विदाई / एस. मनोज

Gadya Kosh से
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दो दिनों तक नियम निष्ठा से पूजा-अर्चना के बाद सरस्वती माँ की मूर्ति के विसर्जन की तैयारी चल रही थी। मोहल्ले भर के लड़के-लड़कियाँ जमा हो गए थे। डीजे पर आधुनिक पॉप म्यूजिक बजना शुरू हुआ और उस धुन पर लड़कों का समूह नाचते-गाते सरस्वती माँ की प्रतिमा के साथ आगे बढ़ने लगा। लड़कियों के समूह में खड़ी शांभवी सरस्वती माँ के मुंह को बार-बार गौर से देख रही थी। उसे जिस सरस्वती माँ की मूर्ति विसर्जन से पूर्व हँसती-मुस्काती प्रतीत होती थी, वहीं अब उदास और आंखों में आंसू भरी प्रतीत हो गई थी।

मूर्ति विसर्जन जुलूस में वह सरस्वती माँ की मूर्ति के साथ ही चल चली जा रही थी कि उसे लगा सरस्वती माँ उसे बुला रही हैं। वह मूर्ति के और नजदीक चली गई. फिर उसे लगा सरस्वती माँ उससे कुछ कहना चाह रही हैं। वह सरस्वती माँ की मूर्ति वाली गाड़ी पर चढ़ गई और मूर्ति के पास जाकर खड़ी हो गई. लगा कि वह सरस्वती माँ की बातों को सुनने का प्रयास कर रही है। फिर उसे लगा सरस्वती माँ उससे कह रही हैं-बेटी तुमने किसी बेटी की विदाई में बाजा बजाते और घरवाले को खुशी में नाचते-गाते देखा है?

शांभवी नहीं कहते हुए अपना सिर हिलाई.

फिर उसे सरस्वती माँ की आवाज सुनाई दी-बेटी यह पुरुष मानसिकता है, जो सती प्रथा काल से चली आ रही है। उस समय के लोग स्त्रियों को सती बनाने के लिए ले जाते थे तो ढोल बाजे बजाते जाते थे, ताकि एक बनावटी उमंग का माहौल बना रहे, ताकि उस शोर में इस स्त्री के क्रंदन, उसकी चीख-पुकार सुनाई नहीं दे, ताकि उस माहौल में स्त्री की पीड़ा की ओर किसी का ध्यान नहीं जाए, ताकि उसकी पीड़ा को अनसुना किया जा सके. बेटी उस सती प्रथा पर रोक लगी थी, वह मानसिकता बदलने के कारण बंद नहीं हुआ था। इसलिए आज तक भी मानसिकता नहीं बदली है। दो दिन पहले तक जिस स्त्री की पूजा करते थे, आज उसकी विदाई में दुख के बदले उमंग और उत्साह का माहौल है। जानती हो समाज की मानसिकता अभी भी सती प्रथा के दौर वाली ही बनी हुई है।

शांभवी सरस्वती माँ के साथ वार्तालाप में डूबी हुई थी कि किसी ने उसके शरीर पर हाथ रख दिया, जिससे उसकी तंद्रा भंग हो गई, किन्तु सरस्वती माँ के कहे शब्द उसके कान में गूंज रहे थे।