सतहा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Gadya Kosh से
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हथिया नक्षत्रा। अकासोॅ में डलमडल मेघ छेलै। कारोॅ-उजरोॅ दोनों तरह के मेघ जबेॅ चलै तेॅ लागै कि सरंगों में बड़का-बड़का पहाड़ चलतें रहेॅ। ढेर सीनी रूपोॅ केॅ धारण करी केॅ हथिया जबे गरजै तेॅ डोॅर लागी जाय। रात भर झोॅर पड़तें रहलोॅ छेलै आरो रात भर अन्हार बेचारी कांपतें रहली छेलै। झकसी केॅ ई चौथोॅ दिन छेलै। लागै छेलै सरंगोॅ में छेद होय गेलोॅ रहेॅ। झकासोॅ केॅ झकास करतें ठनका के ठनकवोॅ के साथ बिजली चमकलै। बाप सोनमनी मड़रोॅ के छाती सें बनरियां नांकी चिपकलोॅ जैवा डरी केॅ चिहाय उठलै। हड़बड़ाय केॅ उठलै सोनमनी आरो बैठी गेलै। सरंगोॅ तरफें हियाय केॅ देखलकै सोनमनी आरो जैवा केॅ पूछलकै-"की होलोॅ जैवा? डरै छैं कैन्हेॅ। सांझें तोरा कहै छेलियौ कि दुआरी पर हमरा ठिंया नै सूतैं; डोर लागतौ मतुर तोंय कानी केॅ माथा पर सरंग उठाय लेल्हें।"

तखनिये बिजली फेरू चमकलै आरो लगातार ठनकतें-चमकतें रहलै। दूनूं बाप-बेटी हाथोॅ सें कानोॅ केॅ बंद करलकै। आँख तेॅ अपनें सें मुनाय गेलोॅ छेलै। पाँच-सात वरसोॅ के बुतरु जैवा कानतें कहलकै-"हम्में माय ठिंया जैबोॅ। लागै छै बिजली आँखी में ढूकी जैतोॅ, ठनका सें कान उड़ी जैतोॅ।"

सोनमनी सरंगोॅ हिन्ने निरयासी के ताकलकै। बिजली के चमकवोॅ सें हुनी अंदाज लगैलकै कि दू-तीन घंटा सें कम समय भियान होय में नै छेलै। सोनमनी मनोॅ में सोचलकै कि एक दरवनियां में जैवा केॅ गोदी में उठैलें घोॅर पहुँचाय दियै कि तखनिये चिरका जोरोॅ के साथ चिरकलै आरो छरछर पानी चूवेॅ लागलै। ऐन्होॅ चौतरफा अंधड़ नांकी बॉव बहै लागलै कि ठाठ-कोरोॅ तांय हिली गेलै।

सोनमनी डरोॅ सें थरथर कांपतें आरो कानतें जैवा केॅ चदरोॅ सें झांपतें अपना छाती में कस्सी केॅ चिपकाय लेलकै-"कानें नै जैवा। कानभैं तेॅ कल्हू सें तोरा हम्में अपना ठिंया नै सुतैवोॅ। केनां लै केॅ जइयो ई झरी में। दोनों भींगी-तीती जैवोॅ। ... आरो जों जैतें माथा पर ठनका गिरी गेलोॅ तेॅ बस, राम-नाम सत्त होय जैतोॅ। तोंय तेॅ मरबेॅ करबें, हमरौ मारी देबें। चुपचाप सूतें।" जैवा सचमुच डरी गेलै यै बातोॅ सें, कैन्हें कि उ$ बापोॅ के छोड़ी केॅ काहूँ, केकरौह ठिंया सूततै नै छेलै।

सोनमनी केॅ बेटा-बेटी लगाय केॅ कुल सात संतान छेलै। बड़ो दू बेटा लालजी आरो अधिक, ओकरो बाद पाँच बेटिये छेलै। बेटी में चौथोॅ आरो कुल संतान में छठा नम्बर पर जया छेलै जेकरौ नाम पियार आरो दुलारोॅ सें पुकारै में जैवा होय गेलोॅ छेलै।

