शबाना आजमी 62 कैरेट का हीरा / जयप्रकाश चौकसे

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शबाना आजमी 62 कैरेट का हीरा

प्रकाशन तिथि : 17 सितम्बर 2012



शबाना आजमी का 62वां जन्मदिन बहुत ही सादगी से मनाया जा रहा है, क्योंकि उनकी नजदीकी मित्र श्रीमती मोना कपूर का निधन कुछ महीनों पहले ही हुआ है। शबाना के पिता महान शायर कैफी आजमी कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे और शबाना की मां शौकत का जन्म हैदराबाद के एक संपन्न परिवार में हुआ था। कैफी साहब और शौकत की प्रेम कहानी को आप सामंतवाद और माक्र्सवाद का मिलन नहीं कह सकते, परंतु विपरीत राजनीतिक विचारों के बावजूद उनका रिश्ता सारी उम्र गहरी मोहब्बत से बना रहा। शादी के तुरंत बाद शौकत अपने शौहर कैफी साहब के साथ कम्युनिस्ट दल के सदस्यों के बीच अत्यंत छोटे से घर में रहती थीं।

जब शौकत गर्भवती हुईं, तब उनके पति कैफी साहब के खिलाफ गैर-जमानती वारंट था। वह अपराधी नहीं थे, परंतु उनके कुछ राजनीतिक विश्वास थे जिन्हें तत्कालीन सरकार सख्त नापसंद करती थी। कम्युनिस्ट दल के पास पैसे की कमी थी और यह घटना उस दौर की है, जब आज की तरह राजनीतिक पार्टियां बेहद अमीर नहीं होती थीं। इसलिए श्रीमती कैफी को सलाह दी गई कि वह अपना गर्भपात करा लें। वह अपनी जिद पर न केवल कायम रहीं, वरन उन्होंने कम्युनिस्ट दल को विश्वास दिलाया कि वह अकेले अपने दम पर अपनी संतान का पालन-पोषण कर सकती हैं। जरा कल्पना कीजिए कि अगर कम्युनिस्ट मित्रों की सलाह मानी जाती तो दुनिया एक बेहतरीन कलाकार को खो देती!

शबाना का जन्म हुआ, तब जीवन-यापन के लिए शौकत आजमी ने पृथ्वी थिएटर में अभिनय प्रारंभ किया। पृथ्वीराज जी ने अपनी नाटक कंपनी के फंड से नवजात कन्या के लिए आया की व्यवस्था की, ताकि शौकत अपना काम मुतमईन होकर कर सकें। एक तरह से शबाना का शैशवकाल रंगमंच के आंगन में ही बीता है। कैफी साहब ने भी सईद मिर्जा की फिल्म 'नसीम' में एक वृद्ध व्यक्ति की भूमिका निभाई है।

कलाकारों और अपने आदर्श के लिए कष्टमय जीवन का चुनाव करने वालों की संतान शबाना ने अपनी घुट्टी में ही कला के जायफल का स्वाद चखा था, अत: उनके निष्णात कलाकार होने पर कभी आश्चर्य व्यक्त नहीं किया जा सकता। विनय शुक्ला की 'गॉड मदर' में माफिया रानी की भूमिका देखकर श्याम बेनेगल ने कहा कि संभवत: ऐसी कोई भूमिका नहीं, जो शबाना आजमी निबाह न सकें! शायद पुरुष नायक को छोड़कर सभी भूमिकाएं वह आसानी से कर सकती हैं। पूना फिल्म संस्थान से अभिनय में प्रशिक्षित शबाना के पास पारंपरिक नायिका का सौंदर्य नहीं था, परंतु उनकी प्रतिभा को श्याम बेनेगल ने पहचान लिया और 'अंकुर', 'निशांत', 'जुनून', 'मंडी' इत्यादि फिल्मों में विविध भूमिकाएं दीं। शबाना ने अपनी अभिनय प्रतिभा के दम पर कला फिल्मों के साथ ही दर्जनों व्यावसायिक फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने आधा दर्जन अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में अभिनय किया है और इसके साथ ही रंगमंच पर भी सक्रिय रही हैं। शबाना ने अपने अभिनय के साथ ही सामाजिक कार्यों की खातिर धरने दिए, संघर्ष किया है और एक बार भूख हड़ताल भी की है। गोयाकि वह जीवन के सभी पक्षों में सक्रिय रही हैं।

श्रीमती शौकत आजमी ने कैफी साहब के साथ बिताए गए अपने जीवन के आधार पर एक सार्थक किताब लिखी है, जिसे हम उनकी आत्मकथा भी मान सकते हैं। उम्र के 62वें मोड़ पर शबाना आजमी को भी अपनी आत्मकथा लिखने का प्रयास करना चाहिए। उनके ऐसा करने पर हमें महान शायर कैफी साहब की जिंदगी के बारे में ज्यादा जानकारियां प्राप्त होंगी। कैफी साहब अपनी पत्नी की नजर में कैसे थे, यह तो पाठक पढ़ चुके हैं, परंतु शबाना के लिखने से उनके पिता-स्वरूप पर भी रोशनी पड़ सकती है। माता-पिता के अतिरिक्त शबाना के अपने जीवन में बहुत-से उतार-चढ़ाव आए हैं और उनका विवरण प्रस्तुत करना भी अनेक लोगों के जीवन के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकता है। शबाना आजमी ने श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, दीपा मेहता, मीरा नायर के साथ काम करते हुए मनमोहन देसाई और महेश भट्ट के साथ भी फिल्में की हैं। उन्होंने अपनी भूमिकाओं के लिए किस तरह की तैयारी की, इसकी जानकारी उभरते हुए कलाकारों का प्रथ-प्रदर्शन कर सकती है। दरअसल, ईमानदार आत्मकथा लिखना बहुत कठिन काम होता है। एक तरह से यह जीवित अवस्था में किया गया पोस्टमार्टम होता है। आपके अवचेतन में अनेक परतें हैं और उनमें अनेक रहस्य छुपे हैं। अपने तमाम निजी विचारों को आत्मकथा में लिखना कुछ हद तक ऐसा है, जैसे मनुष्य घर के बाहर आम सड़क पर स्नान कर रहा हो। अब यही आत्मकथा लिखने का मुश्किल काम कैफी और शौकत की बेटी के लिए एक जबर्दस्त चुनौती हो सकती है।