श्राद्ध / राजेन्द्र वर्मा

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पितृपक्ष चल रहा है। एक सज्जन अपने 'स्वर्गीय' पिता का श्राद्ध करने जा रहे हैं। उनके पीछे-पीछे मरियल-सा कुत्ता।

घाट पर पहुँचते हैं। कुत्ता भी साथ है। वे उसे दुत्कारते हैं, पर वह नहीं भागता। वे उसे मारकर भगाते हैं। थोड़ी दूर जाकर वह बैठ जाता है।

पूजा-पाठ करवाने के बाद वे शांत भाव से वापस लौटते हैं।

रास्ते में फिर वही कुत्ता। वह उन्हें सस्नेह देखता है, लेकिन वे उसे मारने दौड़ते हैं।

कुत्ता कुकुआते हुए भागता है, मानो कहता हो-'कैसा मूर्ख है! जिसकी आत्मा की शान्ति के लिए मारा-मारा फिर रहा है, उसे ही मार रहा है।'