श्वेत-श्याम / तेजेन्द्र शर्मा

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संगीता की आँख खुली तो उसने पाया कि कमरे में वह अकेली है। श्वेत बिस्तर, श्वेत चादर, ऊपर आहिस्ता-आहिस्ता चलता पंखा। अपने आप को टटोला तो बांई भुजा में दर्द-सा महसूस हुआ। उसे ग्लूकोस चढाया जा रहा था। सिर में अब भी दर्द हो रहा था। सोचने का प्रयत्न करने लगी कि आख़िर हुआ क्या था। वह यहां अस्पताल में पहुंची कैसे? सुनील कहां है?

सुनील का नाम दिमाग में आते ही जैसे एक विस्फोट सा हुआ। कडियां एक-एक करके जुडने लगी। सुनील से मुलाकात हुई भी तो किन हालात में। क्या वह सुनील को कभी मुंह दिखा पायेगी? किन्तु कुसूर तो सुनील का भी उतना ही है जितना कि स्वयं संगीता का।तो फिर।दोनों की स्थिति तो एक ही थी। फिर सुनील। वह तो इस घटना से दूध का धुला बाहर निकल आयेगा। आखिर पुरूष है न। मरना तो औरत को ही पडेग़ा। फिर यह समाज भी तो पुरूष का ही बनाया हुआ है न। इसीलिए तो एक ही भूल के लिए पुरूष और नारी को भिन्न-भिन्न सज़ा मिलती है।

किन्तु क्या दोष केवल समाज का ही है? क्या वह स्वयं दोषी नहीं? यदि सुनील को भी वही सज़ा मिले जो संगीता को मिलनी है तो क्या संगीता निर्दोष करार दी जा सकती है? क्या इस दलदल से निकलने का कोई रास्ता है या बस यही जीवन का अन्त है? क्या आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प बचा है उसके पास?

क्या करेगी वह अब? क्या मिसेज़ कोहली के पास जाये?हां वही तो उसे इस दलदल में घरीटने के लिए जिम्मेदार हैं। न जाने उनका क्या बिगाडा था उसने? अच्छा-भला जीवन जी रही थी। कहां से आ टपकीं मिसेज़ कोहली -एक अभिशाप की तरह। पर अब उन्हें दोष देने का क्या लाभ। वह स्वयं क्या कोई दूध पीती बच्ची थी जो मिसेज़ कोहली की उ/गली थामे दलदल में कूदने को तैयार हो गई। उन दिनों संगीता को अपनी सबसे बडी शुभचिन्तक मिसेज़ कोहली ही लगती थीं। उनकी सभी पार्टियों में संगीता का सम्मिलित होना तो आवश्यक सा हो गया था। सोच भी कैसे सकती थी कि स्वयं को अभिजात कहने वाली मिसेज़ कोहली ऐसे काम भी कर सकती हैं। पर फिर भी उनकी बात को अंधाधुंध मानने का क्या अर्थ! उसका अपना विवेक कहां गया था? किस चीज़ की कमी थी उसे? एक सुखी गृहस्थी की स्वामिनी थी वह।इस समय मिसेज़ कोहली थोडे ही उसका साथ देंगी। और यदि दे भी दें तो क्या फ़र्क पडता है। हेमन्त थोडे ही स्थिति को समझ पायेंगे।

हेमन्त तो इस कंपकंपाती शीत ॠतु में भी सीमा पर पहरेदारी कर रहे होंगे। अभी तो उनकी पोस्टिंग समाप्त होने में एक वर्ष और बाकी है। इस सबसे बेखबर उसकी कल्पना में हेमन्त का मासूम चेहरा उभर आया। पिछले ही सप्ताह तो समाचार आया था कि सीमा पर गोलियां चली थीं। एक जवान तो मारा भी गया था। जब-जब सीमा पर से गोलीबारी का समाचार आता है तो संगीता का दिल बैठ जाता है। पर क्या हेमन्त इस वज्रपात को झेल पायेंगे? क्या यह सब उनके लिए बन्दूक की गोली से अधिक जानलेवा नहीं सिध्द होगा।

