शाहरुख खान : ट्रॉफी के तलबगार नहीं / जयप्रकाश चौकसे

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शाहरुख खान : ट्रॉफी के तलबगार नहीं
प्रकाशन तिथि : 18 जून 2013

'रा-वन' के प्रदर्शन के बाद से शाहरुख खान ने मीडिया से दूरी बना ली थी और ट्वीट करना भी बंद कर दिया था। वे अब अपनी नई फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' के प्रदर्शन पूर्व मीडिया से बात कर रहे हैं और उन्होंने ट्वीट भी जारी कर दिया है। उनका कहना है कि उनकी कही बातों को तोड़-मरोड़कर प्रकाशित किया गया और प्राय: उनके कथन का गलत मतलब निकाला गया। वे इस बात से थक गए थे कि कहीं जाएं तो पूछा जाता है कि क्या मकसद था वहां जाने का और ना जाओ तो लिखा जाता था कि क्यों नहीं आया। यह सब सितारा होने की कीमत है, जो हर सितारे को चुकानी पड़ती है। निजता की रक्षा इस खेल में कठिन है और सांस्कृतिक शून्य को अर्थहीन बातों से ही भरा जाता है। सुपरसितारा छींके तो देश में शीत लहर के छाने की बात करने वालों की कमी नहीं है। दरअसल, 'रा-वन' के अति प्रचार और फिल्म की कमतरी के कारण विपरीत प्रतिक्रिया ने शाहरुख को विचलित कर दिया था। सितारा विचलित होता है तो उसे लगता है, सारा आकाश घूम रहा है। सितारा स्वयं को एक संसार से कम नहीं समझता। इस खामोख्याली को उनका दोष नहीं माना जा सकता, क्योंकि सितारे की हर अदा पर करोड़ों लोग डोलते हैं। सितारे का जादू दर्शक के सिर चढ़कर बोलता है और दर्शक का जुनून सितारे के दिमाग पर अहंकार बनकर छा जाता है।

शाहरुख खान का विचार है कि कुछ लोग यह मानते हैं कि शाहरुख सब कुछ कर सकता है और उसके पास कोई जादू है - यह स्थिति भ्रामक हो सकती है, परंतु शाहरुख का कहना है कि वह उन लोगों के विश्वास पर यकीन करके वह अजूबा कर दिखाते हैं, जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती है। इसी बात को कुछ अलग अंदाज में उन्होंने अपनी 'ओम शांति ओम' के एक संवाद में कहा है कि जब किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात आपकी मदद करती है और चीज मिल जाती है। उनका ताजा बयान और गुजश्ता फिल्म के संवाद से लगता है कि उन्हें अपनी अजूबा कर दिखाने की क्षमता पर सचमुच यकीन है। इसी बात को कुछ भाषा की गलती के साथ वे अपनी पहली हिट में भी कह चुके हैं कि जो हारी बाजी को जीत में बदल दे, उसे बाजीगर कहते हैं। दरअसल, हार को साहस से जीत में बदला जाता है और बाजीगर तो भ्रम रचता है, ट्रिक्स दिखाता है। भाषा की शुद्धता व्यावसायिक सिनेमा से बहुत पहले निरस्त की जा चुकी है।

बहरहाल, अपने बयान में ही वे सफाई भी देते हैं कि यह स्थिति भ्रामक है। शिद्दत से चाहना स्वाभाविक है, परंतु मिल जाना कभी-कभार ही संभव होता है और उसके पीछे तथ्य और तर्क होता है। वह जादू नहीं है, हाथ की सफाई नहीं है, कोई बाजीगरी नहीं है। अपने इस बयान में उन्होंने बड़ी साफगोई से कहा है कि अब वक्त आ गया है कि वे स्वयं को पूरी तरह से जान लें अर्थात अजूबा घटित करने के भ्रम से मुक्त हो जाएं। दरअसल, असल महानता साधारण होकर बड़ा काम कर जाने में है। सारी दुनिया के महाकाव्य महान योद्धाओं की जय-पराजय की गाथाएं हैं, परंतु सिनेमा ने आम आदमी को नायक बनाकर अनेक महाकाव्य रचे हैं।

