शुद्धि बनाम बाजीराव मस्तानी / जयप्रकाश चौकसे

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शुद्धि बनाम बाजीराव मस्तानी /
प्रकाशन तिथि : 15 अप्रैल 2014


इस समय शायद हर क्षेत्र में छाया युद्ध लड़े जा रहे हैं और खूंखार लोग चीखते-चिंघाड़ते एक-दूसरे पर आक्रमण करने की मुद्रा में नृत्य कर रहे हैं, जिसे आप 'डांस ऑफ डेमोके्रसी' कह सकते हैं। फिल्म उद्योग में ऐसा ही एक छाया युद्ध करण जौहर और संजय भंसाली के बीच बताया जा रहा है और मुद्दा है सन् 2015 की क्रिसमस की छुट्टियों में जौहर की 'शुद्धिा' और भंसाली की 'बाजीराव मस्तानी' का प्रदर्शन। मजे की बात यह है कि अभी इन फिल्मों की शूटिंग प्रारंभ होना तो दूर की बात कॉस्टिंग भी फाइनल नहीं है। करण के पास संभवत: दीपिका पादुकोण है तो भंसाली के पास रणवीर सिंह है तथा उन्हें उम्मीद है कि दीपिका भी आ जाएगी। ज्ञातव्य है कि ऋतिक रोशन ने 'शुद्धि' छोड़ दी है और करीना हटा दी गई हैं। यह फिल्म उद्योग में नई रीत शुरू हुई है कि पहले छुट्टियों वाले सप्ताह को चुन लेते हें और प्रदर्शन तिथि तय करने के बाद बैकवर्ड प्लानिंग करते हैं कि अगर 20 दिसंबर को प्रदर्शन है तो 1 दिसंबर को सेंसर कराना है और 1 नवंबर से डीआई कराना है।

आजकल शूटिंग के बाद डिजिटल प्रक्रिया द्वारा नायक-नायिका को खूब सुंदर दिखाया जा सकता है तथा खराब शॉट की भी दुरुस्ती होती है जैसे विवाह पूर्व कन्या को ब्यूटी पार्लर भेजा जाता है, वह तमाम खामियों को दूर करता है। बैकवर्ड प्लानिंग के हिसाब से 20 दिसंबर को प्रदर्शित होने वाली फिल्म की शूटिंग सितंबर में समाप्त होनी चाहिए क्योंकि पोस्ट प्रोडक्शन में तीन माह लगते हैं। बहरहाल यह सब मैनेजमेंट के फिल्मी फंडे हैं।

वह गुणवत्ता को साधने का जमाना गया जब के. आसिफ 'मुगले आजम' के लिए दस वर्ष लेते थे, गुरुदत्त से यह पूछने का साहस उनके पूंजी निवेशक को भी नहीं था कि फिल्म कब पूरी होगी। राजकपूर ने 'आवारा' के प्रदर्शन के पूर्व निर्णय लिया कि वे इसमें स्वप्र दृश्य जोड़ेंगे जिसमें चार माह का समय लगा। इन विरल लोगों के लिए काम करना साधना की तरह था और आप किसी योगी से यह नहीं पूछ सकते कि साधना कब पूरी होगी। आज फिल्म भी फैक्टरी का उत्पाद है और बाजार के नियमों के शासित है। टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो गई कि सारे खराब शॉट्स बाद में दुरुस्त किए जाते हैं। आजकल कुछ धनाड््य परिवार अपने कुल ज्योतिषी से घर में जन्म लेने वाले बच्चे के लिए शुभ गोचर पूछते हैं और डॉक्टर को आदेश है कि उस 'शुभ गोचर' में सीजेरियन प्रक्रिया से बच्चे का जन्म कराया जाए गोयाकि स्वाभाविक स्वस्थ्य डिलेवरी का इंतजार नहीं किया जा सकता। अनेक धनाड्य लोग 'कंट्रोल फ्रीक' होते हैं अर्थात हर चीज उनके नियंत्रण में होना चाहिए और किसी और सहयोगी या सदस्य के विचार का कोई मूल्य नहीं।

दरअसल अगर आप एक 'कंट्रोल फ्रीक' को पूरे फार्म में देखना चाहें तो उसे कार की पिछली सीट पर बैठाकर उसके द्वारा ड्राइवर को दिए गए निर्देश सुनें और इसे बैकसीट ड्राइविंग भी कहते हैं। कंट्रोल फ्रीक पिता ही अपने बच्चों का कॅरिअर चुनता है, उनकी पत्नियां चुनता है। दरअसल हर मनुष्य जीवन और समाज के किसी स्तर पर 'कंट्रोल फ्रीक' है। दूसरों पर स्वयं को लादने की प्रवृत्ति अत्यंक सशक्त होती है।

इस प्रकरण का दूसरा पक्ष बड़ा भयावह है कि कुछ लोगों को यह अच्छा लगता है कि पग-पग पर उन्हें कोई निर्देश दे, क्योंकि अपने आप कुछ करने में वे इसी प्रवृत्ति के कारण असमर्थ हो जाते हैं। दुनिया के इतिहास में समय-समय पर तानाशाह उभरे हैं जिसका कारण उनका 'कंट्रोल फ्रीक' होना और अन्य लोगों का यह पसंद करना कि कोई उन्हें सदा निर्देश देता रहे। चुइंगगम से बने होने का प्रभाव देने वाली मांसपेशियां ऐसी ही होती हैं। 'शुद्धि' बनाम 'बाजीराव मस्तानी' का छाया युद्ध बहुत सी बातों का संकेत है।