अस्पताल के कमरे का सन्नाटा संगीता को परेशान किए जा रहा था। इस विषय को लेकर यदि वह बात करे भी तो किससे? अब न तो कोई तिनका था और नही कोई सहारा। वैसे कुछ यूं भी लग रहा था कि सारा जीवन तिनके-तिनके हुआ जा रहा है। उडते गिरते तिनके। अब तो इन तिनकों का पुतला भी नहीं बन सकता। सब कुछ बिखर सा गया है।

हेमन्त जब साथ थे, तो जीवन में कोई भटकाव नहीं था। जब हेमन्त का तबादला सीमा पर हो गया था, तभी से अकेलापन जैसे काटने को दौडने लगा था। समय काटना एक कठिन कला बनता जा रहा था। बडे शहर की भीड उसके लिए अकेलपन की आग को हवा देने का काम करती थी।

ऐसे में एक दिन अचानक उसकी मुलाकात लेफ्टीनेंट बहल की पत्नी रीटा से हुई थी। रीटा ने अपनी मारूति कार की चाबियों के छल्ले को अपनी अंगुली में झुलाते हुए पूछा था, “संगीता जी, क्या करती रहती हैं सारा-सारा दिन? बोर नहीं हो जाती हैं क्या? भई अपने से तो नहीं कटती है जिन्दगी आपकी तरह। हमारा तो दम ही घुट जाये ऐसे।”

“तो फिर तुम क्या करती हो दिन भर?”

“अपना क्या है जी; मिसेज़ कोहली की 'पार्टियां' ही खासा बिज़ी रख लेती हैं। अरे हां आज भी तो शाम को पार्टी है उनके घर। चलिये न आप भी हमारे साथ। मिसेज़ कोहली की पार्टियां तो खासी रंगीन होती हैं।”

मिसेज कोहली की पार्टी सचमुच ही रंगीन थी। संगीता की आँखें कमरे का मुआयना करने लगीं। फ़ौजी तो एक भी नहीं दिखाई दे रहा था। तो क्या सिविलियन पार्टी है? फ़ौजियों की पार्टियों में तो सिविलयन कम ही दिखाई देते हैं। तो फिर यह पार्टी? संगीता ने सिर को हल्का सा झटका दिया। उसके शुबहे का एक हिस्सा एक झटके के साथ ही गिर गया। और तब उसने पार्टियों से अपनी जिन्दगी को रंगीन बनाने की कोशिश की थी।

रंग!अब तो ए ही रंग दिखाई दे रहा है। लहू का रंग। कुछ यूं सा लग रहा है जैसे चारों ओर कैक्टस के असंख्य पौधे उग आये हैं। और संगीता उस कैक्टस के हुजूम पर गिर गई है। सारे शरीर में से रक्त फ़व्वारे की तरह बह रहा है। एकाएक पहुँचने से दिखाई देना बन्द हो गया है। दोनों ही पहुँचने से रक्त का लावा बहने लगा है।आज तो रक्त के सिवा कुछ भी सुझाई नहीं दे रहा था।

कुछ देर तक तो संगीता ने रीटा का हाथ पकडे रखा। झिझक और शर्म के कारण वह किसी के साथ घुलमिल नहीं पा रही थी। मिसेज़ कोहली ने संगीता को रीटा से अलग किया और पार्टी के अन्य मेहमानों से मिलवाने लगीं। कई पहचाने चेहरे भी दिखाई दिये। आमतौर पर कैप्टेन और लैफ्टीनेंट की पत्नियां ही दिखाई दे रही थीं। सब उसकी समवयस्क। सभी लोग पार्टी के रंग में रंगे हुए थे। धीमा-धीमा संगीत बज रहा था। कुछ जोडे ड़ांस कर रहे थे। कुछ गपशप में व्यस्त।

धीरे-धीरे संगीता भी पार्टी के रंग में रम गई थी। उसे लग ही नहीं रहा था कि वह पहली बार मिसेज़ कोहली और उनके मित्रों से मिल रही है। कोई भी मेहमान फ़ौजी लोगों के बारे में कोई बातचीत नहीं कर रहा था। सम्भवतः इसीलिए संगीता को एक बार भी हेमन्त का ख्याल नहीं आया। बहुत से मेहमान संगीता की ओर आकर्षित हो रहे थे किन्तु संगीता अपनी ही धुन में मस्त थी। वैसे पार्टी समाप्त होते-होते संगीता के पर्स में लगभग आठ-दस विजिटिंग कार्ड इकट्ठे हो चुके थे।

