शम्मी कपूर-गीता बाली की एक जंगली प्रेम कथा / जयप्रकाश चौकसे

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शम्मी कपूर-गीता बाली की एक जंगली प्रेम कथा


गीता बाली ने एक असफल व्यक्ति से शादी की थी, लेकिन उसका सफल सितारा पति अपने पात्रों का चुलबुलापन और सनकीपन घर भी ले आया। गीता ने अपने पति की तुनकमिजाजी को बड़े प्यार से संभाला। इस काम के लिए कई बार गीता ने पति से बड़े खिलंदड़ का रूप भी धारण किया।ज का युवा वर्ग ‘याहू’ को वेब के संसार से जोड़ता है। कुछ लोग यह जानते हैं कि सितारा शम्मी कपूर नेट इस्तेमाल करने वालों में अग्रणी थे और नेट उपभोक्ताओं के क्लब के अध्यक्ष भी रहे, परंतु ‘याहू’ उस विद्रोही कलाकार का अपना नारा भी था। इसे उन्होंने अपनी पहली भव्य सफल फिल्म ‘जंगली’ के एक गीत के प्रारंभ में लगाया था। शंकर-जयकिशन ने मोहम्मद रफी द्वारा गाए गीत के प्रारंभ में शम्मी कपूर के बाल सखा प्रयागराज से ‘याहू’ कहलवाया था। ‘जंगली’ से न केवल सायरा बानो ने प्रवेश किया वरन् हिंदुस्तानी सिनेमा में रंगीन फिल्में बनना नियमित रूप से प्रारंभ हुईं।

सुपर सितारा पृथ्वीराज कपूर के पुत्र और राजकपूर के छोटे भाई शम्मी कपूर ने पृथ्वी थियेटर से अभिनय क्षेत्र में प्रवेश किया और उनकी एक दर्जन फिल्में असफल रहीं। यद्यपि इन फिल्मों में उनके साथ मधुबाला, सुरैया और नलिनी जयवंत जैसी शिखर नायिकाएं थीं। इन सभी फिल्मों के पात्र उस दौर के चलन के अनुरूप आत्म-दया और आत्मग्लानि से पीड़ित रोने-धोने वाले लोग थे। सफल लोगों के परिवार के इस असफल सदस्य को नैराश्य ने घेर लिया।

दूसरी ओर, लाहौर में बनी फिल्मों की जूनियर कलाकार गीता बाली को मुंबई आने पर केदार शर्मा ने 1948 में नायिका लेकर ‘सुहागरात’ और राजकपूर के साथ सुपरहिट ‘बावरे नयन’ में प्रस्तुत किया, लेकिन जानलेवा गरीबी को सहकर आने वाली गीता बाली ने अच्छी भूमिकाओं का इंतजार नहीं किया और दूसरी र्शेणी की अनेक फिल्मों में अपनी प्रतिभा को जाया किया। उसने हास्य अभिनेता भगवान दादा की अत्यंत सफल ‘अलबेला’ भी की। सन 1953 में गीताबाली अभिनीत तीन फिल्में एक-साथ प्रदर्शित हुईं।

सन् 1953 में शम्मी कपूर अपनी दर्जन भर असफलताओं के शोक में डूबे थे, जब केदार शर्मा ने उनका परिचय गीता बाली से कराया। खिलंदड़ स्वभाव की, सदा मुस्कुराने वाली, प्रसन्नचित गीता की संगत ने शम्मी को नैराश्य से उभारा। वे दोनों ही दिमाग के बदले दिल की सुनने वाले लोग थे जो कठिनतम निर्णय भी तुरंत ही कर लेने वाले थे। आधी रात को उन्होंने विवाह का निर्णय लिया। दक्षिण बंबई के शमशानगृह बाण गंगा के निकट एक मंदिर में उन्होंने विवाह कर लिया।

विवाहित जीवन के अपने उत्तरदायित्व होते हैं, जिसे निभाना पड़ता है। शम्मी, शशधर मुखर्जी से मिलने गए। मुखर्जी ने शम्मी की छवि को बदलकर एक विद्रोही सितारे के रूप में ‘तुम सा नहीं देखा’ में प्रस्तुत किया। इस नई खिलंदड़ छवि में जेम्स डीन और एल्विस प्रिस्ले का गहरा प्रभाव था। शम्मी की इस नई जिंदादिल छवि को दर्शकों ने सराहा और ‘दिल देके देखो’ तथा सन् 1961 में ‘जंगली’ की सफलता से शम्मी अपने समकालीन कलाकारों से अलग छवि वाले सितारे बन गए। सिनेमा में रंग के साथ राधा आई और नेहरूकाल का सामाजिक प्रतिबद्धता का सिनेमा पिछली सीट पर चला गया।

गीता बाली ने एक असफल व्यक्ति से शादी की थी, लेकिन उसका सफल सितारा पति अपने पात्रों का चुलबुलापन और सनकीपन घर भी ले आया। गीता ने अपने पति की तुनकमिजाजी को बड़े प्यार से संभाला। इस काम के लिए कई बार गीता ने पति से बड़े खिलंदड़ का रूप भी धारण किया।

दरअसल, सितारों की पत्नियों की भूमिका कठिन होती है। एक दशक बाद डिंपल ने सुपर सितारे राजेश खन्ना से विवाह किया और निरंतर असफल होते पति की कड़वाहट को जज्ब करने का प्रयास किया।

गीता ने राजिन्दर सिंह बेदी के अमर उपन्यास ‘एक चादर मैली सी’ पर आधारित ‘रानो’ नामक फिल्म का निर्माण उभरते सितारे धर्मेन्द्र के साथ किया, लेकिन फिल्म के अस्सी प्रतिशत बनने के बाद वे स्मॉल पॉक्स से पीड़ित हुईं। बचपन में टीका नहीं लगने के कारण र्मज घातक सिद्ध हुआ और मात्र छत्तीस वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार उसी बाण गंगा में हुआ, जिसके निकट के मंदिर में ग्यारह वर्ष पूर्व उनका विवाह हुआ था। इस तरह दो खिलंदड़ों का प्रेम त्रासदी में समाप्त