शुक्ल के पत्र पं. अयोध्यानाथ शर्मा के नाम

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(1)

दुर्गाकुंड

4.3.1932

बनारस सिटी

प्रिय अयोध्यानाथ जी,

अनेक आशीर्वाद।

मैं समझता हूँ आगरा यूनिवर्सिटी के हिन्दी बोर्ड की मीटिंग अभी न हुई होगी। पंडित कृष्णानन्दजी पन्त कई महीने हुए मेरे यहाँ आए थे। उस समय मेरे यहाँ यह चर्चा हो रही थी कि बाबू श्यामसुन्दरदास का विचार है कि मेरा लिखा 'गोस्वामी तुलसीदास' नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा न छापा जाय। पन्तजी यह बात यहाँ से सुन कर गए थे।

बाबू साहब ने हिन्दू विश्वविद्यालय की बोर्ड की मीटिंग में इस बात का दबा प्रयत्न किया था कि मेरी वह पुस्तक हटाई जाय। इस पर बड़ा विरोध हुआ और पुस्तक नहीं हटाई गई। आप इस बात का ध्यान रखिएगा कि वह पुस्तक 'गोस्वामी-तुलसीदास' आगरा यूनिवर्सिटी से न हटने पाए। जब दोनों यूनिवर्सिटी में वह पुस्तक ज्यों की

त्यों रहेगी तब बाबू साहब को नागरीप्रचारिणी सभा में यह प्रस्ताव करने के लिए कोई आधार न रह जाएगा कि पुस्तक न छापी जाय।

बाबू साहब ने जो तुलसीदास की जीवनी लिखी या संकलित कराई है, वह आपने देखी होगी। उसमें सिवा इसके कि तुलसीदासजी यहाँ गए, वहाँ गए, मुर्दे जिलाए कुछ भी मैटर ऐसा है जो इस Standard (स्टैंडर्ड) का हो कि बी. ए. आदि के कोर्स में रखा जा सके?

भवदीय,

रामचन्द्र शुक्ल


(2)

दुर्गाकुंड

बनारस सिटी

10.3.1934

प्रिय शर्माजी,

अनेक आशीर्वाद।

कुछ दिन हुए बाबू श्यामसुन्दरदास जी ने यह खुशहाली सुनाई कि अब तो मि. हरिहर नाथ टंडन भी बोर्ड ऑफ स्टडीज (Board of studies) के मेम्बर हो गए। न जाने क्यों यह खबर मुझे धमकी सी जान पड़ी। मुझे अब भी यही भावना होती है कि उन्हें आगरा यूनिवर्सिटी (Agra University) की उक्त कमेटी में बाबू श्यामसुन्दरदास को प्रसन्न करने के अनेक अवसर मिला करेंगे। बाबू साहब किन-किन बातों से प्रसन्न हुआ करते हैं, यह तो आप अच्छी तरह जानते होंगे। आपको मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि आप सब बातों पर पूरी दृष्टि रखें। उक्त कमेटी में आपके रहने से मैं एक प्रकार से निश्चित हूँ।

Board of Studies की बैठक हो गई या अभी होने वाली है? यदि हो गई हो तो कृपया लिखिए कि मेरे ऊपर कोई विशेष कृपा तो नहीं हुई। मुझे पूरा भरोसा है कि आप तथा कमेटी के अन्य सदस्य मेरे साथ कोई अन्याय न होने देंगे बस,

अब इस बात की आवश्यकता प्रतीत होती है कि आप समय समय पर सब बातों की सूचना मुझे देते रहें।

आपका

रामचन्द्र शुक्ल