विनयना / पद्मा राय

Gadya Kosh से
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स्कूल नजदीक आ गया है। घडी देखी। न जाने कब के नौ बज चुके हैं। कितनी भी कोशिश कर लूं लेकिन रोज सवा नौ-साढे नौ हो ही जातें हैं। भागते हुए गेट के अंदर घुसी. क्लास रूम एकदम अंदर की तरफ, आंगन के अंत में है। हमेशा की तरह रास्ते में कई बच्चे-कुछ अपने हाथ से व्हील चेयर को ढकेलते हुये तो कुछ के साथ कोई टीचर या वालंटियर हैं उनकी मदद के लिए-अपने-अपने क्लास की तरफ जाते हुए दिखाई दिए. अभी ज़्यादा देर नहीं हुई थी। मेरा क्लास रूम सामने था।

"गुड मार्निंग एवरी बॉडी." कह कर मुस्कुराते हुये मैंने अन्दर प्रवेश किया॥

वे सब ब्रेकफास्ट कर रहें हैं। तानिश को देखकर हंसी आनी ही थी। वह अपने टिफिन बॉक्स पर झुका हुआ बडे चाव से अपना खाना खा रहा था। हमेशा ऐसे ही मगन होकर खाता है तानिश। उसको इस तरह स्वाद लेकर खाते हुए देखकर सच में अक्सर मेरा भी मन उसका खाना खाने का करने लगता है। उसकी मम्मी बडे मन से उसके-उसके लिए टिफिन, पैक करती है। हर दिन कुछ अलग बनाकर उसमे रखती है। उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि उनका बेटा खाने का कितना शौकीन है। तानिश का पूरा ध्यान अपने लंच-बॉक्स की तरफ ही है। लेकिन बावजूद इसके सबसे पहले उसका ध्यान मेरी तरफ गया। उसके हाथ में पैटीस का एक टुकडा था।

मुंह में पैटी लगभग ठूंसते हुए उसने कहा-

"गुड मार्निंग दीदी।"

बाकी बच्चों को भी याद आया कि मुझे विश करने में उनसे देर हो गई है। सबने मेरी तरफ देखकर शर्माते हुए कहा-

"गुड मार्निंग, पद्मा दीदी।"

"हैलो ... पद्मा।"

अमिता हमेशा की तरह लगभग भागती हुई क्लास के अंदर घुसी. अमिता फिजियोथेरीपिस्ट है और हमेशा जल्दी में रहती है।

"कैसी हैं?"

"ठीक हूँ।"

"हैलो, पद्मा दी।"

अंजना की आवाज आलमारी की तरफ से आयी-

"मैं सोच ही रही थी कि आज पता नहीं आप आएंगी भी या नहीं!"

उसने आलमारी बंद कर दी। मैंने देखा-उसके हाथ में कैण्डल और माचिस थी। प्रेयर की तैयारी लगभग पूरी थी।

"आप आ गईं हैं तो अब अच्छा लग रहा है। पता नहीं क्यों हर दिन मुझे आपका इंतजार रहता है।" उसने अपनी कुर्सी खींचते हुए कहा।

उसको इस तरह बोलते हुए सुन कर मैं समझ नहीं पाई कि मैं इसका क्या जवाब दूं। कुछ कहने को था भी नहीं। केवल मुस्कुरा देतीं हूँ। अंजना इस क्लास के बच्चों की क्लास-टीचर है। उसका सारा काम व्यवस्थित और समय से होना ही है। जरा भी इधर-उधर नहीं। बच्चे अपना लंच खत्म कर चुके हैं। उनकी तरफ देखकर बोली-

"अच्छा बच्चों अब ब्रेक फास्ट ओवर, प्रेयर के लिए सब लोग तैयार हो जाओ."

मेरा काम अब शुरू हो गया था। मैने बारी-बारी सबके लंच बॉक्स बंद करके उनके बैग के अंदर रख दिया है। नैपकिन्स से सबका मुंह हाथ पोंछ दिए हैं। बच्चे प्रेयर के लिए अब तैयार हैं। मैने भी एक कुर्सी आगे खींच ली और उस पर बैठ गई. सामने की दीवार पर एक चार्ट जिसमें एक से दस तक अंग्रेज़ी में लिखे हुयें हैं-टंगा है।

अब सब तैयार थे। मोमबत्ती मेज पर बीचों-बीच जल रही थी। बच्चे अपनी-अपनी कुर्सियों में मेज के चारों ओर चुप-चाप बैठें हैं। अंजना की तरफ बहुत ध्यान से, सभी देख रहें हैं।

अब अंजना दीदी बोलीं-

"सब अपनी-अपनी आंखे बन्द कर के अपने हाथ जोड लें।"

बच्चों ने आंखे बन्द करने की हर संभव कोशिश शुरू कर दी। तानिश को कुछ मुश्किल हो रही है। बार-बार आँख दबाकर मूंदने की कोशिश करने के बावजूद उसकी एक आँख खुल जाती है। सबको देखता है-आंखें बंद हैं सबकी। झट से अपनी दोनो आंखें भींचकर बंद कर लेता है। बहुत मेहनत लग रही है उसको इसमें। बेहद कठिन काम है, लेकिन क्या करे करना तो है ही। तानिश ने गलती की-इसका अहसास उसे हो गया है इसलिये गलती करने के बाद क्षमा याचना की मुद्रा में अंजना दीदी की तरफ देखा लेकिन वह ऐसे बैठीं थीं जैसे उन्होंने उसे देखा ही न हो।

