विदाई सम्भाषण / बालमुकुंद गुप्त

Gadya Kosh से
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माई लार्ड! अन्त को आपके शासनकाल का इस देश में अन्त हो गया। अब आप इस देश से अलग होते हैं। इस संसार में सब बातों का अन्त है। इससे आपके शासनकाल का भी अन्त होता, चाहे आपकी एक बार की कल्पना के अनुसार आप यहां के चिरस्थायी वैसराय भी हो जाते। किन्तु इतनी जल्दी वह समय पूरा हो जायगा ऐसा विचार न आप ही का था, व इस देश के निवासियों का। इससे जान पड़ता है कि आपके और यहांके निवासियों के बीचमें कोई तीसरी शक्ति और भी है? जिसपर यहांवालों का तो क्या आपका भी काबू नहीं है।

बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। आपको बिछड़ते देखकर आज हृदयमें बड़ा दुःख है। माई माई लार्ड! आपके दूसरी बार इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। वह यही चाहते थे कि आप फिर न आवें। पर आप आये और उससे यहांके लोग बहुत ही दुःखित हुए। वह दिन रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहां से पधारे। पर अहो। आज आपके जाने पर हर्ष की जगह विषाद होता है। इसी से जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और कोमल होता है। बैरभाव छूटकर शान्तरस का आविर्भाव उस समय होता है। माई लार्ड का देश देखने का इस दीन भंगड़ ब्राह्मण को कभी इस जन्म में सौभाग्य नहीं हुआ। इससे नहीं जानता कि वहां बिछड़नेके समय लोगों का क्या भाव होता है। पर इस देश के पशु-पक्षियोंको भी बिछड़नेके समय उदास देखा है। एक बार शिवशम्भुके दो गाय थीं। उनमें एक अधिक बलवाली थी। वह कभी-कभी अपने सींगोंकी टक्करसे दूसरी कमजोर गायको गिरा देती थी। एक दिन वह टक्कर मारनेवाली गाय पुरोहित को दे दी गई। देखा कि दुर्बल गाय उसके चले जानेसे प्रसन्न नहीं हुई, वरंच उस दिन वह भूखी खड़ी रही, चारा छुआ तक नहीं। माई माई लार्ड! जिस देशके पशुओंकी बिछड़ते समय यह दशा होती है, वहां के मनुष्योंकी कैसी दशा हो सकती है, इसका अन्दाजा लगाना कठिन नहीं है।

आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आये अन्त में उनको जाना पड़ा। इससे आपका जाना भी परम्परा की चालसे कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासनकाल का नाटक घोर दुःखान्त है और अधिक आश्चर्यकी बात यह है कि दर्शक तो क्या स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखान्त समझकर खेलना आरम्भ किया था, वह दुःखान्त हो जावेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अन्त ऐसे घोर दुःख के साथ कैसे हुआ। आह। घमण्डी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता हूं, किन्तु परदे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं।

इस बार बम्बई में उतरकर, माई लार्ड! आपने जो जो इरादे जाहिर किये थे, जरा देखिये तो उनमें से कौन-कौन पूरे हुए। आपने कहा था कि यहां से जाते समय भारतवर्ष को ऐसा कर जाऊंगा कि मेरे बाद आनेवाले बड़े लाटों को वर्षो तक कुछ करना न पड़ेगा, वह कितने ही वर्षो सुख की नींद सोते रहेंगे। किन्तु बात उल्टी हुई। आपको स्वयं इस बार बेचैनी उठानी पड़ी है और इस देशमें जैसी अशान्ति आप फैला चले हैं, उसके मिटानेमें आपके पदपर आनेवालों को न जाने कबतक नींद और भूख हराम करनी पड़ेगी। इस बार आपने अपना बिस्तर गर्म राख पर रखा है और भारतवासियों को गर्म तवे पर पानी की बून्दों की भांति नचाया है। आप स्वयं भी सुखी न हो सके और यहांकी प्रजा को सुखी न होने दिया, इसका लोगोंके चित्त पर बड़ा ही दुःख है।

