संसद के दवा बाजार में प्लेसिबो / जयप्रकाश चौकसे

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संसद के दवा बाजार में प्लेसिबो
प्रकाशन तिथि :11 जनवरी 2019


दवा बाजार में खाली कैप्सूल भी मिलते हैं। लाइलाज से दिखने वाले रोग में मरीज को खाली कैप्सूल में शकर भर कर दी जाती है और वह उसे दवा मानकर खाता है। कभी-कभी इस टोटके से भी रोगी ठीक हो जाता है। इस मेडिकल क्षेत्र में एक विधा 'डबल ब्लाइंड' कहलाती है, जिसमें न तो डॉक्टर जानता है कि कौन सा प्लेसिबो है या कौन से कैप्सूल में दवा भरी है और न ही मरीज जानता है। तीसरा व्यक्ति है, जिसने किसी कैप्सूल में दवा तो किसी में शकर भरी है। वही जानता है कि उसने कैसा खेल रचाया है। इस तीसरे व्यक्ति को क्रिकेट के मुहावरे में हम थर्ड अंपायर मान लें। यह सारा खेल मनोवैज्ञानिक है। रोगी की विज्ञान सम्मत विचार शैली दवा से अधिक कारगर सिद्ध होती है। इस क्षेत्र में अंधविश्वास फैलने की संभावना है। रोगी का डॉक्टर पर भरोसा निर्णायक सिद्ध हो सकता है। इसलिए कहा जा जाता है कि फला डॉक्टर के हाथ में शिफा है। दरअसल मरीज के आत्मविश्वास का श्रेय डॉक्टर को देकर हम कहते हैं कि उसके हाथ में शिफा है।

अब ताबड़तोड़ कुछ फैसले लिए जा रहे हैं जो प्लेसिबो की तरह है। यह 'डबल ब्लाइंड' का खेल है। यह अनिश्चय व संशय की दशा मानवता के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। ताश के तीन पत्ती के खेल में हारा हुआ खिलाड़ी डबल ब्लाइंड खेलता है ताकि एक ही बाजी में अपनी सारी हारी हुई रकम वापस पा सके। इस तरह के पांसे प्राय: उल्टे ही पड़ते हैं। दिवालिएपन की कगार पर खड़े मुल्क को यह असहनीय हो सकता है।

खाकसार की फिल्म 'शायद' के एक दृश्य में रोगी की भूमिका अभिनीत करते हुए नसीरुद्‌दीन शाह एक खाली कैप्सूल में छोटा-सा छर्रा डालता है। उसकी हथेली के हल्के से कंपन के कारण वह कैप्सूल नृत्य करता-सा दिखता है। उन्हीं दिनों घातक नशे पर उपन्यास प्रकाशित हुआ था-'वैली ऑफ डॉल्स' आज हम सभी कस्बों और शहरों में सबसे अधिक संख्या में दवाई की दुकानें देखते हैं तथा खान-पान की ठिकाने हैं। गोयाकि देश भोजन भकोस रहा है और बीमार भी पड़ रहा है। इसके साथ ही पर्यावरण भी चिंताजनक है। हवाओं में कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक असहिष्णुता का जहर मिला हुआ है। नसीरुद्‌दीन शाह की साफगोई पर हुड़दंगियों ने हंगामा खड़ा कर दिया है। कुछ इसी तरह की बात आमिर खान ने कही थी तो उनसे सार्वजनिक रूप से क्षमा की मांग करके बवाल खड़ा कर दिया गया था। अब तो यह भी उजागर हुआ है कि इंटरनेट पर सवेतन काम करने वाले नियुक्त किए गए हैं जो एक नकली समा बांधने का काम करते हैं।

वेदव्यास रचित महाभारत में दुर्योधन का भाई युयुत्सु पांडव पक्ष की ओर से लड़ा था। वर्तमान की राजनीति के कुरुक्षेत्र में भी वरुण गांधी ने अपने दल से असंतोष के संकेत दिए हैं और वे भाई राहुल की ओर जा सकते हैं। बहुओं के बीच अभी तक कड़वाहट कायम है परंतु उनके पुत्रों के बीच स्नेह के संबंध बन रहे हैं। उधर सत्तारूढ़ दल के गलियारों में दबे स्वर में असंतोष अभिव्यक्त हो रहा है। शासक भी जानते हैं कि उनकी नाव में ही है तूफान है, जबकि नदी मंथर गति से प्रवाहित है। अगर संसद को दवा बाजार मान लें तो उनके प्लेसिबो का राज उजागर हो गया है और 'डबल ब्लाइंड' भी जगजाहिर है। सत्ता से गंवाने का भय नतीजे में अनावश्यक तोड़फोड़ दे सकता है। संभव है पड़ोसी दोस्त-दुश्मन देश से मिली-जुली जंग ही खेल ली जाए। सर्जिकल स्ट्राइक भाग दो सफल फिल्म की दूसरी कड़ी की तरह हो सकता है।

दूसरी तरफ प्रचार तंत्र द्वारा एक नेता की छवि मसखरे जैसी बना दी गई थी, जिसमें उनका अपना दोष भी शामिल था। सशक्त प्रचार तंत्र को उनके कच्चेपन में खूब मसाला मिल गया परंतु अब वे विचारवान नेता की तरह प्रस्तुत हो रहा है। ग्रीस के नाट्य शास्त्र में विदूषक अत्यंत दार्शनिक पात्र है। शेक्सपियर ने भी सारगर्भित संवाद विदूषक से कहलवाएं हैं। इस संदर्भ में याद आता है कि चार्ली चैप्लिन ने कहा था कि 'ज़िंदगी लॉन्ग शॉट में कॉमेडी लगती है परंतु क्लोजअप में त्रासदी। अवाम ही जानता है उसका नज़रिया क्या है।