शणमुखानंद में दीनानाथ पुरस्कार / जयप्रकाश चौकसे

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शणमुखानंद में दीनानाथ पुरस्कार
प्रकाशन तिथि : 24 अप्रैल 2014


आज, गुरुवार को मुंबई के शणमुखानंद हॉल में दीनानाथ मंगेशकर स्मृति दिवस मनाया जा रहा है और कुछ पुरस्कार भी दिए जाएंगे। सामाजिक कार्य के लिए अन्ना हजारे और अभिनय क्षेत्र में लंबी सफल पारी के लिए ऋषिकपूर तथा गायन में पद्मिनी कोल्हापुरे के पिता को नवाजा जाएगा। ज्ञातव्य है कि दीनानाथ जी मात्र बयालीस की वय में चले गए थे परंतु इतनी कम वय में भी उन्होंने शहर दर शहर जाकर अनेक नाटक प्रस्तुत किए और कुछ फिल्में मराठी भाषा में भी बनाईं। वे रंगमंच के साथ शास्त्रीय संगीत में पारंगत थे। अनेक प्रतिभाशाली लोग कम वय में ही चले जाते हैं जैसे कीट्स, शैली, जयशंकर प्रसाद। इसी तरह अपनी प्रतिभा के दोपहर में जयकिशन और शैलेन्द्र भी नहीं रहे। कहीं ऐसा तो नहीं कि अपनी प्रतिभा के ताप में ये झुलस जाते हैं।

दीनानाथ जी के स्वर्गवास के समय लता की आयु मात्र बारह वर्ष थी और उनके कमसिन कंधों पर परिवार का भार आ गया। पैसों की इतनी कमी थी कि वे मीलों पैदल जाती थीं। उनके पिता से लाभ उठाने वाले अदृश्य से हो गए थे। पिता की शिक्षा और माता के संस्कार उस संकट के समय उनके काम आए।

यह कार्यक्रम शणमुखानंद हॉल में आयोजित किया गया है। शिव के पुत्र कार्तिकेय को 6 मुंह और 12 आंखें प्रदान की गई थीं ताकि वे अपने जन्म देने वाली के विराट स्वरूप को देख सकें। उनका जन्म देवताओं की प्रार्थना पर शक्तिशाली दानवों के संहार के लिए हुआ था। कालीदास का नाटक 'कुमार संभव' उनकी ही कीर्तिगाथा है। दक्षिण भारत में कार्तिकेय के भक्तों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत अधिक है। बहरहाल एक दौर में फिल्म के सारे समारोह इसी हॉल में आयोजित होते हैं। आर्थिक उदारवाद के बाद फिल्म उद्योग में उत्सव के स्थान बदल गए हैं। उत्सव के स्वरूप बदल गए हैं परंतु लताजी अपनी आस्थाओं पर हमेशा की तरह अडिग हैं। यह बताना कठिन है कि क्या आज मध्यमवर्गीय महाराष्ट्रीय परिवारों में कला और रंगमंच के प्रति वही रुझान है जो आज से कुछ वर्ष पूर्व था। इन वर्षों में जीवन शैली में बड़ा अंतर आया है और फूहड़ता की लहरों से कोई भी वर्ग अछूता नहीं है। आज साधारण सा हारमोनियम भी पच्चीस हजार से कम में नहीं आता। कुछ ऐसे भी वाद्ययंत्र हैं जिनका खरीदारी के अभाव में निर्माण ही बंद हो गया है। टेक्नोलॉजी का रथ बहुत कुछ कुचलता हुआ चलता है।

बहरहाल ऋषिकपूर की लंबी पैंतालीस वर्षीय पारी संस्थाओं और सरकारों द्वारा अनदेखी ही गई है। लताजी और राजकपूर के बीच घनिष्ठ संबंध रहे हैं। आज उस ऋषिकपूर को पुरस्कृत करने जा रही हैं जो बचपन में उनकी गोद में खेला है। ऋषिकपूर के जीवन का पहला शॉट लता द्वारा गाये गीत पर श्री 420 में लिया गया था। गीत की पंक्तियां थीं, 'हम न रहेंगे, तुम न रहोगे, फिर भी रहेगी ये निशानियां, दसों दिशाएं दोहराएंगी हमारी कहानियां', फुटपाथ पर रेनकोट पहने तीन नन्हें जा रहे हैं- रणधीरकपूर, रितु और नन्हा ऋषिकपूर। गुजरे पैंतालीस वर्षों में ऋषिकपूर की लगभग सभ्ीा नायिकाओं के लिए लताजी ने पाश्र्वगायन किया है। कपूर-मंगेशकर रिश्ता पुराना है और कुछ ऐतिहासिक सफलताएं भी उन्होंने अर्जित की हैं।

ऋषिकपूर ने राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, जीतेन्द्र की आंधियों के दौर में भी सबसे अधिक एकल नायक हिट फिल्में दी हैं और नायिका केन्द्रित फिल्मों में अपना प्रभाव छोड़ा है जैसे प्रेमरोग, दामिनी, चांदनी इत्यादि। विगत कुछ वर्षों से वे चरित्र भूमिकाएं कर रहे हैं और विविधता का आलम देखिए कि 'अग्रिपथ' में कसाई खलनायक की भूमिका भी विश्वसनीयता से की है। गुरुवार की रात शणमुखानंद हाल में दीनानाथजी के साथ ही राजकपूर का स्मरण भी किया जाएगा। यह सामान्य पुरस्कारों से अलग है। टेलीविजन पर प्रसारण अधिकार बेचने की खातिर आयोजित पुरस्कार महज रस्म अदायगी होते हैं परन्तु यह पुरस्कार भावना से जुड़ा है। यह भी संभव है कि कालीदास का 'कुमार संभव' दीनानाथजी ने मंचित किया हो, ऋषिकपूर के दादा पृथ्वीराज भ्ीा रंगमंच से जुड़े रहे हैं।