विचारिये तो क्या शान आप की इस देशमें थी और अब क्या हो गई। कितने ऊंचे होकर आप कितने नीचे गिरे। अलिफलैला के अलहदीन ने चिराग रगड़कर और अबुलहसन ने बगदाद के खलीफा की गद्दी पर आंख खोलकर वह शान न देखी, जो दिल्ली-दरबार में आपने देखी। आपकी और आपकी लेडी की कुरसी सोनेकी थी और आपके प्रभु महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की चांदीकी। आप दाहिने थे वह बायें, आप प्रथम थे वह दूसरे। इस देश के सब राजा रईसों ने आपको सलाम पहले किया और बादशाह के भाईको पीछे। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊंचा था, हौदा और चंवर छत्र आदि सामान सबसे बढ़-चढकर थे। सारांश यह कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देशमें आपही का दरजा था। किन्तु अब देखते हैं कि जंगीलाट के मुकाबिले में आपने पटखनी खाई, सिरके बल नीचे आ रहे। आपके स्वदेश में वही ऊंचे माने गये, आपको साफ नीचा देखना पड़ा। पदत्याग की धमकी से भी ऊंचे न हो सके।

आप बहुत धीर गम्भीर प्रसिद्ध थे। उस सारी धीरता गम्भीरता का आपने इस बार कौन्सिल में बेकानूनी कानून पास करते और कनवोकेशन में वक्तृता देते समय दिवाला निकाल दिया। यह दीवाला तो इस देश में हुआ। उधर विलायत में आपके बार-बार इस्तीफा देने की धमकी ने प्रकाश कर दिया कि जड़ हिल गई है। अन्तमें वहां भी आपको दिवालिया होना पड़ा और धीरता गम्भीरताके साथ दृढताको भी जलांजलि देनी पड़ी। इस देशके हाकिम आपकी ताल पर नाचते थे, राजा महाराजा डोरी हिलानेसे सामने हाथ बांधे हाजिर होते थे। आपके एक इशारेमें प्रलय होती थी। कितने ही राजोंको मट्टी के खिलौनेकी भांति आपने तोड़ फोड़ डाला। कितने ही मट्टी काठके खिलौने आपकी कृपाके जादूसे बड़े-बड़े पदाधिकारी बन गये। आपके एक इशारेमें इस देशकी शिक्षा पायमाल होगई, स्वाधीनता उड़ गई। बंगदेशके सिरपर आरा रखा गया। ओह इतने बड़े माई लार्डका यह दरजा हुआ कि एक फौजी अफसर उनके इच्छित पदपर नियत न होसका। और उनको इसी गुस्सेके मारे इस्तीफा दाखिल करना पड़ा, वह भी मंजूर हो गया। उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा गया, उल्टा उन्हींके निकल जानेका हुक्म मिला।

जिस प्रकार आपका बहुत ऊंचे चढ़कर गिरना यहां के निवासियों को दुःखित कर रहा है, गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुःखित करता है। आपका पद छूट गया, तथापि आपका पीछा नहीं छूटा है। एक अदना क्लर्क जिसे नौकरी छोड़ने के लिए एक महीनेका नोटिस मिल गया हो नोटिसकी अवधिको बड़ी घृणासे काटता है। आपको इस समय अपने पदपर रहना कहां तक पसन्द है, यह आपही जानते होंगे। अपनी दशापर आपको कैसी घृणा आती है, इस बातके जानलेनेका इस देशके वासियोंको अवसर नहीं मिला। पर पतनके पीछे इतनी उलझनमें पड़ते उन्होंने किसीको नहीं देखा।

