शुक्ल के पत्र श्री रायकृष्ण दास के नाम

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(1)

बनारस सिटी

20.3.11

प्रियवर रायसाहब

आपका 12 ता. का लिखा हुआ कार्ड आज मिला। इसके पहले एक और पत्र आया था पर आपका पता ठीक न जानने के कारण उत्तर न दे सका था।

पत्र निकालिए, मैं मदद देने के लिये हर तरह से तैयार हूँ। कब से निकालिएगा? क्या नाम होगा? इन सब बातों का तो आपने निश्चय कर लिया होगा।

पाठकजी मुझसे कल मिले थे। आजकल बा. रामप्रसन्न घोष की बीमारी के कारण व्यग्र रहते हैं और इधर-उधार कम दिखाई पड़ते हैं। मिलने पर आपकी लिखी सब बातें उनसे कह दूँगा।

सभा के कार्यकर्ताओं की अहंमन्यता दिन-दिन बढ़ती जाती है पर अभी फिर मेरे पास तक नहीं पहुँची है, नहीं तो उपचार का आरम्भ हो जाता। पं. रामनारायण मिश्र ने उस दल से अपने को अलग कर लिया है। पर गौरीशंकर प्रसाद अभी नहीं सम्भल रहे हैं।

आपका

रामचन्द्र शुक्ल


(2)

शिवाला घाट

बनारस सिटी

6-6-11

प्रियवर

रायसाहब

आशीर्वाद।

आपका पत्र पाठकजी ने दिया था। मुझे 'सरोज' से पूरी सहानुभूति है। उसके लिए मैं सब कुछ करने के लिये तैयार हूँ आप निश्चय रखिये। लेख मैं आपको अवश्य दूँगा। किन्तु इस समय आप देख रहे हैं कि हम लोग किस झंझट में फँसे हुए हैं। अब जब इस झगड़े में पड़ गए हैं तब बिना इसे किसी परिणाम तक पहुँचाए किनारा खींचना अपने को उपहासास्पद बनाना है। इस समय आपका यहाँ न होना हम लोगों को बहुत खटक रहा है। कई बातें ऐसी उपस्थित हो जाती हैं जिनमें आपकी सहायता की आवश्यकता होती है। सभा के वार्षिक अधिवेशन तक यदि आप और धैर्य रखते तो अच्छा ही था। नहीं तो यदि आपकी ऐसी ही प्रबल इच्छा है तो खैर, मैं कुछ लिखूँगा। मुझे आप किसी प्रकार से इस विषय में उदासीन न समझिए।

बाबू राधाकृष्ण दास जी की कवितायें मिर्जापुर में रक्खी हैं। मैं रविवार तक मिर्जापुर जाने वाला हूँ। वहाँ से आपके पास छाँट कर कुछ कविताएँ भेज दूँगा।

आपने पाठकजी के पास जो कार्ड भेजे हैं उन्हें भी देखा। आप असन्तुष्ट जान पड़ते हैं। आशा है कि ऊपर लिखी बातों पर विचार करने से आपको सन्तोष हो जायगा।

प्रतिलिपि फार्म भी आपके पास दो-एक दिन में भेजा जायगा।

आपका,

वही

रामचन्द्र शुक्ल


[ नोट-'सरोज' की विज्ञप्ति आगे दी गई है। ]


पाठकजी का छोटा लड़का सागर बहुत बीमार था। इससे वे बहुत व्यग्र हैं और इधर-उधर दौड़ रहे हैं।


(3)

शिवाला घाट

बनारस सिटी

26-6-11

प्रिय रायसाहब,

आशीर्वाद!

लेखों के लिए मैंने लोगों से प्रार्थना की है और लेख मिलने की आशा भी है पर इस पहली संख्या के लिए और लेख बाहर से नहीं आ सकते। पर कोई चिन्ता नहीं, हम मैटर पूरा कर लेंगे। बाबू जगमोहन वर्मा से एक लेख मिल जाएगा।

हाँ, एक बात बतलाइए। सरोज का हिसाब-किताब कहाँ रहेगा? ग्राहकों को किस पते पर पत्र और रुपया आदि भेजना चाहिए? क्या अभ्युदय प्रेस वाले इस झंझट को अपने सिर पर लेंगे और सरोज के मैनेजर बनेंगे? हितवार्ता, भारतमित्र ओर बिहार बन्धु को मैंने नोट भेज दिए हैं जो शीघ्र प्रकाशित होंगे।

आप राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' को कविता के लिये लिखिए। आपने जो मैटर भेजा है वह अभी मुझे नहीं मिला। शायद आपने सभा के पते से भेजा है तो कल ऑफिस खुलने पर मिलेगा। पत्र 'शिवाला घाट' ही के पते से भेजा कीजिए।

आपका

रामचन्द्र शुक्ल


हाँ, कृष्णकान्तजी से आपसे भेंट अवश्य हुई होगी। उस दिन जब हम लोग गए थे तब वे घर पर नहीं थे, पर हम लोग सब बातें भट्टजी से कह आए थे। उनसे उन्हें मालूम हो गई होंगी।


(4)

शिवाला घाट

बनारस सिटी

3-8-11

प्रियवर

राय साहब,

आज हम लोग आपकी प्रतीक्षा में थे। अब वार्षिक अधिवेशन बहुत निकट है। दो ही तीन दिन रह गए हैं। आप कृपा करके अब आ जाइए। बाहर से जो प्राक्सी आई हैं वे अधिकांश आप ही के नाम हैं। यदि कहीं आप उस दिन न रहे तो सब किया, कराया मिट्टी हो जाएगा। इतना धयान रखिएगा। हम लोग अब घबड़ा रहे हैं। कल तक और देखते हैं। यदि आप न आए तो तार देगे