मीनू ने आंखें तो बंद कर लीं हैं ठीक तरह से लेकिन उसके हाथ उसकी बात मानने के लिए तैयार नहीं। एक साथ दोनो हाथ जुड ही नहीं पा रहे हैं। बार-बार एक हाथ दूसरे हाथ से दूर भाग जाता है, मुश्किल में है पर कोशिश जारी है।

'विनयना' अद्भुत है, हर काम पूरी तन्मयता से करने की कोशिश करते हुए उसे हमेशा ही देखा है मैंने। आई क्यू लेवल काफी हाई, पर अक्सर पूरी कोशिशों के बावजूद असफल रह जाने पर मैंने कई बार उसकी आंखों में आंसू लहराते देखें हैं। उसका शरीर उसके अपने ही दिमाग का आदेश मानने से इंकार करता है। फिर भी वह बहादुरी के साथ अपनी लडाई लड रही है। अंजना दी ने प्रेयर शुरू कर दी है। मैं भी अपने दोनो हाथ जोडे विनयना के पीछे चुपचाप खडी हूँ।

"ओऽऽम-ओऽऽम-ओऽऽम लोका समस्ता, सुखिनो भवन्तु। ओऽऽम। शान्ति, शान्ति, शान्ति:"।

प्रेयर समाप्त हो चुकी है।

"अब धीरे-धीरे सब बच्चे अपने हाथ आपस में रगडक़र आंखों के पास ले जाएंगे और फिर उन्हें आहिस्ता-आहिस्ता खोलेंगे।" अंजना दी स्वयं भी ठीक उसी तरह से करते हुए कह रहीं थीं।

ज्यादातर बच्चे जो पहले से ही आंखें खोल कर बैठे थे उन्होंने झट से अपनी आंखें बंद कर लीं हैं और अपनी अंजना दीदी की तरह ही सब करने की कोशिश करने में जुट गएं हैं। मुझे हंसी आ रही है। बमुश्किल हंसी रोक कर उन्हें चुपचाप देख रहीं हूँ। अंजना से भी कुछ छिपा नहीं है लेकिन वे गंभीर हैं। बच्चे नहीं जान पाये कि अंजना दीदी ने उन्हें आंखें खोले देखा है। बच्चों के सामने अंजना ज्यादातर गंभीर ही रहतीं हैं।

"हां तो बताओ तुममे से आज कैण्डल कौन बुझाएगा?"

"मैं दीदी" ... "मैं दीदी" कई आवाजें एक साथ सुनायी दीं। कैण्डल बुझाकर बच्चे बहुत खुश होतें हैं, लगता है जैसे कोई किला फतह कर लिया हो। अंजना मुझे देख रही है। निर्णय मुझे लेना है।

"आज तो विनयना की बारी है।" मैंने अंजना की तरफ देखा।

विनयना बहुत खुश है। अंजना ने धीरे से कैण्डल को उठाया और उसके करीब कर दिया।

"मैं कल बुझाऊंगा, नऽऽ दीदी?" साहिल ने बडी उम्मीद के साथ मुझसे पूछा।

"हां साहिल, कल तुम्हारी ही बारी है।"

अब पूरी क्लास का ध्यान विनयना की तरफ। मैं उसके पास रखी एक खाली कुर्सी पर बैठ गई.

"अऽफूऽऽऽ ... अऽफूऽऽऽ" जी जान से लगी है विनयना। उसका 'जॉ मूवमेन्ट' प्रापर नहीं है। मुझे जाने क्यों बेचैनी होने लगी। अचानक जैसे मुझे कुछ होने लगा।

अभी विनयना की कोशिश चल ही रही थी कि अनजाने में मैने भी ठीक उसी समय फूऽऽऽ किया, कैण्डल की लौ तेजी से लहराई और फिर...एक पतली-सी धुएं की लकीर में बदल गई.

अंजना मेरी तरफ देख कर हल्के से मुस्कुरायी। बच्चों ने कुछ नहीं देखा। वे ताली बजा रहें हैं। सब खुश हैं। विनयना ने आज कैण्डल जो बुझा ली है।

"वेरी गुड विनयना," अंजना दी के बोलते ही उसकी निर्दोष आंखों की चमक दुगनी हो गई.

आज पूरे दिन मैं मगन हूँ। बार-बार उसकी आंखों की चमक मुझे दिखाई दे रही है। मेरी खुशी छिप नहीं पा रही है। दिन भर में कई लोग पूछ चुके कि आखिर मेरे इतना खुश होने के पीछे राज क्या है?

"ऐसा तो कुछ भी नहीं है।" कह कर बात टाल दे रही हूँ।

पता नहीं क्यों, बडे से बडा काम करके भी शायद कभी मुझे इतना सुख नहीं मिल पाया है जितना आज अनजाने में किया हुआ यह "फूऽऽऽऽ" दे गया है।