सगुनिया सवासिन सीता / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Gadya Kosh से
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प्रतिभा जोंन दिशा में मुड़ी जाय छै हुन्नें पहाड़-पत्थर तोड़ी केॅ रास्ता बनाय लै छै। सोनमनी दू भैंस आरो एक जोड़ी बैल बापोॅ केॅ बेगारी देलकै आरो दूनोॅ गाय, लेरू, बाछी समेत अलगें लैकेॅ चराबै लागलै। चारे सालोॅ में ऐकरोॅ संख्या बढ़ी केॅ बारह-तेरह होय गेलै। तीन-तीन बाछी पाल खायकेॅ गाय होय गेलै। दू ठो बाछा जोतै लायक बैल होय गेलै। ऐकरा नफा सें सोनमनी के कहला पर सीता नें घरोॅ में किवाड़ी आरो आगू द्वारी वाला रसता पर लोहा के जंगला लगाय देलकै। घोॅर, दुआर, बथान सब चकाचक करेॅ लागलै। दस-बारह पाथा दूध घरोॅ में खाय-पीवी केॅ बिक्री वास्तें होइये जाय छेलै।

दुआरी पर जेॅ जंगला छेलै वही ठियां सीता खटिया पर सूतै छेलै। उतरवारी तरफें बथानी पर दूनो बापुत। अभाव आरो गरीबी तेॅ गाँव वाला केॅ दैबें डंगाय केॅ देनैं छेलै। खेती छोड़ी केॅ लोगोॅ केॅ कोय रोजगार-धंधा नै छेलै आरो खेतियोॅ की, वहोॅ दैव आसरा। यहाँ करोॅ जमीन चौतरा नांकी उसर-टीकर, उँच्चोॅ नीचोॅ नै छेलै, खेती लायक समतल छेलै। कहियो खूब धुंआधार वर्षा आरो कहियो एकदम कम वर्षा के मार साधारण बात छेलै। चोरी आरो सींगकाठी खूब होय छेलै।

सीता रात भर यहेॅ कारणें सूतै नै। घोॅर ऐन्होॅ ठियां छेलै कि केकरोह जाबै लेली वै रास्ता होयकें पार बिना होलें कोय उपाय नै छेलै। निशिभगेॅ रात हुअेॅ तेॅ चोर वै दैकेॅ पार हुअेॅ। पचास-पचपन बरस उमर के लगेॅभग होय गेली सीता के आँखोॅ में नीन कहाँ, वें कहियो टोकी दै, कहियो चुपचाप देखै, मतुर टोकै नै। जोन दिना सीता टोकी दै, वै रोज चोरोॅ के चोरी सुतरी जाय, कुछ्छु नै कुछ्छु लहिये जाय आरो जोंन दिन नै टोकै, उ$ दिन खालिये हाथ लौटे लेॅ पड़ी जाय। बस, चोरें सीता के नामें राखी देलकै "सगुनिया सवासीन" आरो सौसे गाँमोॅ में बड़े-बूढ़ें बच्चा-बुतरू केॅ " सीता बूढ़ी आरो चोरोॅ के कहानी चाव सें चभलाय-चभलाय केॅ सुनाबेॅ लागलेॅ।

बुतरू दादी सें पूछै-"ओकरो बाद की होलै दादी। नै टोकला पर चोरोॅ की करलकै।"

दादी कहै-"सीता दीदी आरो चोरोॅ के किस्सा सुनतें पेटेॅ नै भरै छै छौड़ा केॅ। देखोॅ नी को रंग नीनवासलोॅ खटिया पर उठी केॅ बैठी रेल्होॅ छै।"

ई सुनी केॅ भरकोवाली हाँसलै-"ओकरोॅ बाद, जोंन दिन दीदी नै टोकै उ$ दिन रात में चोर थोड़ोॅ दूर जाय केॅ घुरी आवै आरो दीदी के माथा रोॅ बाल पकड़ी केॅ खींचै। दीदी बूझी जाय आरो सुतले-सुतले उधैेंलेॅ में झाड़ी केॅ कहै-" जोॅ न, बौखेॅ छैं कथी लेॅ, लहतौ रे ..."आरो सच्चेॅ में चोरोॅ केॅ लही जाय। उम्मीदोॅ सें बेशी सुतरी जाय छेलै।" तवेॅ तेॅ दीदी केॅ भी हिस्सा देतें होतै। " बुतरू में सें कोय बैठी केॅ पूछै।

