शरीर और आत्मा / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी

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(अनुवाद :सुकेश साहनी)

वे दोनों बालकनी में बनी खिड़की में एक दूसरे से सट कर बैठे हुए थे। लड़की ने कहा, "आइ लव यू! यू आर हैंडसम, तुम्हारे पहनावे पर कौन न मर मिटे, फिर तुम्हें किस बात की कमी है।"

लड़के ने कहा, "मैं भी तुम्हें प्यार करता हूँ, तुम किसी खूबसूरत विचार की तरह हो, जो हाथ से नहीं पकड़ा जा सकता। तुम मेरे स्वप्नों में तैरते गीत जैसी हो।"

लड़की झटके से अलग हो गई और तुनककर बोली "रहने दो। मैं न तो कोई विचार हूँ और न ही तुम्हारे सपनों में घूमने वाली चीज। मैं एक लड़की हूँ। मैं समझती थी कि तुम मुझे अपनी पत्नी और अपने होने वाले बच्चों की माँ के रूप में चाहते हो।"

दोनों अलग हो गए.

लड़के ने मन ही मन कहा, 'एक और सुन्दर सपना गहरी धुंध में बदलकर रह गया।'

लड़की कह रही थी, 'अच्छा हुआ, ऐसे आदमी का क्या भरोसा जो मुझे विचार और गीत के रूप में देखता हो।'