विश्वनाथ मुखर्जी के नाम पत्र / रामधारी सिंह 'दिनकर'

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पटना

२२ मार्च ७२

प्रिय मुखर्जी,

श्री रामेश्‍वरजी टाँटिया लेखकों में लेखक, राजनीतिज्ञों में राजनीतिज्ञ, धनियों में धनी, गरीबों में गरीब, ज्ञानियों में ज्ञानी और मूर्खों में मूर्ख हैं। ठलुआ-क्‍लब की निगाह उन पर सही पड़ी है। ठलुआ-क्‍लब द्वारा अभिनन्दित होने की उनकी योग्‍यता अपार है। एक बात और कह दूँ कि टाँटियाजी कंजूसों के बीच भी कंजूस हैं। पिछली बार जब मैं दिल्‍ली से बिदा ले रहा था टाँटियाजी ने गंगाबाबू से कहा - चलिये आज दिनकरजी को कहीं चाय पिलायी जाय। मैंने कहा, गेलार्ड से कम में काम नहीं चलेगा। टाँटियाजी की सिटृी-पिटृी गुम हो गयी और आखिर चाय पिलाने का कार्यक्रम उन्‍होंने रद्द कर दिया।

उनके शरीर की बनावट में हाथी और ऊँट का संघर्ष है। हाथी ने उन्‍हें पूरा ऊँट बनने से रोक लिया, तो ऊँट ने भी उन्‍हें हाथी बनने नहीं दिया। वैसे टाँटियाजी हाथी और ऊँट, दोनों बनना चाहते थे।

टाँटियाजी थर्ड-क्‍लास में यात्रा कर‍के इस आम राय का खण्‍डन करते हैं कि रेल का तीसरा-वर्ग नरक का वर्ग है। टाँटियाजी का ख्‍याल है कि थर्ड-क्‍लास करोड़पतियों का क्‍लास है। उसमें नींद ज्‍यादा आसानी से आती है। खादी-भण्‍डार में जो कपड़े सबसे खराब होते हैं उन्‍हें टाँटियाजी व्‍यवहार में लाते हैं और जूते भी वे, वही पसन्‍द करते हैं जिन्‍हें और लोग पसन्‍द नहीं करेंगे। सुना है, वे संन्‍यास लेनेवाले हैं, इसलिए नहीं कि संन्‍यास मुक्ति का मार्ग है, बल्कि इसलिए कि संन्‍यासी होने पर वे कम्‍बल पहन सकेंगे। टाँटियाजी को मृगछाला ही पसन्‍द है।

भगवान करें कि टाँटियाजी की मूर्खता और कंजूसी, दोनों की वृद्धि हो।

आपका

दिनकर