सात-सात संतानोॅ केॅ संभालना साधारण बात नै छेलै। झांपी-पोती केॅ छाती लगैला पर जैवा केॅ तेॅ नीन्द आबी गेलै मतुर सोनमनी के धियान मनरूपा पर चल्लोॅ गेलै। हुनी तेॅ बाहर के काम-काज ही देखै में रही जाय, घर तेॅ समुल्लम संभालै ले मनरूपा के ही पड़ै छेलै। तीस वरस बीततें-बीततें कत्तेॅ की-की बदली गेलै। दूनोॅ बेटा आरो तीन बेटी रो बियाह करलकै। दूनोॅ पुतोहू बसेॅ लागलै। छौड़ा दूनोॅ के जनमला पर आठ वरस जबेॅ बाल-बच्चा नै होलै तेॅ एक रोज निराश-उदास होय केॅ-केॅ राखलेॅ छै जे गांमों के इज्जत बची रहलोॅ छै। "

तखनिये फेकन साव के घरों सें कन्ना-रोहट के आवाज एैले। मड़र जी के घरोॅ सें तेली टोलोॅ बेशी दूर नै छेलै। हजार-बारह सौ हाथ तेॅ ज़रूरे होतियै। रातको सन्नाटा में आवाज साफ-साफ आबी रहलोॅ छेलै। "बाप रे बाप, तेतरी आरो चुल्हवा दूनों भीती तरोॅ में दवाय गेलै। दौड़ोॅ हो बाबू! बचावोॅ हो ... ऽ ... ऽ... ऽ ..." कानी-कानी केॅ पुकारै के आवाजोॅ सें गाँव रो चुप भरलोॅ स्तब्ध वातावरण हिली गेलै। सौसे गाँव वै भीषण वरसा में भी हौवाय उठलै। छाता बाँसोॅ के, घोघी जेकरा जे भींगै सें बचै लेली मिललै आरो जेकरा नै कुछ्छु मिललै, भींगलोॅ-तीतलोॅ साव टोली हिन्नें दौड़ी गेलै।

सोनमनी ने जैवा केॅ अलमू केॅ थमैलकै आरो बौकड़ी हाथोॅ में लेनें भूदेव आरो शालोॅ रौतोॅ के साथे साव टोला पहुँचलै। चभाक-चभाक पानी कादो में यै दू नौकरें बांसोॅ के बड़का छाता ओढ़ेनैं छेलै मड़र जी केॅ। मड़रोॅ केॅ देखतैं फेकन साव दूनोॅ भाय भोकार पारी केॅ कानतें हुअें हुनका गोड़ोॅ सें लपटी गेलै। गाँव के ढ़ेरी सीनी लोग कोदरा लेनें मांटी टारै में भिड़लोॅ छेलै। सोनमनी फेकनोॅ के कहलकै-"है रंग औलबौलाव नै फेकन। कहाँ, कौन ठिंया दूनोॅ सुतलोॅ रहौ, तोंही न बतैभेॅ। जो, अपना सें भिड़ैं।"

हल्ला-हल्ला होय रेल्होॅ छेलै। ई भयंकर तूफानी झकसी में भी लोगें हार नै मानी रहलोॅ छेलै। खैर, थोड़ोॅ देर के कोशिश के बाद चुल्हवा आरो तेतरी केॅ तेॅ बचाय लेलकै मतुर फेकन साव के जनानी केॅ सांपें काटी लेलकै। बड़का खरीस, कारोॅ-पीरोॅ चीत्ता, फनोॅ पर खड़ाम, अढ़ाई-तीन हाथोॅ के. ई तेॅ मड़रोॅ के एक नौकर जीतना छेलै जे घरोॅ सें सांगे लैकेॅ दौड़लोॅ एैलोॅ छेलै। ई पानी किचकिचोॅ में सांपों बचै लेली घोॅर पकड़ी लै छै, यहेॅ सोची केॅ जीतना सांगे लैकेॅ दौड़लै।

सोनमनी आपनोॅ सब आदमी केॅ समझाय केॅ संपकटुओ फेकनोॅ के जनानी केॅ तेवाड़ी बाबा थान भेजी केॅ घोॅर एैले।

