श्री अहोई अष्टमी व्रत कथा 1 / गद्य कोश

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » संकलनकर्ता » ललित कुमार  » संग्रह: व्रत कथाएँ

एक साहुकार था जिसके सात बेटे थे, सात बहुएँ तथा एक बेटी थी दीवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी का सातो बहुएँ अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में मिट्टी खोद रही थी। वही स्याहू (सेई) की माँद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से सेई का बच्चा मर गया। स्याहु माता बोली कि मैं तेरी कोख बाँधूँगी। तब ननद अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुममें से कोई मेरे बदले अपनी कोख बँधवा लो। सभी ने कोख बंधवाने से इन्कार कर दिया परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि यदि मैं कोख नही बँधवाऊँगी तो सासू नाराज होगी ऐसा विचार कर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बँधवा ली। इसके बाद जब उससे जो लडका होता तो सात दिन बार मर जाता। एक दिन उसने पंडित को बुलाकर पूछा मेरी संतान सातवें दिन क्यो मर जाती है? तब पंडित ने कहा कि तुम सुरही गाय की पूजा करो। सुरही गाय स्याहु माता की भायली है वह तेरी कोख तब मेरा बच्चा जियेगा। इसके बाद से वह बहु प्रातः काल उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती है। गौ माता बोली कि आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है। सो आज देखूँगी। गौ माता खूब तडके उठी, क्या देखती है कि एक साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है। गौ माता उससे बोली मैं तेरी सेवा से प्रसन्न हूँ। इच्छानुसार जो चाहे माँग लो। तब साहूकर की बहू बोली कि स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बाँध रखी है सो मेरी कोख खुलवा दो। गौ माता ने कहा अच्छा। अब तो गौ माता समुद्र पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रास्ते में कडी धूप थी सो वो दोनो एक पेड़ के नीचे गरूड़ पंखानी(पक्षी) का बच्चा था। साँप उसको डसने लगा तब साहुकार की बहू ने साँप मारकर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चो का बचा लिया थोडी देर मे गरूड पंखनी आई जो वहा खून पड़ा देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी। तब साहूकारनी बोली कि मैने तेरे बच्चो को नही मारा बल्कि साँप मेरे बच्चे को डसने को आया था मैने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सुनकर गरूड पंखनी बोली कि माँग तू क्या माँगती है? वह बोली सात समुद्र पर स्याऊ माता के पास पहुँचा दे। गरूड पंखनी ने दोनो को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याऊ माता के पास पहुचा दिया। स्याऊ माता उन्हे देखकर बोली कि बहन बहुत दिनो मे आई, फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूँ पड गई। तब सुरही के कहने पर साहुकार की बहु ने सलाई से उनकी जुएँ निकाल दी। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न हो बोली कि तुने मेरे सिर मे बहुत सलाई डाली है इसलिये सात बेटे और बहु होगी। वह बोली मेरे तो एक भी बेटा नही है सात बेटा कहाँ से होगे। स्याऊ माता बोली- वचन दिया, वचन से फिरूँ तो धोबी कुण्ड पर कंकरी होऊँ। जब साहुकार की बहु बोली मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पडी है यह सुनकर स्याऊ माता बोली कि तुने मुझे बहुत ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती नही परन्तु अब खोलनी पडेगी।

जा तेरे घर तुझे सात बेटे और सात बहुए मिलेगी तू जाकर उजमन करियो। सात अहोई बनाकर सात कढाई करियो। वह लौटकर घर आई तो देखा सात बेटे सात बहुए बैठी है वह खुश होगई। उसने सात अहोई बनाई, साज उजमन किए तथा सात कढाई की। रात्रि के समय जेठानियाँ आपस मे कहने लगी कि जल्दी जल्दी नहाकर पूजा कर लो, कही छोटी बच्चो को याद करके रोने लग। थोडी देर में उन्होने अपने बच्चो से कहा- अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि वह आज अभी तक रोई क्यो नही। बच्चो ने जाकर कहा कि चाची तो कुछ माडँ रही है खूब उजमन हो रहा है। यह सूनते ही जेठानियो दौडी-दौडी उसके घर आई और जाकर कहने लगी कि तूने कोख कैसे छुडाई? वह बोली तुमने तो कोख बधाई नही सो मैने कोख खोल दी है। स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी कोख खोली उसी प्रकार हमारी भी खोलियो। कहने वाले तथा सुनने वाले की तथा सब परिवार की कोख खोलियो।

<< व्रत कथाएँ