विजिटिंग कार्डों ने उसके जीवन में एक तूफ़ान सा ला दिया था। एक अजीब सी उथल-पुथल। हर फ़ोन काल में किसी न किसी विजिटिंग कार्ड का ही जिक्र रहता। “अरे आपको याद है संगीता जी, मेहरा बोल रहा हूं। मिसेज़ कोहली की पाटी। में मिले थे। आपको अपना विजिटिंग कार्ड भी दिया था।” जीवन कुछ यूं ही उलझ गया था। यह मेहरा कभी खन्ना बन जाता, कभी पाटिल, कभी शर्मा तो कभी वेंकटस्वामी। किन्तु शेष बात वही होती-मिसेज़ कोहली, पार्टी और विजिटिंग कार्ड।

ऐसा नहीं कि संगीता ने शुरू-शुरू में अपने आप को रोका नहीं। कुछ यूं भी नहीं कि उसे पहला ही फ़ोन आया और वह बावली हो उठी। वास्तव में जब पहले फ़ोन की घंटी बजी और मेहरा बोला तो संगीता तो उसे पहचानी ही नहीं थी। फिर वोह भला संगीता को क्यों बुलाने लगा और वह भी एक पांच सितारा होटल में।

पांच सितारा होटलों की भी तो वह खासी दीवानी थी। हेमन्त की कमाई से तो किसी तरह बस घर का खर्चा ही चल पाता था। कहने को तो हेमन्त के दोनों कन्धों पर तीन-तीन सितारे लगे थे यानि कि कुल मिलाकर 'सिक्स स्टार'। किन्तु यह छः के छः सितारे मिलकर भी पांच सितारा होटल के एक भी सितारे का सामना नहीं कर पाते थे।

संगीता को बचपन से ही दो वस्तुएं अत्यधिक प्रिय थीं। उसके सपनों का राजकुमार सदा से ही एक फ़ौजी जवान रहा था और उसकी पसन्द की दूसरी वस्तु थी कैक्टस! भांति-भांति के कैक्टस के पौधे एकत्र करना, शौक था उसका। आज उसके पास उसके सपनों का राजकुमार हेमन्त भी था और साथ ही असंख्य कैक्टस के पौधे जिन्होंने उसके मस्तिष्क, दिल और बदन पर घाव कर-करके उसे लहुलुहान कर दिया था।

द्वार खुला और नर्स भीतर दाखिल हुई। यह क्या! नर्स के शरीर पर हेमन्त का चेहरा कैसे लग गया। एकाएक उस चेहरे का स्वरूप विकृत होने लगा। बडे-बडे दांत और सींग उग आये उस चेहरे पर। बडी-बडी मूंछें। भयावह चेहरा। नहीं, नहीं वह मरना नहीं चाहती।परपर जीकर भी क्या होगा? मृत्यु का काला दानव वहां ताण्डव करने लगा थासंगीता को महसूस हुआ कि वह एक चिमगादड बनकर ऊपर लगे पंखे के साथ उलटी लटकी हुई है। छत के एक कोने पर पलस्तर थोडा उखडा हुआ था - एक आकृति वहां बन रही थी?हेमन्त!पंखा धीमा-धीमा घूम रहा था और साथ ही घूम रहा था संगीता का सिर।

सिरदर्द तो अब सिर के साथ ही जायेगा। रेगिस्तान में पानी की तलाश में निकली थी वह। चारों ओर बस रेत ही रेत तो थी। किन्तु इस रेगिस्तान में उसने भटकना शुरू क्यों किया? अपनी बगिया की हरियाली से सन्तुष्ट क्यों न रह पाई वह? क्या अकेलापन ही इस भटकन का कारण हो सकता है?

