श्रीक़ृष्ण प्रेरित फिल्में और कनुप्रिया / जयप्रकाश चौकसे

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श्रीक़ृष्ण प्रेरित फिल्में और कनुप्रिया
प्रकाशन तिथि : 11 अगस्त 2020


नासिक के निकट बसे छोटे से गांव में गोविंद धुंडीराज फाल्के का जन्म हुआ। उनके शिक्षक पिता के तबादले के कारण वे बंबई आए, जहां जे.जे स्कूल ऑफ आर्ट्स में उन्होंने अध्ययन किया। महाराजा बड़ौदा के कला संग्रह की देखभाल की नौकरी करते हुए उन्होंने वाचनालय में बायस्कोप नामक पत्रिका के अंक पढ़े। उन्होंने जर्मनी जाकर स्थिर चित्र छायांकन विद्या सीखी। मुंबई में पूंजी लगाने वालों के साथ भागीदारी में फोटो स्टूडियो प्रारंभ किया। भागीदारों ने विद्या सीखते ही उन्हें कंपनी से निकाल दिया। उन्होंने दुखद समाचार परिवार से छुपाए रखा। प्रतिदिन अपना टिफिन लेकर वे सार्वजनिक बगीचे में समय व्यतीत करते थे। 24 दिसंबर 1910 को बगीचे में उन्हें अखबार में ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ फिल्म विज्ञापन दिखा। उन्हें विचार आया कि इसी माध्यम से श्री कृष्ण कथा प्रस्तुत की जा सकती है।

गोविंद धुंडीराज फाल्के फाल्के पुन: जर्मनी गए। अब चलते-फिरते चित्र लेने वाला कैमरा खरीदा, विद्या का अध्ययन किया। मुंबई लौटने पर उन्होंने अपने सीमित साधनों को देखते हुए श्रीकृष्ण चरित्र प्रेरित फिल्म न बनाकर, ‘राजा हरिश्चंद्र’ का निर्माण किया परंतु 4 वर्ष बाद ही उन्होंने श्री कृष्ण कालिया मर्दन घटना से प्रेरित फिल्म बनाई। इसमें उनकी छोटी-बेटी मंदाकिनी ने अभिनय किया। श्री कृष्ण के जीवन से प्रेरित फिल्में अन्य कलाकारों ने भी बनाईं। ज्ञातव्य है कि श्रीकृष्ण की जीवन यात्रा प्रस्तुत करने वाले प्रारंभिक ग्रंथों में राधा नामक पात्र का नाम भी नहीं है। माना जाता है कि दूसरी सदी में वैष्णव भक्ति संप्रदाय की रचनाओं में राधा प्रस्तुत की गईं हैं। भारत में राधा-कृष्ण मंदिर बहुत हैं, परंतु कृष्ण व उनकी पटरानी रुक्मणी की प्रतिमाओं वाले मंदिर अत्यंत कम हैं।

श्री कृष्ण जीवन चरित्र पर कविताएं लिखी गईं, उपन्यास रचे गए और पेंटिंग्स बनाई गईं। श्री कृष्ण को 64 कलाओं में निष्णांत पूर्णावतार माना गया है। रसिक शिरोमणि श्री कृष्ण की रासलीला में निर्मल आनंद पाता है। श्री कृष्ण रास कूपमंडूक-हुल्लड़बाजों के हाथ का कोड़ा बन जाता है। मनुष्य को जीवन का उद्देश्य व दिशा मिलना इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य श्री कृष्ण के पैताने बैठा है या सिरहाने खड़ा है। अगर दीवाली श्री राम का उत्सव है, तो होली कृष्ण का उत्सव है। राधा नामक पात्र के आकल्पन में ही दूसरी स्त्री का जन्म हुआ है। कोई प्रेम दीवानी है, तो कोई दरस दीवानी है। राधा का पात्र जगह-जगह प्रगट हुआ है।

धर्मवीर भारती ने कनुप्रिया की रचना की थी, जिसमें प्रस्तुत राधा श्री कृष्ण से पूछती है कि ‘हे कृष्ण तुमने मुझे अपनी बाहों में बांधा, परंतु अपने इतिहास में क्यों वंचित किया?’ आमिर खान और गोवारीकर की फिल्म लगान में राधा की प्रेरणा से अंग्रेज युवती का पात्र रचा गया है और पटरानी रुक्मणी भी नायक भुवन की पड़ोसन है। जावेद अख्तर का गीत है कि ‘मधुबन में जो कन्हैया किसी गोपी से मिले, कभी मुस्काए कभी छेड़े, कभी बात करे, राधा कैसे न जले...।’ रास के समय हर गोपी को यह आभास होता है कि श्री कृष्ण उसी के साथ रास कर रहे हैं। एक होते हुए भी कृष्ण अनेक होने का आभास रचते हैं। श्री राम हमारे आदर्श, तो कृष्ण हमारे यथार्थ हैं। क्या अवाम इस आदर्श और यथार्थ के परे जाकर स्वयं को आवरणों से मुक्त अपने असली स्वरूप को पा सकेगा।

खाकसार का आकल्पन है कि भारत मूल की युवती अमेरिका में बसी है। एक अमेरिकन से उसे प्रेम हो जाता है। अमेरिकन युवा अपनी प्रेमिका की कृष्ण-आराधना व अनुराग को समझ नहीं पाता। वह आधुनिक साधन और विशेषज्ञों की टीम के साथ भारत पहुंचकर पानी में डूबी द्वारका खोजता है। समुद्र तल में द्वारका पाई जाती है। अमेरिकन व साथी भी रास का हिस्सा बनते हैं। यूं एक टाइटैनिक नुमा फिल्म भारत में भी श्री कृष्ण रास के उपयोग से बन सकती है। आगामी आम चुनाव तक अयोध्या में निर्माण पूरा होगा और बाद के चुनाव के लिए मथुरा में राधा-कृष्ण मंदिर बनाया जा सकता है। दरअसल अस्पताल की आवश्यकता ही नहीं है।