संघर्षरत वर्ग की व्यथा से साक्षात्कार / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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'हिस्से का दूध' मधुदीप की तीस लघुकथाओं एवं सात कहानियों का संग्रह है। दोनों ही विधाओं में मधुदीप की क्षमता का एहसास पाठक को इन रचनाओं से गुजरते हुए होता है। विशेषत: लघुकथा के क्षेत्र में छाया कुहासा ऐसी रचनाओं से टूटने लगा है। कथ्य में कसाव, पात्रों का अन्तर्द्वन्द्व, उद्देश्यपरकता, भाषिक संयम, संक्षिप्तता एवं शिप्रता मधुदीप की लघुकाओं के विशिष्ट गुण हैं।

'हिस्से का दूध' में अभाव एवं दैन्य की पराकाष्ठा चित्रित की गई हैं। ‘तनी हुई मु‌ट्ठियाँ' में भ्रष्टाचार का विरोध है, तो 'ऐलान-ए-बगावत’ में उसी विरोध को कार्यरूप में परिणत होते देखा जा सकता है। इस लघुकथा में वातावरण-निर्माण के द्वारा लेखक ने दफ्तरी मुठमर्दी को साकार कर दिया है। 'फाइल मरे हुए चूहे के समान उसके हाथ में झूल रही थी' जैसे भाषा- प्रयोग कथा को प्राणवान् बनाने का कार्य करते हैं। निम्न वर्ग अपने झूठे अहम्, थोथी मर्यादा की बेडियों, जंगखाई परम्पराओं से मुक्त नहीं होना चाहता है। शासन का चाय वाला बीमार पत्नी के लिए चाय बनाने के काम की हीनतर समझता है। ‘खुरंड’ का कामगार पिता दोहते के जन्म का समाचार सुनकर जितना खुश होता है, भारी छूछक देने की परम्परा से उतना ही परेशान हो उठता है। कारखाने की तालाबंदी से उसकी रही सही हिम्मत भी काफ़ूर हो जाती है। उसका अस्तित्व' में सम्बंधों के निर्वाह की अनिवार्यता जीवन के सारे सुखों वो कुतरती रहती है। अपने अस्तित्वको नकारकर मरे हुए शिष्टाचार को कहाँ तक ढोया जाए। यह प्रश्न पाठक को मथ देता है।

'एहवास' का एम ए पास बेकार युवक कठोर परिस्थितियों से मुँह चुराता रहता है; लेकिन घर की जर्जर हालत उसे उसके कर्त्तव्य का अहसास करा देती है। आटे का खाली कनस्तर देखकर उसे गहरा आघात लगता है, 'ओवर राइम' दफ्तरों में खटने वाले कर्तव्यनिष्ठ बाबुओं की पीड़ा को अभिव्यक्त करने में सफल हुई। ओवरटाइम करने पर भी साहब के अडंगा लगा देने पर भुगतान रुक जाता है। विरोध का स्वर ,विरोध न करने की विवशता इस शोषण को प्रोत्साहन देती रहती है। ‘ऐसे' के दो मित्रों का संघर्ष करने का निर्णय हताशा में एक किरण का‌ काम करता है। 'खोखलापन' में चरित्र से दोगलेपन पर गहरा कटाक्ष है। भौतिकता के अफीमी आकर्षण में बँधकर फिर उसका ही वाचिक विरोध करना पाखण्ड की चरम सीमा है। ‘बंद दरवाजा’ में पंडितजी के चारित्रिक पाखंड वो उजागर किया है। लम्पटता देवालयों के दरवाजे बंद करके अमर जीवन प्राप्त करती आ रही हैं।

'नियति' में विवश मजदूर को शोषणकथा है, तो ‘अस्तित्वहीन नहीं' में रिक्शे वाले का प्रतिरोध स्थिति तो बदल देता है। नरभक्षी प्रतीक के माध्यम से अवसरवादी मिठबोले शोषकों के हथकण्डों की सफल प्रस्तुति है। 'विवश मुट्ठी’ में गरीब शिक्षक का आवरण गहरी टीस उत्पन्न करता है।