अपनी देह, अपने शरीर, अपने जीवन से कितना मोह था। इसी कारण तो चक्रवात में फंस गई थी। आज तो स्वयं ही चाह रही है कि मृत्यु आ जाये। हेमन्त के साथ बिताये प्यार के क्षण इस समय सान्त्वना न देकर उससे प्रश्न कर रहे थे।

'प्रश्नमंच' हेमन्त का प्रिय कार्यक्रम है। वह सदा ही संगीता को कहता है, “अगर हम लोग इस एक कार्यक्रम को ढंग से देखें और याद रखें तो हमें जीवन के बहुत से प्रश्नों के उत्तर स्वयं ही मिल जायेंगे।” किन्तु क्या प्रश्नमंच के प्रश्नों की भीड में संगीता के प्रश्न के लिए भी कोई स्थान है?

स्थान तो अब संगीता के लिए कोई नहीं बचा है- विशेष तौर पर हेमन्त के जीवन में तो कदापि नहीं। संगीता स्वयं ही तो उस स्थान को हेमन्त के घर से उठाकर पांच सितारा होटलों के सुपुर्द कर आई है।

पहली बार जब वह होटल गई थी तो काफी झिझक रही थी। मिसेज़ कोहली उसे स्वयं ही होटल तक छोडने गई थीं, “संगीता, देखना, एक दिन तुम स्वयं अपनी मारूति कार में इसी होटल में आओगी। तुम्हारा जीने का अन्दाज़ बदल जायेगा। बस यह झिझक कुछ दिन तक ही रहती है।”

यह झिझक ही तो मेहरा को पसन्द आई थी। वह तो संगीता पर वारी-वारी जा रहा था।और संगीता, मेहरा से अधिक होटल के कमरे को देखे जा रही थी। पहली बार किसी पांच सितारा कमरे को भीतर से देख रही थी।बस एक घंटेभर बाद संगीता होटल से बाहर भी जा चुकी थी। उस घंटे भर में मेहरा अपने आप को दो बार प्रसन्न कर चुका था। और संगीता को कम से कम पचास बार वचन दे चुका था कि जब भी दिल्ली आयेगा, हमेशा संगीता को ही बुलायेगा। मिसेज़ कोहली के पैसों के अतिरिक्त उसने दो हज़ार रूपये अलग से संगीता को दिये। और संगीता सोच रही थी-'एक घंटे में दो हज़ार मेहरा वाले और ढाई हज़ार मिसेज़ कोहली से। कुल मिलाकर साढे चार हज़ार रूपये। हेमन्त की महीने भर की पगार एक घंटे में।' विश्वास ही नहीं हो पा रहा था उसे।

संगीता ने अपने लिए विदेशी परफ्यूम, लिपस्टिक और नेल पॉलिश खरीदे थे। चार्ली, एलिज़बेथ आर्डन, पलोमा पिकासो, शनैल, पायज़न - यह सब नाम जो उसने केवल सुन रखे थे, अब उसकी पहुंच के भीतर पहुंच गये थे।

किन्तु संगीता 'प्रोफ़ेशनल काल गर्ल' तो थी नहीं। उसके भीतर की मध्यवर्गीय मानसिकता कभी-कभी अपना फन उठाती - और संगीता तनावग्रस्त हो जाती। उसकी स्थिति विचित्र सी हो गई थी। यदि दो-तीन दिन मिसेज़ कोहली का फ़ोन न आये तो परेशान होकर स्वयं फ़ोन मिलाने लगती थी। यदि मिसेज़ कोहली तीन-चार दिन लगातार फ़ोन कर देतीं तो संगीता को भयंकर तनाव हो जाता।

इसी तनाव के कारण संगीता अपने ग्राहकों से खुल नहीं पाती थी। और संगीता की इसी झिझक की दीवानी थी मिसेज़ कोहली की मित्रमण्डली। संगीता कई बार सोच में पड ज़ाती थी कि इन सभी लोगों की पत्नियां भी तो गृहणियां ही हैं और साफ़ सुथरी भी अवश्य होंगी, फिर यह लोग उस पर इतना पैसा क्यों लुटाते रहते हैं। मिसेज़ कोहली का हर मित्र 'साफ़ सुथरी गृहणी' ही चाहता था। 'प्रोफ़ेशनल' वेश्या से एस टी डीज होने का डर जो रहता है।

हेमन्त के पत्रों और फ़ोन की प्रतीक्षा करने वाली संगीता एकाएक चाहने लगी थी कि हेमन्त थोडे दिन औन न आये। एक डर बराबर संगीता को परेशान किये रहता था। यदि हेमन्त को पता लग गया तो?

