शेरों की मृत्यु और शेर की खाल में दहाड़ते नेता / जयप्रकाश चौकसे

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शेरों की मृत्यु और शेर की खाल में दहाड़ते नेता
प्रकाशन तिथि : 03 अक्टूबर 2018


सितंबर के आखिरी दस दिनों में 20 शेर वायरस के कारण मर गए, जबकि गुजरात में शेरों को रखने और इलाज करने का विशेष प्रबंध है। क्या शेर प्रजाति लुप्त हो जाएगी? यह अत्यंत दुखद होगा। किसी भी प्रजाति का विनाश धरती को श्रीहीन कर देता है और संतुलन बिगड़ जाता है। दशकों पूर्व चिनप्पा थेवर नामक निर्माता ने उस दौर के सुपर सितारे राजेश खन्ना के साथ 'हाथी मेरे साथी' नामक सफल फिल्म बनाई थी। वे पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिए सारा लेन-देन नगद ही करते थे। उनका विश्वास था कि ईश्वर उनके भागीदार हैं। अतः वे आधा मुनाफा मंदिर में नगद दे आते थे। उन्हें जानवर पालना पसंद था और वे उनसे वार्तालाप भी करते थे। बाद में उन्होंने शशि कपूर और शेर के साथ एक फिल्म बनाई थी।

एक अमेरिकन फिल्म में शेर के जुड़वा जन्मे शावकों में से एक को पकड़ने में सफल व्यक्ति उसे सर्कस वालों को बेच देता है। कालांतर में दूसरा भी पकड़ा जाकर सर्कस भेज दिया जाता है। शेर भाइयों का भरत मिलाप सर्कस में होता है और वे मिलकर उधम मचाते हुए सभी कुछ तोड़फोड़ देते हैं और अपने घर अर्थात जंगल पहुंच जाते हैं। इस फिल्म का नाम 'टू ब्रदर्स' था। सर्कस में मजबूर शेर को रिंग मास्टर के कोड़े पर तरह-तरह नाचकर दिखाना पड़ता है। जंगल में शेर की निराली छवि देखने को मिलती है। अपने विराट राज्य में वह अलमस्त घूमता है। स्वतंत्रता का महत्व हमें समझ में आता है। आज हम सभी सर्कस के शेर हैं। गुलाम शेर की दहाड़ आजाद बिल्ली के मियाऊं के सामने फुसफुसाहट मात्र रह जाती है। राजा-महाराजा शिकार किए गए शेर की खाल में भूसा और मसाले भर कर अपनी बैठक में रख देते हैं। फिल्मों में कायर खलनायक इसी भूसे भरे शेर के सिर पर हाथ रखकर बड़ी शान से खड़ा रहता है। हमारी गुलामी के दौर में हुक्मरान अंग्रेज भी शिकार का शौक रखते थे। उनके लिए सैकड़ों गुलाम हाका करते थे अर्थात ड्रप पीटते हुए शेर को उस और खदेड़ देते थे, जहां शिकारी सुरक्षित मचान पर बैठा है उसके साथ उसका सेवक भी मौजूद है। हाका मारकर घेरे गए शेर को हाकिम गोली मारता है परंतु सेवक जानता है कि साहब बहादुर का निशाना कमजोर है अतः वह भी पीछे खड़ा होकर गोली दाग देता है। दरअसल, शेर सेवक की गोली से मरता है परंतु श्रेय शिकारी को दिया जाता है। शिकारी हुक्मरान मरे हुए शेर के सिर पर पैर रखकर फोटो खिंचाता है। अगर ऐसे में मरे हुए शेर के मुंह में दब गई गुर्राहट निकल जाए तो साहब बहादुर के कपड़े खराब हो जाते।

आज इंग्लैंड की आर्थिक हालत खस्ता है। वहां कई घरों में भूसा भरे शेर या दीवार पर शेर का सिर लटका रहता है। इसे बेचकर भी चंद दिन गुजारा हो सकता है। 200 वर्ष तक अनेक देशों से धन आता रहा और अब उन दिनों के स्वप्न आंखों में लिए लोग यादों के गलियारों में चहलकदमी करते हैं। वहां के वृद्ध आश्रम को भारत में लाया गया है, क्योंकि एक पाउंड में 90 रुपए मिलते हैं और हुकूमतें बरतानियां अपने वृद्धों की सेवा के लिए संकल्पबद्ध है, इसलिए वे पाउंड बचाते हुए अपने उम्रदराज नागरिकों की देखभाल करते हैं। युवा भारत में अपने देश में जन्मे उम्रदराज लोगों के लिए न स्थान है और न ही सन्मान है।

अमेरिका में फिल्म कला और तकनीकी सिखाने वाले अनेक संस्थान हैं। उनमें ली स्ट्रेसबर्ग प्रसिद्ध है। फिल्म प्रारंभ होते ही उन्होंने इस तरह के संस्थानों का निर्माण किया था। वहां दो खंड हैं- एक में फिल्मकार बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। दूसरे में केवल वे लोग दाखिला लेते हैं जो फिल्म के शिक्षक बनना चाहते हैं। दशकों पूर्व लिए गए इस फैसले का नतीजा यह है कि उनके प्रशिक्षक अनेक देशों में काम कर रहे हैं। भारत में पहला केंद्र पुणे में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने स्थापित किया था। शबाना आज़मी, ओम पुरी, नसीरुद्‌दीन शाह, कुंदन शाह, विधू विनोद चोपड़ा और अजीज मिर्जा इत्यादि उसी संस्था के उसी दौर में प्रशिक्षित लोग हैं। वर्तमान सरकार ने एक सीरियल में युधिष्ठिर की भूमिका अभिनीत करने वाले व्यक्ति को अध्यक्ष नियुक्त किया और संस्था का बेड़ा गर्क हो गया। बहरहाल, अमेरिका में फिल्म शूटिंग के लिए जानवरों को प्रशिक्षण देने का संस्थान भी है, जिसे 'एनिमल स्टूडियो' कहते हैं। वहां प्रशिक्षकों को फिल्मकार की पटकथा पढ़कर और उसकी आवश्यकता अनुसार जानवरों को प्रशिक्षित करना होता है। एक मराठी भाषी युवा ने जर्मनी में फिल्म विधा सीखी थी। वहां छह वर्ष का कोर्स होता है। एक वर्ष पटकथा, एक वर्ष फोटोग्राफी। इसी तरह विधा के हर हिस्से के लिए एक वर्ष होता है। इस युवा के पास एक पटकथा थी जिसमें कुत्ते की एक नस्ल का जिक्र था, जो मनुष्य को फाड़ सकता है। इसके पालने वाले इसके मुंह को लोहे के पिंजड़े में रखते हैं। वह भोजन ले सके इतना ही मुंह खुल सकता है। उस युवा ने प्रयास किया परंतु कोई सितारा काम करने को तैयार नहीं हुआ। बहरहाल, भारतीय राजनीति में शेर की खाल पहनकर कई लोग दहाड़ रहे हैं। अवाम की हालत हाका लगाने वालों जैसी हो गई है। भारतीय अवाम गुप्त एवं रहस्यमय ढंग से जंजीरे तोड़ने में माहिर है।