शीशा / रमेश बतरा

Gadya Kosh से
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-- सुनो, कल रात मैंने सपने में देखा कि एक पर्स लेकर बाज़ार में घूम रही हूँ ।

-- कल तुम शॉपिंग पर नहीं जा पाई थी न !

-- तुम्हीं ने तो रोक लिया था ।

-- बस, यही बात तुम्हारे मन में रह गई और तुम्हारा अवचेतन मन तुम्हें शॉपिंग पर ले गया ।

-- पर,एक बात समझ नहीं आई कि मैं नंगी ही क्यों घूम रही थी ?

-- क्या... कह रही हो !

-- हाँ, मैंने देखा कि मैं नंगी हूँ और लोग मुझे घूर रहे हैं ।

-- ओह हो ! तब तो तुम्हें बहुत शर्म आई होगी ?

-- सच्च ,बहुत शर्म आई। मेरा पर्स इतना गन्दा और फटा पुराना था, जैसे कूड़े में से उठा कर लाए हों ।

इससे पहले कि सामनेवाला उसका मुँह ताकता हुआ कुछ कह पाता उसने फ़ैसला दिया की आज की शॉपिंग में वह एक नया पर्स भी ज़रूर ख़रीदेगी ।