जी कडा करके मिसेज़ कोहली को फ़ोन भी कर दिया, “मिसेज़ कोहली आपसे एक बात करना चाहती हूंयू नो,बात, दरअसल यह है, कि मुझे बहुत डर लगने लगा है। यूसी, लास्ट मंथ पीरियड्स थोडे ड़िले हो गये थे। तो कई दिन तक परेशान रही। फिर हेमन्त के बारे में सोचकर भी बहुत तनाव रहता है। डिप्रेशन की प्राब्लम बढती जा रही है।मैं यह काम बन्द कर देना चाहती हूं।”

संगीता की दलीलें इतनी कमज़ोर थीं कि मिसेज़ कोहली नामक तूफ़ान के सामने क्षणभर भी टिक नहीं पाईं।

आधे घण्टे बाद ही वह टेक्सी में बैठकर चाणक्यपुरी की ओर चल दी थी। अब तो वह दिन भर के लिए भी ग्राहक के साथ रहने को तैयार हो जाती थी। मिसेज़ कोहली को भी खतरा सा महसूस होने लगा था। उनका हर एक मित्र संगीता को ही बुलाने लगा था। इस तरह उनका धंधा तो केवल संगीता पर ही आश्रित होकर रह जायेगा। किन्तु मिसेज़ कोहली को अपना धंधा चलाना आता ही था।

कालेज के दिनों में संगीता घर से कालेज और कालेज से घर के अतिरिक्त और कहीं भी नहीं जाती थी। उसकी सहेली मीना तो उन दिनों भी काफ़ी चुस्त थी। अपनी किसी आंटी का जिक्र करती थी मीना। वही उसे भिन्न होटलों में ले जाया करती थी। एयरलाइन के मेम्बरों को सप्लाई होती थी मीना और उसकी सहेलियां।

मीना कालेज के दिनों में भी इतनी तडक़-भडक़ से रहती थी कि संगीता जैसी लडक़ियां उससे बात करने का साहस नहीं कर पाती थीं। परन्तु मन में कहीं कोई हूक अवश्य उठती थी कि उसके पास मीना जैसा व्यक्तित्व व वैसी कपडे क्यों नहीं हैं। धीरे-धीरे मीना और संगीता अच्छी सहेलियां बन गईं। और मीना ने संगीता के सामने भी पैसा बनाने का प्रस्ताव रखा।

संगीता ने माना को खासा लताडा, “तुम अगर अभी से इन चक्करों में पडी रहोगी तो पढाई क्या करोगी। किसी दिन कोई बीमारी लगाकर वापिस आओगी। तब देखना सब तुम पर कैसे थूकते हैं।” मीना हंसकर चली गई।

आज संगीता को अस्पताल के कमरे में चारों ओर मीना की हंसी ही सुनाई दे रही थी, “संगीता डार्लिंग, व्हाट हैपेण्ड?यह तुम किस चक्कर में पड ग़ईं? वो सब लेक्चर क्या मेरे ही लिए थे?मुझे देखो, अमरीका में अपने पति के साथ ऐश कर रही हूं। और तुम ..हाहाहा “

निष्चेष्ट-सी पडी रही संगीता। उस दिन भी तो सिदर्द के मारे यूं ही पडी थी संगीता। मिसेज़ कोहली का फ़ोन आया था, “बम्बई से मिस्टर कुमार आये हैं। तुम्हारे प्रिय होटल में ठहरे हैं। स्वीट नं388 में होंगे। बस एक बात का ध्यान रखना, कुमार को सफ़ेद कपडे बहुत पसन्द हैं। कोई व्हाइट बेस वाली साडी पहन जाना।”

“मिसेज़ कोहली मेरे सिर में बहुत दर्द है। आज नहीं जा पाऊंगी।”

“मै कौन सा तुम्हें अभी जाने को कह रही हूं। दोपहर को डेढ-दो बजे चली जाना। वो लन्च भी तुम्हारे साथ ही करना चाहता है। अपना हार्डिकर है न, उसका खास दोस्त है। बम्बई से आज ही आया है।”

“मैंने कहा न, मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैं नहीं जा पाऊंगी। आप रीटा को भेज दीजिये ना।”

“रीटा जनपथ गई है। उसका कलकत्ते वाला आया हुआ है। वो तो पूरे हफ्ते के लिए बुक है।”

“ओह, मिसेज़ कोहली!”

