शोभना समर्थ से काजोल तक / जयप्रकाश चौकसे

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शोभना समर्थ से काजोल तक
प्रकाशन तिथि : 01 मार्च 2014


कुछ समय पहले तनूजा ने नितीश भारद्वाज की लीक से हटकर बनी मराठी फिल्म 'पितृन' के लिए अपना सिर घुटवाया था। फिल्म की प्रशंसा हुई परंतु उसने धन नहीं कमाया। तनूजा को आज के दर्शक काजोल की मां के रूप में जानते है और कभी तनूजा शोभना समर्थ की बेटी के रूप में जानी जाती थी तथा लंबे समय तक नूतन की छोटी बहन के नाम से भी पुकारी गई। तनूजा पांचवे-छठे दशक के बंद समाज में अपने खुलेपन के लिए बहुत आलोचना को झेलती रही क्योंकि उसकी समकालीन महिला सितारा सरेआम शराब का सेवन नहीं करती थी और सिगरेट पीना भी सबके सामने स्त्रियों ही नहीं पुरुषों को भी शोभा नहीं देता था। बिंदास शब्द का प्रयोग पहली बार मीडिया ने तनूजा के लिए किया था। उसने विजय आनंद की 'ज्वेलथीफ' में एक कैबरेनुमा गीत किया था परंतु वह अनेक फिल्मों में नायिका की भूमिका में आई और खूब सराही गई थी। रणधीर कपूर के साथ 'हमराही' नामक उनकी हास्य फिल्म सफल रही थी। तनूजा ने उस दौर में भी लीक से हटकर फिल्मों में लगभग नि:शुल्क काम किया, मसलन बासू भट्टाचार्य की 'अनुभव' में।

शोभना समर्थ ने चौथे दशक में अनेक सफल फिल्मों में काम किया था और 'रामराज्य' में सीता की भूमिका में वे लगभग पूजनीय मानी जाती थी परंतु उस दौर में उनकी बेबाकी और सच बोलने का आग्रह अनेक लोगों को आहत कर देता था। उन्होंने अपना मोतीलाल से प्रेम कभी छुपाया नहीं। शोभना समर्थ ने अपनी बेटियों को भी भयमुक्त जीवन जीने की शिक्षा दी और उनमें आत्मविश्वास की कमी नहीं रहे, इसलिए उन्हें पढऩे यूरोप भी भेजा। हम आज काजोल में भी शोभना का भयमुक्त जीवन जीना देख सकते हैं। बहरहाल तनूजा ने अपने कॅरिअर के शिखर पर निर्माता शोमू मुखर्जी से विवाह किया परंतु दोनों ही के अत्यंत मुंहफट एवं स्पष्टवादी होने के बावजूद लंबे समय तक वे एक साथ नहीं रह पाए परंतु अलगाव के बाद भी उनका संपर्क एक दूसरे से बना रहा। रणधीर कपूर और बबीता की तरह ही शोमू और तनूजा ऐसे व्यक्ति थे जो साथ भी नहीं रह सकते थे और पूरी तरह विलग भी नहीं हो सकते थे। स्वतंत्र एवं प्रकट विचार शैलियों की टकराहट झन्नाटेदार ही होती है। यह साफगोई का वहन कभी निरापद नहीं हो सकता।

इसी परिवार की ज्येष्ठ कन्या नूतन को भी साफगोई पसंद थी परंतु वह अपनी निजता और स्वतंत्रता का मार्ग अत्यंत सहजता से बना लेती थी। वह अपनी लीक को थामने के लिए कभी जिद करती या विद्रोह करती प्रस्तुत नहीं हुई परंतु दृढ़ इच्छा शक्ति से लिए गए फैसलों पर उसने अमल किया तथा इस प्रक्रिया में किसी को आहत नहीं किया। प्राय: लोग अपने विवाद जानकर लाउड और विराट बना लेते हैं क्योंकि वे लड़ते हुए दिखाई देना चाहते है जबकि नूतन ने अपनी दृढ़ता का कभी प्रदर्शन नहीं किया। उसकी विलक्षण अभिनय प्रतिभा भी सुजाता और बंदिनी जैसी फिल्मों में देखने को मिली। उसने पांचवे दशक में 'दिल्ली का ठग' के लिए बिकनी पहनी और उस दौर में यह साहसी निर्णय माना जाता था।

शोभना समर्थ ने अपनी बेटियों को बेटों की तरह पाला और उनमें स्वतंत्र विचार शैली विकसित करने का साहसी कार्य भी किया। आज यह आश्चर्यजनक नहीं लगता क्योंकि हमें तीसरे-चौथे दशक की जानकारी नहीं है। वह पारम्परिक दौर जरूर था परंतु महात्मा गांधी के प्रभाव के कारण महिला-जागृति के समय भी था। गांधी के प्रभाव में ढाली नायिकाएं अनेक फिल्मों में प्रस्तुत हुई, शांताराम की 'दुनिया ना माने' 1937 की नायिका भी स्वतंत्र विचार शैली की कन्या है। मेहबूब खान की 'नजमा' की नायिका या उनकी 'अंदाज' की नायिका भी साहसी और आधुनिका है। दरअसल हमारे समाज में आधुनिकता की अवधारणा ही सही नहीं है। कपड़ों के कारण भी कुछ लोगों को आधुनिक मान लिया जाता रहा है। आधुनिकता एक तर्कसम्मत खुली विचार शैली है और फैशन इत्यादि से इसका कोई संबंध नहीं है। आधुनिकता एक दृष्टिकोण है जो हर कालखंड में कुछ महिलाओं और पुरुषों में रहा है। हमने एक ही परिवार की तीन पीढिय़ों में उसी दृष्टिकोण की बात की है।