शाप / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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"जब से तनख़्वाह ज़्यादा मिलने लगी है, इन मास्टरों के दिमाग़ भी आसमान पर चढ़ गए हैं। हमारा बिल्लू दो नम्बरों से फ़ेल होगया। हम मास्टर को दो हज़ार रुपये देने के लिए तैयार थे। बिल्लू के पापा जेब में नोट रखे चक्कर काटते रहे। मास्टर ऐसा निगोड़ा निकला कि माना ही नहीं"-बिल्लू की माँ अपनी सहेली चम्पा को बता रही थी।

"घूस हर आदमी नहीं लेता"-चम्पा बोली

"मैं तो भगवान् से मनाती हूँ कि ऐसे कलमुँहे एक-एक पैसे के लिए तरसें। भीख भी न दे कोई इन्हें"-बबलू की माँ फुफकार उठी।