शुक्ल का पत्र श्री वियोगी हरि के नाम

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

10.05.1929

प्रियवर,

नमस्कार।

आशा है आप सर्वथा प्रसन्न होंगे। हिन्दी साहित्य का इतिहास, जो हाल में मैंने 'शब्दसागर' की भूमिका के रूप में लिखा है, सेवा में भेजता हूँ। आप कृपया इसका अन्वेषण कर जाइए। इसमें विभाग आदि मैंने नए ढंग से किया है। मिश्रबन्धु इस पर बहुत कुढ़े हैं और अनेक रूपों में मुझ पर आक्रमण का उपक्रम कर रहे हैं। आप इस पुस्तक के सम्बन्ध में अपना कुछ मत अवश्य प्रकट कीजिए।

भवदीय,

रामचन्द्र शुक्ल

[श्री वियोगी हरि की पुस्तक 'विनयपत्रिका की हरितोषिणी टीका' की भूमिका आचार्य शुक्ल ने 'परिचय' शीर्षक से लिखी थी। वे वियोगी हरि की विद्वता से प्रभावित थे। इस पत्र से यह संकेत मिलता है कि 'शब्दसागर' की भूमिका के रूप में लिखे गए 'हिन्दी साहित्य का विकास' पर उनका मत जानने के लिए शुक्लजी उत्सुक थे.]