“बच्चों जैसी बातें नहीं करो संगीता। कुमार हार्डिकर का खास दोस्त है। हार्डिकर का बंबई से फ़ोन आया था। वो चाहता है कि तुम ही कुमार के पास जाओ। और फिर अगले हफ्ते तो हेमन्त भी आ रहा है। फिर तो एक महीने के लिए तुम बंध जाओगी। यही मौका है, थोडे पैसे बना लो। फिर घंटे भर की ही तो बात है। कुमार को तीन-चार बजे तो मीटिंग में चले जाना है। फिर उसका कोई भाई भी यहीं रहता है। कह रहा था कि कल से तो भाई के घर शिफ्ट कर जायेगा। बस आज का ही दिन है उसके पास। दस हज़ार की बात हुई है। पांच तुम्हारे और टिप ऊपर से। ऐसा मौका रोज़-रोज़ नहीं मिलता।”

संगीता उठी, एक गोली क्रोसिन की ली। श्वेत कपडे पहनकर श्याम कर्म करने जा रही थी। बगलों के बात साफ़ किये, बिना बाहों वाला 'डीपकट' ब्लाऊज़ और अपनी पसन्द की सफ़ेद साडी। न जाने क्यों सब कुछ बहुत अनमने ढंग से हो रहा था। कभी साडी क़े प्लीट ठीक से नहीं बन रहे थे तो कभ मैचिंग चप्पलें नहीं मिल रही थीं। मैचिंग लिपस्टिक, नेल पॉलिश, गले का हार, चूडियां-सब मिलकर, संगीता गंगा जैसी पवित्र मूर्ति लग रही थी।- गंगा, जिसमें सारे संसार का मैला मिलकर पवित्र हो जाता है।

घर से तेयार होकर संगीता निकली। टेक्सी ली और होटल पहुंच गई। तबीयत अभी भी पूरी तरह ठीक नहीं लग रही थी। सम्भवतः इसीलिए उसे कुछ ऐसा लग रहा था जैसे वह पहली बार मिसेज़ कोहली के दोस्त को मिलने जा रही हो। होटल के दरबान ने सलाम मारा। दस रूपये उसे टिप दिय। चाल में थोडा दर्प भरते हुए आगे बढ ग़ई। लिफ्ट तीसरी मंजिल पर रूकी। लिफ्ट में से निकलते-निकलते भी संगीता सोच रही थी-'आज के बाद मिसेज़ कोहली को स्पष्ट इंकार कर दूंगी। अब कल से हेमन्त के आने तक अपने आपको हेमन्त के लिए तैयार करना होगा। अपने आपको इस काम से अलग करना होगा। तभी तो हेमन्त प्रसन्न रहेगा। उसे कुछ पता भी तो नहीं चलना चाहिए।'

दरवाज़े पर थाप दी। दरवाज़ा खुला, “हलो”

और संगीता की पहुँचने के सामने जो विस्फोट हुआ वो तो हेमन्त के बर्फ़ीले बार्डर पर भी नहीं हो सकता था। अंधेरा सा छाने लगा था। बेहोश हुई जा रही थी संगीता।सामने सुनील खडा था-उसका अपना देवर!

देवर ग्राहक और भाभी। “भाभी, आप!”

सुनील की पहुँचने और आवाज़ में अविश्वास था। और उन दो पहुँचने का सामना करने की शक्ति संगीता में चुमती जा रही थी। वह बेहोश होकर गिर पडी थी।

छत पर पंखा अब भी घर्र-घर्र घूम रहा था और साथ ही घूम रहा था संगीता का सिर। हेमन्त परसों ही आने वाला है