मधुदीप ने अधिकतर लघुकथाओं में अनाम पात्रों से काम चला लिया है। अनाम होते हुए भी ये पात्र अनेक नामों से पास-पड़ोस में जीवन तो ठेलते झेलते मिल जाएँगे। लघुकथा लेखन को शार्टकट लेखन समझने वाले इन रचनाओं को पढ़कर अपने विचार बदल लेंगे। लेखक ने प्रत्येक रचना पर पर्याप्त श्रम किया है। लघुकथा विषयक मधुदीप की यह उक्ति- 'जिन्दगी की सच्चाइयों का सीधा साक्षात्कार करवाती है’ इन लघुकथाओं पर खरी उतरती है।

दूसरे खण्ड में सात कहानियाँ है। इन कहानियों के पात्र भी विनिम्न वर्ग एवं निन मध्यमवर्ग से जुड़े हैं। 'ट्यूशन’ कहानी में एक कर्त्तव्यनिष्ठ शिक्षक दामोदर बाबू के जीवन की त्रासद स्थितियों का लेखा-जोखा है। राष्ट्र का कर्तव्यनिष्ठ निर्माता टुटपुंजिए लोगों की व्यूह रचना का पग-पग पर शिकार होता है। अपने ही साथी दामोदर को हिकारत की नज़र देखते हैं। श्रेष्ठ अध्यापक का सम्मान भी उसके लिए तिरस्कार का कारण बना। मधुदीप ने दामोदर के अन्तर्द्वन्द्व को बड़ी कुशलता से इस कहानी में उतारा है। इस कहानी में दामोदर का दैन्य पाठक से झिंझोड़ देने के समर्थ है।

‘परखली के बंद’ एक क्लर्क के टूटते सपनों की करुण कथा है। पेट काटकर राजू को पढ़ाने में मनसाराम बाबू बिखर जाते हैं। आज के न जाने कितने गुमराह राजू मनसाराम जैसे कितने पिताओं के सपनों का खून कर रहे हैं। ‘सुर्ख़ियाँ’ में राजनीतिज्ञों एवं उनके पिट्ठुओं द्वारा किए गए शोषण का पर्दाफाश किया गया है। निम्नवर्ग की नियति केवल झण्डों का बोझ ढोने तक है, पेट खाली ही रहेगा। मंगू दादा जैसे छुटभैये अपने अमानवीय आचरण से इस शोषण को सींच रहे है। ‘अपना-अपना अतीत’ में, प्रेम सम्बन्धो का विश्लेषण किया गया है। उमेश अपनी पत्नी उम्र के विवाह पूर्व सम्बन्धों से आहत है लेकिन अपने अतीत को याद कर वह तनावयुक्त हो जाता है । उमेश के अन्तर्द्वन्द्व एवं प्रतिक्रियायों को लेखक ने बारीकी से उभारा है।

'उस पल भी मौत’ में अंजली के नारी मन को पर्त-दर पर्त खोला गया है। अखिलेश का आदर्शवादी चरित्र अंजली के सामने निष्प्रभ प्रतीत होता है। शारीरिक आवश्यकता को आदर्शवाद से पूरा नहीं किया जा सकता। नारी कोई माँस का लोथड़ा नहीं कि उसे उसकी इच्छा के विपरीत, जिसको चाहे सौंप दिया जाए। अंजली के शान्त और प्रतिक्रियावादी चरित्र के दोनों रूपों को का लेखक ने बारीकी से निर्वाह किया है।

'छुट्टी' कहानी में औपचारकता के पीछे काम करती संवेदनहीनता और क्रूरता के दर्शन होते हैं । ‘दमड़ीमल’ कहानी के दहेज की समस्या को उभारा है। कहानी का पूर्वाद्ध प्रभावशाली है। चम्पा की आत्महत्या पर ही कहानी समाप्त हो जाती तो संभवत: कसाव बना रहता।

मधुदीप ने लघुकथा एवं कहानी दोनों ही विधाओं के माध्यम से अपनी सर्जनशीलता का अहसास कराया है। प्रत्येक रचना पाठक को सोचने के लिए विवश करती है। कथा- जगत् में संग्रह अवश्य सराहा जाएगा।

हिस्से का दूध, मधुदीप , संस्करण 1991, पृष्ठ : 126, मूल्य: 40 रुपये। दिशा प्रकाशन, 136/16, त्रिनगर दिल्ली-110035

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