माई लार्ड! एकबार अपने कामोंकी ओर ध्यान दीजिये। आप किस कामको आये थे और क्या कर चले? शासकका प्रजा के प्रति कुछ तो कर्तव्य होता है, यह बात आप निश्चय मानते होंगे। सो कृपा करके बतलाइये क्या कर्तव्य आप इस देशकी प्रजाके साथ पालन कर चले? क्या आंख बन्द करके मनमाने हुक्म चलाना और किसीकी कुछ न सुननेका नामही शासन है? क्या प्रजाकी बातपर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी मर्जीके विरुद्ध जिद्दसे सब काम किये चले जानाही शासन कहलाता है? एक काम हो ऐसा बताइये, जिसमें आपने जिद्द छोड़कर प्रजाकी बातपर ध्यान दिया हो। कैसर और जार भी घेरने-घसोटनेसे प्रजाकी बात सुन लेते हैं, पर आप एक मौका तो ऐसा बताइये जिसमें किसी अनुरोध या प्रार्थना सुननेके लिए प्रजाके लोगोंको आपने अपने निकट फटकने दिया हो और उनकी बात सुनी हो। नादिरशाहने जब दिल्लीमें कतलेआम किया तो आसिफजाहके तलवार गलेमें डालकर प्रार्थना करनेपर उसने कतलेआम उसी दम रोक दिया। पर आठ करोड़ प्रजाके गिड़गिड़ाकर बंगविच्छेद न करनेकी प्रार्थना पर आपने जहा भी ध्यान नहीं दिया। इस समय आपकी शासन अवधि पूरी हो गई है, तथापि बंगविच्छेद किये बिना घर जाना आपको पसन्द नहीं है। नादिरसे भी बढ़कर आपकी जिद्द है। क्या आप समझते हैं कि आपकी जिद्दसे प्रजाके जीमें दुःख नहीं होता? आप विचारिये तो एक आदमीको आपके कहनेपर पद न देनेसे आप नौकरी छोड़े जाते हैं, इस देशकी प्रजाको भी यदि कहीं जानेकी जगह होती तो क्या वह नाराज होकर इस देशको छोड़ न जाती?

यहांकी प्रजाने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देखा लिया कि आपकी जिस जिद्दने इस देशकी प्रजाको पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहां तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए। यहांकी प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुःख और कष्टोंकी अपेक्षा परिणामका अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसारमें सब चीजोंका अन्त है। दुःखका समय भी एक दिन निकल जावेगा। इसीसे सब दुःखोंको झेलकर पराधीनता सहकर भी वह जीती है। माई लार्ड! इस कृतज्ञताकी भूमिकी महिमा आपने कुछ न समझी और न यहांकी दीन प्रजाकी श्रद्धा भक्ति अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुःख है।

इस देशके शिक्षितों को तो देखनेकी आपकी आंखोंको ताब नहीं। अनपढ़ गूंगी प्रजाका नाम कभी कभी आपके मुंहसे निकल जाया करता है। उसी अनपढ़ प्रजा में नर सुलतान नामके एक राजकुमार का गीत गाया जाता है। एक बार अपनी विपद के कई साल सुलतान ने नरवरगढ़ नामके एक स्थानमें काटे थे। वहां चौकीदारीसे लेकर उसे एक ऊंचे पद तक काम करना पड़ा था। जिस दिन घोड़े पर सवार होकर वह उस नगर से विदा हुआ, नगरद्वारसे बाहर आकर उस नगरको जिस रीतिसे उसने अभिवादन किया था, वह सुनिये। उसने आंखोंमें आंसू भरकर कहा - "प्यारे नरवरगढ़। मेरा प्रणाम ले, आज मैं तुझसे जुदा होता हूं। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपदके दिन मैंने तुझमें काटे हैं, तेरे ऋणका बदला मैं गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़। यदि मैंने जान बूझकर एक दिन भी अपनी सेवामें चूक की हो, यहांकी प्रजाकी शुभचिन्ता न की हो, यहांकी स्त्रियोंको माता और बहनकी दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जानेकी आज्ञा दे। माई माई लार्ड! जिस प्रजामें ऐसे राजकुमारका गीत गाया जाता है, उसके देश से क्या आप भी चलते समय कुछ सम्भाषण करेंगे? क्या आप कह सकेंगे:-

"अभागे। मैंने तुझसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी जो इस जीवन में असम्भव है, तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा, पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ कमी न की। संसारके सबसे पुराने देश। जब तक मेरे हाथ में शक्ति थी, तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिए कुछ कर सकूं, पर आशीर्वाद करता हूं कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यशको फिरसे लाभ करे। मेरे बाद आनेवाले तेरे गौरव को समझें।" आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातें भूल सकता है, पर इतनी उदारता माई लार्ड में कहां?

['भारतमित्र', 2 सितम्बर, 1905 ई.]