श्रद्धा कपूर का विशवास / जयप्रकाश चौकसे

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श्रद्धा कपूर का विशवास
प्रकाशन तिथि : 04 मई 2013


किसी भी पटकथा को पढ़कर उसकी सफलता का अनुमान लगाना कठिन है और अगर पटकथा तकनीकी बारीकियों के साथ लिखी गई है तो उसे पढऩा ऊबाऊ हो सकता है। सलीम-जावेद की जंजीर की पटकथा चार निर्माताओं और पांच नायकों ने अस्वीकृत की थी। स्वयं आमिर खान ने लगान की कथा सुनकर ही आशुतोष गोवारीकर को मना कर दिया था, परंतु कुछ माह पश्चात आशुतोष पटकथा लेकर आए तो आमिर ने बहुत अनिच्छा से उसे रख लिया परंतु कुछ दिन बाद एकाग्रता से पढ़कर इतने प्रसन्न हुए कि स्वयं निर्माता बनने का फैसला लिया। इस तरह की घटनाएं अनेक बार अनेक लोगों के साथ हुई हैं। इतना ही नहीं बनी हुई फिल्म देखकर भी उसका बॉक्स ऑफिस परिणाम बताना कठिन होता है। शक्ति कपूर की बेटी श्रद्धा कपूर की पहली फिल्म तीन पत्ती असफल रही ।

इसके बाद आदित्य चोपड़ा ने उसका हौसला बढ़ाया और उसे तीन फिल्मों के लिए अनुबंधित किया। आज आदित्य की संस्था की बाजार में साख है और सफलता की आशा भी की जाती है। मोहित सूरी द्वारा आशिकी-२ की पटकथा सुनकर श्रद्धा भावविभोर हो गई और उसने अपने तीन फिल्मों के अनुबंध की परवाह किए बिना आशिकी-२ करने का निर्णय लिया। उसे पटकथा पर इतना यकीन था कि वह इस फिल्म को किसी भी कीमत पर करना चाहती थी। आज श्रद्धा कपूर अपने साहसी फैसले पर खुश है क्योंकि यह फिल्म सिर्फ सप्ताहांत को ही नहीं वरन अन्य दिनों भी भारी भीड़ जुटा रही है। बड़े सितारों की फिल्में पहले तीन दिन के बाद चौथे दिन कम भीड़ को ही आकर्षित कर पाती हैं परन्तु यह फिल्म सोमवार को इतवार से अधिक भीड़ एकत्रित कर रही है और बॉक्स ऑफिस पर इतनी सफल है कि निर्माता भाग तीन बनाने का सोच रहे हैं।

प्राय: फिल्म पंडित कहते है कि आज के युग में कोई दर्शक त्रासदी नहीं देखना चाहता है। इस फिल्म का अंत त्रासदी का है। नए सितारों के साथ महेश भट्ट प्राय: सफल रहे हैं। आज भट्ट बंधुओं की निर्माण संस्था की बाजार में साख बहुत बढ़ गई है क्योंकि कुछ अंतराल के साथ वे हर तरह की फिल्में देते आ रहे हैं। इस फिल्म में मधुर संगीत हुकुम के इक्के की तरह है परंतु फिल्म प्रदर्शन के पूर्व प्रचार के अभाव में संगीत आशातीत सुना नही गया था। इन सब कमियों के बावजूद फिल्म बहुत बड़ी सफलता है और संगीत के साथ ही दर्शकों को नायक तथा नायिका का अभिनय अच्छा लग रहा है। नायिका का चरित्रचित्रण बहुत खूबी से लिखा गया है और मोहित सूरी ने भी इसे श्रद्धा कपूर प्रधान फिल्म बना दिया है इसी कहानी को महेश भट्ट सुर के नाम से बना चुके थे और उसमें भी करीम का मधुर संगीत तथा निदा फाजली के सार्थक गीत थे परन्तु सुर वैसा नहीं लगा जैसा इस फिल्म में जमा है।

महेश भट्ट को लंबा अनुभव है परन्तु श्रद्धा कपूर को कोई अनुभव नहीं है। उसके बावजूद उसका विश्वास काम कर गया। क्या हम ऐसा मानलें कि इस समय बॉक्स ऑफिस आकलन की विशेषज्ञ है श्रद्धा। ऐसा नहीं है क्योंकि दर्शक की पसंद को हमेशा भांप लेना संभव नहीं है। यह काम मेंढक तौलने की तरह है। एक पलड़े पर आपने वजन रखा तो दूसरे पलड़े पर रखे मेंढकों में से एक कूदकर चला जाता है। चुनाव के पंडित हों या फिल्मउद्योग के पंडित हों जनता का मन पढऩा अत्यंत कठिन है। उसके संशय और उसकी अनिश्चितताएं हमेशा कायम रहती हैं और वह अनेपक्षित करने मे सक्षम है। उनकी पसंद का ऊंट किस करवट बैठेगा,यह बताना हमेशा कठिन होता है। चुनाव, क्रिकेट और सिनेमा में प्राय: अनपेक्षित नतीजे आते हैं और भारत के आवाम की तीनों में गहरी रुचि है। क्रिकेट की तरह ही चुनाव का भी सट्टा होता है और करोड़ों के वारे न्यारे होते हैं। कोई एक पटकथा किसी कलाकार के मन के किसी अनजाने तार को छू जाती है और वह हर शर्त पर काम करने को तैयार हो जाता है। इसी तरह फिल्मकार भी महसूस करते हैं कि अगर अमुक फिल्म नहीं बनाई तो सारा जीवन व्यर्थ है। इस तरह का जुनून ही सफलता देता है।