भरको वाली केॅ फेरू हँसी आबी जाय। समझाय केॅ कहै-"हिस्सा कथी लेॅ लेतै दीदी। दीदी चिन्हेॅ छेलै केकरोह थोड़े। औकताय केॅ दीदी जे हुअेॅ कहि दै छेलै। चोरोॅ के जिहेॅ कत्तेॅ। छहाछत समना-समनी होतियै तेॅ उ$ चोरे रहतियै। फेरू जमींदारोॅ सें पकड़वाय नै देतियै। अंगरेजोॅ राजोॅ रो शासन बड़ा कड़ा छेलै। की मजाल लाल मुरेठा देखी केॅ गाँमोॅ के एक्को लोग घरोॅ सें बाहर रहेॅ पारै। चौकीदारोॅ के बरदी देखी केॅ झड़ा-पेशाब उतरी जाय छेलै।"

ई सुनतैं बुतरू सीनी डरी जाय आरो आपनोॅ-आपनोॅ बिछौना चद्दर में डरोॅ सें आँख मूंनी केॅ घुसियाय जाय।

दादी भरको वाली से कहै-" सच्चेॅ चिनगी रौतोॅ के बेटी सीता बड़ी सगुनिया छै। देखोॅ न, एैली छेलै ससुरारी सें सबकुछ लुटाय केॅ, दुखियारी बनलोॅ आरो अखनी द्वारी पर कोरी भर माल छै। गाय, भैंस, बैल सभ्भेॅ कुछ्छु। छौड़ा सोनमनी लागै छै विशु रौतोॅ नांकी कोय अकवाली पुरूख होतै। दुआर, बथान भरलोॅ जाय रेल्होॅ छै। गाँमोॅ में केकरोह सें भरी मुँह बोलै नै छै। टोकला पर जौं बोलै छै तेॅ सभ्भेॅ केॅ कोनोॅ जात रहै, नाना, नानी, मामा, मामी, दीदी, भैया ही बोलतै। गुड़ोॅ सें मीठ्ठोॅ बोली। केकरौ ने करेजोॅ जुड़ाय जैतेॅ होतै। भगवान भलोॅ करै बुतरू केॅ। ... आरो सीता । सीता तेॅ सीतेॅ छेकै। दूनोॅ कुल तारै लेॅ एैली छै। नैहरा ससुराल दूनोॅ। चोरोॅ के ओतन्हेॅ पियारोॅ जतना आपनोॅ सीनी केॅ।

भरको वाली हों में हों मिलैलकै-"आभियो देखौ छोॅ दादी, पकलोॅ-अधपकलोॅ सफेद सोॅन रंग बालोॅ पर गोरोॅ झनाक खिलखिल करतें हँसता मुँह। गाँव भरी में केकरोह दुखोॅ में हाँक पारोॅ, दौड़ली चल्ली आबै छै। आधोॅ दुख तेॅ हुनका ऐतैं आरो हँसता मुँह देखतैं खतम होय जाय छै।"

दादी हुक्का पीवी रेल्होॅ छेलै। जोरोॅ सें खाँसलै।

भरको वाली कहलकै-"सीता दीदी सें फेरू कहै लेॅ पड़तै कि दादी हिन्नेॅ सें हुक्का पियै पर जादा जोर दै देलै छै।"

दादी हुक्का सिरहौनोॅ में खटिया नीचूं राखतै हुअेॅ बोललै-"ओकरा कहवोॅ ने करिहोॅ। ओकरोॅ परबचन सुनतेॅ माथोॅ-कान दुक्खै लागै छै। नै, नै कहतें हुक्का उठैतेॅ आरो बारी में फेंकी एैतेॅ, गूगड़ियाँ-फैरछोॅ कुछ्छु नै देखतै।"

"आरो तोरा नांकी हुक्का पियाक फेरू उठाय केॅ लै लानतै।" भरको वाली कहलकै। आरो दूनोॅ सास-पुतोहु ठठाय केॅ यै बातोॅ पर हाँसै लागलै।