति रखनेवाली और दूसरी विवेकशील, जिसका नाम मैत्रेयी था। याज्ञवल्क्य को लगा कि अब घर छोड़कर आत्मचिंतन के लिए बाहर जाना चाहिए। जाते समय उन्होंने दोनों पत्नियों को बुलाया और कहा, "अब मैं घर छोड़कर जा रहा हूं। जाने से पहले जो भी संपत्ति है, आप दोनों में बांट दूं।"

मैत्रयी ने पूछा, "क्या पैसे से अमृत-जीवन प्राप्त हो सकता है?"

याज्ञवल्कय ने जवाब दिया, "नहीं, अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन—वित्त से अमृतत्व की आशा करना बेकार है। उससे तो वैसा जीवन बनेगा, जैसाकि श्रीमानों का होता है। वह तो मृत-जीवन है। अमृत-जीवन की अगर इच्छा है तो आत्मा की व्यापकता का अनुभव करो। सबकी सेवा करो। सबसे एकरुप हो जाओ।"