शोध और सत्य का विरोध / जयप्रकाश चौकसे

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शोध और सत्य का विरोध
प्रकाशन तिथि :15 जुलाई 2017


अमर्त्य सेन को अकाल के अर्थशास्त्र पर शोध के लिए अर्थशास्त्र की श्रेणी में नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया। उन्होंने विविध विषयों पर लेख लिखे हैं और विदेशों में उन्हें मुंहमांगी रकम देकर भाषण देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। कई विदेशी विश्वविद्यालय उन्हें अपने यहां पढ़ाने के लिए आमंत्रित करते हैं। अमर्त्य सेन पर बना वृत्तचित्र 'द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन' अब सेन्सर बोर्ड की गिरफ्त में है और उसे प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा रहा है। अब असहिष्णुता की हदें पार हो चुकी हैं। विद्वता पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है ताकि तर्क को तिलांजलि देने का उत्सव धूमधाम से मनाया जा सके। ज्ञातव्य है कि अमर्त्य सेन की एक किताब का नाम ही 'द आर्ग्यूमेंटेटिव इंडियन' है। यह बातूनी नहीं वरन अनावश्यक ज़िद करने वालों का देश बन चुका है। एक जमाने में ज्ञान का सूर्य पूर्व से ही उदय होता था, अब तर्कहीनता की धुंध छाई है। जाने कैसे हम वैचारिक अकाल रचने में सफल हो रहे हैं। महाराष्ट्र में नरेंद्र दाभोलकर जैसे विद्वान की हत्या कर दी गई। कर्नाटक में एमएम कलबुर्गी को भी मार दिया गया। सलमान रश्दी का भी भारत आना दुश्वार कर दिया गया है। हम धीरे-धीरे ऐसा द्वीप बनते जा रहे हैं, जिससे सब लहरें किनारा कर लेंगी।

इस सुशासन की इस बात के लिए प्रशंसा करनी होगी कि वे किसी अयोग्य व्यक्ति को ऊंचे पद पर बैठाते हैं और उसका खूब विरोध किया जाता है, तब भी उसे नहीं बदलते। पुणे फिल्म संस्थान के छात्रों ने नियुक्त किए गए शिखर अधिकारी का जमकर विरोध किया। कई माह तक पढ़ाई बंद रही परंतु सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। यह हाल सेन्सर हुक्मरान पहलाज निहलानी का भी है, जो अपने कार्यकाल के पहले क्षण से ही विवाद में है परंतु वे पद पर कायम हैं। 'लिपस्टिक' अंडर बुर्का' का भी उन्होंने विरोध किया। क्या निहलानी कभी स्वयं की बनाई फूहड़ फिल्मों का पुनरावलोकन करेंगे? सेन्सर प्रमाण-पत्र केवल दस वर्ष के लिए दिया जाता है और नवीनीकरण कराना पड़ता है। उनकी एक बेहुदा फिल्म में एक पंद्रह वर्षीय छात्रा चालीस वर्षीय शिक्षक पर जी-जान से फिदा हो जाती है और फिल्म में अभद्र संकेत थे। क्या उस फिल्म के सेन्सर प्रमाण-पत्र का वे नवीनीकरण करेंगे?

अमर्त्य सेन पर बने वृत्तचित्र पर प्रतिबंध लगाए जाने की देश-विदेश में क्या प्रतिक्रिया होगी और बंगाल में चुनाव पर इसका क्या असर पड़ेगा- इसका अनुमान लगाना कठिन है। उन्हें चुनावी राजनीति में अपने हिंदुत्व कार्ड पर इतना यकीन है कि उन्हें कोई भय नहीं है। सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश की भव्य जीत से उन्होंने अपने अपराजेय बने रहने पर विश्वास कर लिया है। यह संभव है कि उनका आकलन ही सही हो परंतु भारत को वे पाकिस्तान की तरह बनाते जा रहे हैं। जिस शत्रु से उन्हें सबसे अधिक नफरत है, वे वैसे ही बनते जा रहे हैं। उदार हिंदुत्व को भी वे आतंकी बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पाकिस्तान के एक शायर की नज़्म है : तुम बिल्कुल हम जैसे निकले/ अब तक कहां छिपे थे भाई?/ वो मूर्खता, वो गंवारपन जिसमें हमने सदियां गंवाई/ आखिर पहुंचे द्वार तुम्हारे/अरे बधाई, बहुत बधाई।

क्या यह संभव है कि अपने एक निबंध में अमर्त्य सेन ने अकबर के प्रशासन की बहुत प्रशंसा की थी, इसलिए उन पर बना वृत्तचित्र प्रतिबंधित कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि इस वृत्तचित्र में गाय की रक्षा के नाम पर मासूम लोगों को भीड़ द्वारा मार दिए जाने का सेन ने विरोध किया है। हमारा गणतंत्र अपने आधार मूल्य तजता जा रहा है। हर संस्था का विघटन हो रहा है। हर क्षेत्र में तर्कहीनता छा रही है। एक परीक्षा परिणाम में सभी छात्रों के 18 अंक बढ़ा दिए गए और प्रतिभा के मूल्यांकन के साथ छेड़छाड़ कर दी गई। कोई क्षेत्र वे अछूता नहीं छोड़ना चाहते और चीन है कि हमारे क्षेत्र हथियाता जा रहा है परंतु उसकी शक्ति से भयभीत हम केवल मिमिया सकते हैं।

अंग्रेजी भाषा में 'सेन' का अर्थ समझदार होता है और 'इनसेन' का अर्थ पागलपन। अमर्त्य सेन का विरोध भी कुछ इसी आधार पर किया गया लगता है। किसी विद्वान ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान एक ही मांस के दो लोथड़े हैं, अत: एक के विषाक्त होने पर दूसरा कैसे निर्मल बना रह सकता है। इन बातों पर यकीन करने के लिए विवश किया जा रहा है।