शादी नामक व्यवसाय की व्यापकता / जयप्रकाश चौकसे

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शादी नामक व्यवसाय की व्यापकता
प्रकाशन तिथि : 12 अक्तूबर 2019


नवंबर से भारत वर्ष में शादी समारोह प्रारंभ होंगे। शादियों के लिए की गई खरीदी से सुस्त पड़े बाजार भी अंगड़ाई लेने लगेंगे। कोमा में पड़ी अर्थव्यवस्था जाग जाएगी। भारतीय समाज की तरह भारतीय सिनेमा भी शादी प्रधान रहा है। आदित्य चोपड़ा की फिल्म 'दिल वाले दुल्हनिया' इस श्रेणी की सफलतम फिल्म है। राजश्री प्रोडक्शन भी विवाह केंद्रित फिल्में बनाता रहा है। इस विषय का महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारवाद भी उसी समय प्रारंभ किया था। कई अलग बातों के प्रभाव से एक विचारधारा का जन्म होता है। विज्ञान की रफ्तार तेज है परंतु मानव समाज अपनी मध्यम चाल से चलते हुए कुछ ग्रहण करता है। समाज द्वार छोड़ा हुआ भी अपना महत्व रखता है। पानी के जहाज में रेत से भरी बोरियां रखी जाती हैं और लहरों के उत्तुंग होने पर आवश्यकतानुसार कुछ बोरियां समुद्र में फेंक दी जाती हैं, जिन्हें फ्लोटजैम कहते हैं। जहाज के चलते रहने की प्रक्रिया में फेंकी जाने वाली रेत की बोरियों का भी महत्व है गोयाकि पानी के जहाज में 'एक छोटा रेगिस्तान' भी साथ-साथ चलता है। शायद इसीलिए ऊंट को 'शिप ऑफ डेजर्ट' भी कहा जाता है।

बहरहाल, शादी के आयोजन में महीनों पहले ही बैंड की बुकिंग करनी होती है। हर कस्बे और शहर में बैंड सीमित हैं। बैंड बजाने वाले वर्ष में कुछ महीने घर बैठे रहते हैं परंतु काम मिलते ही उन्हें वर्षभर के लिए कमाई करनी पड़ती है। कुछ परिवारों में उम्रदराज व्यक्ति की शवयात्रा के समय बैंड बाजे वालों को बुलाया जाता है गोयाकि यह शवयात्रा भी एक बारात ही है और मृत्यु को वरा गया है। भारतीय समाज को समझना आसान नहीं है। एक क्षेत्र में अमीर व्यक्ति के मरने पर धन देकर व्यावसायिक रोने वालों को बुलाया जाता है। इसी विषय पर 'रुदाली' फिल्म बनी थी परंतु क्या रुदाली दल के किसी सदस्य की मृत्यु पर अमीर व्यक्ति उसका मातम मनाने आता है? साधन संपन्न व्यक्ति केवल बारातों में शरीक होते हैं, शवयात्रा में नहीं जाते।

शादी व्यवस्था ने नए कारोबार को जन्म दिया है। यह संस्था शादी के सारे काम करने की जवाबदारी लेती है। निमंत्रण-पत्र से लेकर शादी के बाद का सारा तामझाम समेटना उसमें शामिल होता है। आदित्य चोपड़ा ने इसी विषय पर अत्यंत मनोरंजक फिल्म 'बैंड, बाजा और बारात' बनाई थी। अनुष्का शर्मा और रणवीर सिंह को इसी फिल्म से अवसर मिले थे। विवाह आयोजन कराने वाले होते है तो टूटते विवाह बचाने वाले मैरिज काउंसलर भी होते हैं। विवाह नामक कारखाने में बाय-प्रोडक्ट भी होता है। अमीर घराने अपने परिवार के शादी समारोह में खूब धन देकर किसी फिल्मी सितारे को आमंत्रित करते हैं। सितारों की कमाई का दायरा बड़ा व्यापक है। विश्व के एक धनवान व्यक्ति के परिवार में वहां के गीत-संगीत व्यवस्था की जवाबदारी जावेद अख्तर ने ली थी। उन्होंने इसे व्यावसायिक रूप से किया।

एक समूह में विवाह ब्रोकर भी होते हैं। उनके पास अमीर घरानों के अविवाहित लोगों का पूरा विवरण होता हैं और विवाह में खर्च राशि का कुछ प्रतिशत धन वे बतौर कमीशन लेते हैं परंतु विवाह टूटने पर वे कमीशन की राशि लौटाते नहीं हैं। उनका सिद्धांत है कि लिया गया धन लौटाया नहीं जाएगा। लेकर दिया तो क्या खाक कमाया।

हमें स्मरण रखना चाहिए कि सभी कामों में कमीशन लिया जाता है। विश्व की हथियार मंडी में भी यह लिया जाता है। जेपी दत्ता की एक फिल्म में इस आशय का संवाद था कि हर कालखंड में बिचौलिए हुए हैं और बिचौलिया कभी नष्ट नहीं होने वाली संस्था है।