सच कितना बेबस / प्रमोद यादव

Gadya Kosh से
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सप्ताह भर पहले की घटना है. जबसे सुदेश के दुर्घटनाग्रस्त होने व पैर फ्रेक्चर होने की खबर मिली, तबसे उनके घर जाने का विचार था पर आफिस में कार्य अधिक होने की वजह से नहीं जा पा रहा था. महीने भर पहले ही रिटायर हुए थे सुदेश. मेरे बहुत अपने थे सुदेश. हम दोनों एक साथ एक ही विभाग में काम करते थे. आफिस टाईम के बाद घर जाकर उनके घर जाना बहुत नागवार लगता था क्योंकि मेरा घर आफिस से बहुत दूर है, लगभग पन्द्रह कि. मी. और सुदेश का घर आफिस से केवल तीन कि. मी. की ही दूरी पर. अतः हमेशा सोचता कि किसी दिन लंच समय में उन्हें देख आऊंगा, पर दिन यूं ही निकल रहे थे, जा नहीं पा रहा था.

एक दिन अपनी व्यथा आफिस के एक और मित्र अजय से कही तो उसने कहा- ‘ चलो, आज ही चलते हैं. ‘ लंच के समय हम दोंनो उनके घर पहुंचे. बड़े दिनों बाद मिले तो समय का पता ही न चला. लगभग दो-ढाई घंटे वहाँ बैठ गये. वापस लौटे तो मालूम हुआ कि ‘ बॉस ’ हम दोनों को बड़ी सरगर्मी से खोज रहे हैं. सामना हुआ तो वे बिफर पड़े- ‘ कहाँ रहते हैं मिस्टर ? घंटों से खोज रहा हूँ, अत्यंत जरुरी काम आया है और आप हैं कि बिना बताये सैर-सपाटा कर रहें हैं..’

मैंने सच्ची बात कही तो वे भड़क उठे- ‘ जिससे मिलना आप इतना जरुरी समझते हैं, वो आदमी रिटायर हो गया है, घर पर ही रहेगा..कहीं नहीं जाएगा..आफिस टाईम में ही मिलना क्या जरुरी था? पहले आफिस का काम देखिये, उसके बाद समाज-सेवा कीजिये...ऐसा न हो कि किसी दिन आपको चार्जशीट थमा दूं ‘

मैं बॉस को कुछ कहता इसके पूर्व ही एकाएक अजय उनके सामने पड़ गया. उसे देखते ही कहा- ‘ और आप कहाँ थे जनाब ?

अजय ने मासूमियत-भरे स्वर में कहा- ‘ सर, पेमेंट लेने बैंक जा रहा था कि रास्ते में स्कूटर पंचर हो गया...आसपास कोई बनाने वाला नहीं था...बड़ी मुश्किल से घसीटते- घसीटते तीन कि. मी. दूर जाकर बनवाया....आफिस लौटने की हड़बड़ी में पेमेंट भी नहीं ले पाया..’

बॉस नरमी से बोले- ‘ ठीक है..जाओ काम करो..ऐसे वक्त में आफिस फोन कर हमसे मदद लेनी चाहिए..’

अजय तुरंत खिसक गया. बॉस पुनः मेरी ओर मुखातिब हो बोले- ‘ आफिस के काम में मन लगाओ...नहीं तो किसी दिन सचमुच मुझे कुछ एक्शन लेना पड़ जाएगा. ‘

उस दिन मुझे ज्ञान-बोध हुआ, मैंने जाना कि झूठ के आगे सच कितना बेबस और बौना होता है.