सच्चा व्रत / ओमप्रकाश क्षत्रिय

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ओमप्रकाश क्षत्रिय »

नवरात्रि में दुर्गाएं शांत थी. पति के लिए यह नौवा अजूबा था. माँ कह रही थी, “ बहू ! साबूदाने की खीर बना देना.” पत्नी अपने स्वभाव के विपरीत चुप थी. ‘ नहीं मांजी ! साबूदाने की खीर नहीं, खिचड़ी बनेगी,’ यह सुनने के लिए पति तरस गया.

“ माँ ! ” बेटा कुछ ओर पूछता, उस से पहले ही माँ बोल उठी, “ आज तेरी सास आई थी. उस का और उस की बहू का जम कर झगड़ा हुआ था. इस पर दोनों माँबेटी में मंत्रणा हुई थी. फिर न जाने क्या हुआ. तेरी सास चली गई और तेरी पत्नी शांत हो गई.”

“ क्या कह रही हो माँ !”

“ हाँ बेटा. तेरी पत्नी ने मौनव्रत ले लिया.”

“ सच माँ ! यदि इस मौनव्रत से घर में सुख, शांति और सुरक्षा मिलाती है तो माँ आप भी इसे कर लिया करो.”