पत्रकार अफसाना अहमद के प्रश्न के जवाब में शाहरुख कहते हैं कि वे ज्योतिष में यकीन नहीं करते और उनका अच्छा या बुरा वक्त सीधे उनके अपने निर्णय और कार्य का परिणाम है। उनकी इस बात से उनका आत्मविश्वास झलकता है और साथ ही उनके तर्क द्वारा शासित मनुष्य का रूप सामने आता है, परंतु अगले ही वाक्य में वे कहते हैं कि सभी धर्म यह मानते हैं कि ईश्वर-इच्छा से ही सब कुछ होता है। अगर यही सही है तो वे शनिदशा या अन्य किसी ग्रह-नक्षत्र के योग से क्यों डरें। वे ईश्वर-इच्छा को मानते हुए यह यकीन करते हैं कि उनका अच्छा-बुरा उनके अपने कार्यों का नतीजा है। अपने आत्मविश्वास में ईश्वर-इच्छा को परमस्वरूप में ग्रहण करके उन्होंने अत्यंत सुरक्षित खेला है।

शाहरुख खान दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आए हैं। उनके पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं। उन्होंने अपने आत्मविश्वास से ही इस अपरिचित संसार में प्रवेश किया और कड़े संघर्ष के बाद उन्हें 'फौजी' सीरियल में काम मिला। अजीज मिर्जा को पहली मुलाकात में ही उसमें सितारा संभावना दिखी और उन्होंने न केवल उनकी हौसला अफजाई की वरन् 'राजू बन गया जेंटलमैन' में अवसर भी दिया। समानांतर नायक की भूमिका में दिव्या भारती के साथ उनकी 'दीवाना' सफल रही। अपने प्रारंभिक दौर में अजीज मिर्जा और जूही चावला, जो उस समय तक सफल सितारा हो चुकी थीं, उनके अभिन्न मित्र रहे और रिश्ते कायम हैं, भले ही रास्ते अलग-अलग हो गए हों।

उनका कहना है कि सम के साथ दुनिया बदल गई है और उनका अपना व्यवसाय भी बदला है। परिवर्तन की तीव्र गति को वे समझ नहीं पा रहे हैं। वे अपना काम पहले वाले जोश से ही कर रहे हैं, परंतु अब उनकी प्राथमिकता उनकी अपनी खुशी है और सभी को खुश करने के ख्याल से वे मुक्त हो चुके हैं।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आदित्य चोपड़ा और करण जौहर से उनके संबंध पहले की तरह ही हैं और उनका अन्य नायकों के साथ काम करने को शाहरुख स्वाभाविक मानते हैं। उनका कहना है कि अपने मित्रों के निजत्व और स्वतंत्रता का वे सम्मान करते हैं और उन्होंने मीडिया की इस बात का जोरदार खंडन किया कि फिल्म उद्योग खेमों में बंटा हुआ है।

शाहरुख खान की बातों से ऐसा लगता है कि दौड़ में शामिल होते हुए भी वे ट्रॉफी के तलबगार नहीं हैं, जैसे कोई बाजार से गुजरे और खरीदार न हो। इस समय वे उस देवदास की तरह ध्वनित हो रहे हैं, जिसे पारो से जुदाई से ज्यादा बोतल खाली होने का दुख हो। शाहरुख खान अपनी कामयाबी को अपने कार्य का परिणाम बताते हुए संभवत: यह नजरअंदाज कर रहे हैं कि आर्थिक उदारवाद के द्वारा बनाए समाज, बाजार तथा प्रचार ने भी उनकी सहायता की है, विनाशी विकास मॉडल ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हर व्यक्ति की सफलता में कुछ अदृश्य पात्र होते हैं।