आपका

रामचन्द्र शुक्ल


(5)

नागरी प्रचारिणी सभा

बनारस सिटी-191

प्रियवर रायसाहब,

आज इस समय पं. गोविन्दनारायण मिश्र सभा में आ रहे हैं। पराड़कर जी तथा और सब लोग भी यहाँ आए हुए हैं। आपको भी नोटिस तो अवश्य मिली


क्व श्री कृष्णकान्त मालवीय-संपादक, अभ्युदय, इलाहाबाद। सभा का वार्षिक अधिवेशन।

होगी, क्योंकि बाबू व्रजचन्द्र नोटिस पाकर आए हैं। इस अवसर पर आपको भी थोड़ी देर के लिए जाना चाहिए। यदि आप न आ सके तो मैं मीटिंग समाप्त होने पर आपके पास आऊँगा।


आपका

रामचन्द्र शुक्ल


(6)

प्रियवर रायसाहब,

अनेक आशीर्वाद।

आपका कृपापत्र मुझे कल मिला क्योंकि मैं भी इधर प्लेग के कारण मिरजापुर चला गया था। पाठकजी आज आए थे। वे इधर एक महीने से अपने किसी भाई का विवाह ठीक करने में लगे हैं। दो-तीन बार पटने जा चुके हैं। आज फिर जा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि पटने से लौटकर मैं प्रयाग जाऊँगा। व्यग्रता के कारण वे इधर आपको कोई पत्र भी न दे सके इस बात का उन्हें बड़ा खेद है और इसके लिए वे आपसे क्षमा माँगते हैं। 5 या 6 दिन में पटने से लौटने को कहा है।

मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता है कि आप मासिक पत्र निकालने पर दृढ़ हैं। ईश्वर आपकी यह अभिलाषा शीघ्र पूर्ण करें। मुझसे जो कुछ हो सकेगा मैं उसके लिए करने को तैयार हूँ।

यहाँ 15 तारीख को बाबू श्यामसुन्दरदास आए थे और 6 दिन रहे। पर सभा भवन में पैर नहीं रखा। इस पर बिहार-बन्धू ने एक नोट लिखा है जिसमें कहा है कि सभा के कुछ कार्यकर्ताओं की कुटिलता ही के कारण ऐसा हुआ है। बाहर से भी ग्रन्थमाला की सहायता बन्द होने और भट्टजी के अलग होने के विषय में सभा से प्रश्न हुए हैं। लेखमाला के सम्बन्ध में भी प्रश्न हो रहे हैं। बाजार फिर गर्म है। इन अनाड़ी और निरंकुश कार्यकर्ताओं की खबर लेने का अच्छा मौका है। आगामी चुनाव में इन सबको निकाल बाहर करने का विचार है। आशा है कि आप भी इस कार्य में सहायता देंगे। और सब बातें मिलने पर करूँगा।

आपका

रामचन्द्र शुक्ल

'सरस्वती' पत्रिका का प्रकाशन जनवरी 1900 ई. में नागरी प्रचारिणी सभा काशी के तत्तवावधान में इंडियन प्रेस इलाहाबाद से प्रारंभ हुआ था। प्रारंभ में इस पत्रिका का संपादन एक संपादन समिति करती थी। इस समिति का कार्यालय बनारस में था और किशोरीलाल गोस्वामी, जगन्नाथ दास बी.ए., राधाकृष्णदास, कार्तिक प्रसाद खत्री और श्यामसुन्दरदास इसके सदस्य थे। दूसरे वर्ष से 'सरस्वती' के संपादन का उत्तारदायित्तव अकेले श्यामसुन्दरदास पर आ गया। 1903 ई. में पं महावीरप्रसाद द्विवेदी 'सरस्वती' के संपादक बनाए गए। इसी बीच द्विवेदीजी ने 'सभा की खोज रिपोर्ट' की तीखी आलोचना की। इस आलोचना से खिन्न होकर सभा के सदस्यों ने 'सरस्वती' से समर्थन वापस लेने की धमकी तक दे डाली। इंडियन प्रेस के मालिक चिंतामणि घोष ने इसका फैसला द्विवेदीजी पर छोड़ दिया। अप्रैल 1907 में द्विवेदीजी का एक और लेख छपा-'सभा की सभ्यता'। अपने समय की, हिन्दी की दो बड़ी हस्तियाँ अब आमने-सामने थीं। 'सभा की सभ्यता' लेख में द्विवेदीजी ने सभा की गिरती हुई प्रतिष्ठा के लिए प्रबंधकारिणी कमेटी के सदस्यों को जिम्मेदार माना था। बाबू श्यामसुन्दरदास ने इस लेख का जवाब 'शीलनिधिजी की शालीनता' शीर्षक लेख से दिया। आ. द्विवेदी और बाबू श्यामसुन्दरदास के इस झगड़े के परिणामस्वरूप सभा के कार्यकर्ताओं और सदस्यों में भी मतभेद पैदा हो गया। वे दो गुटों में बँट गए। इससे सभा की प्रतिष्ठा लगातार गिरती जा रही थी।

आचार्य शुक्ल के इन पत्रो में सभा की गतिविधियों और प्रबंधकारिणी कमेटी के पुनर्गठन और सभासदों के चुनाव की चर्चा है।