मिर्जापुर सीमाना सें थोड़ोॅ दूर चली केॅ बिन्द टोला के बाद जुलाहा टोली चंगरी में पड़ै छै। एतनां सटलोॅ-सघन घर छै कि जौं 10-15 हाथोॅ के एक टा रास्ता कूकरा पोखर तांय नै गेलोॅ रहतियै तेॅ दूनोॅ गाँव कहाँ से छै जानवोॅ मुश्किल होय जैतियै। जुलाहा टोली के बीचोॅ सें पछियें एक टा रास्ता छै। वहेॅ रास्ता तेवाड़ी बाबा थान जाय छै। वाहीं फेकन साव के जनानी केॅ बेहोशी हालतोॅ में राखनें छै। पाँच-सात बीघा परती पराट सरकारी जमीन के बीचोॅ में बड़का झवरोॅ पीपरोॅ के गाछ। ओकरा नीचा में मांटी के बनलोॅ तेवाड़ी बाबा के पिंडा। बाबा के आगू में सपकटुओ केॅ दू ठों आदमी पकड़ी केॅ बैठैनें छै आरो हौ रंग के वरसा में भी आठ-दस आदमी पंक्ति बनाय केॅ हरितांती के मटकुँइयां से बालटी-बालटी पानी ओकरा देहोॅ पर ढ़ारी रहलोॅ छै।

" दोहाय बाबा। किरपा करोॅ बेचारी पर। बिलटी केॅ मरी जैतेॅ सौसे परिवार ऐकरा बिना। चारोॅ बुतरू टौवाय के मरी जैतेॅ। भोला मंडलेॅ अरदास देतें कहलकै।

भोला मंडल के तेवारी बाबा रो भगतगिरी खानदानी छेलै जे पीढ़ी दर पीढ़ी चल्लोॅ आबी रहलोॅ छेलै। अब तांय कोय भी संपकटुओ तेवारी बाबा के थानोॅ पर एैला के बाद मरलोॅ नै छेलै। कंठोॅ सें बाबा के नीर पार होय गेलोॅ तेॅ बस समझी लेॅ ओकरा बचना निश्चित छै। ओकरा कोय मारै नै पारै।

भोला मंडले नीर बनाय रहलोॅ छेलै। जोतना नाड़ीपर हाथ धरलकै, आँखी के पलकोॅ केॅ उठाय के देखलकै। सब कुछ खतम छेलै। सौसे देह सरद। नाड़ी धुकुर-धुकुर, देह पीरोॅ होलोॅ जाय छेलै। एक घंटा से बेशी होय रहलोॅ छेलै। पानी पड़ै के साथें हवा ओतनै तेज बहै छेलै आरो ओकरा पर उपर फैललोॅ-झवरलोॅ पीपरोॅ गाछी के पत्ता सें छनी-छनी केॅ बरसा बूनोॅ रो गिरवोॅ, लागै छेलै देहोॅ पर बरफ गिरतें रहेॅ।

भोला मंडलोॅ के नीर तैयार होय गेलोॅ रहै। हिन्नें फेकन साव के सौसे परिवारें बाबा आगू में धरफनिया देनें छेलै। कबूलती पर कबूलती। दूध, बताशा, गैदूही, अखंड रामधुन के गछती गछी रहलोॅ छेलै। यही बीचोॅ में भोला नीर पिलाय केॅ कहलकै-"अरे, नीर कंठोॅ सें पार होय गेलै। घबड़ावोॅ नै। धीरज राखोॅ। पानी ढ़ारतें रहोॅ। बाबा यहाँ सें अब तांय कोय निराश नै लौटलौ छै। बोलोॅ, प्रेम से तेवाड़ी बाबा रोॅ जय।" भीड़ें जयनाद जे करलकै उ$ तभिये बंद होलै जबेॅ फेकन साव के भंसिया केॅ होश होलै।

फैरछौ होय गेलोॅ छेलै। तेवारी बाबा के जय जयकार सें सौसें गाँव गूंजी रहलोॅ छेलै। बरसा से भींगलोॅ-तीतलोॅ लोग आनन्द आरो उत्साह में दौड़ी रहलोॅ छेलै। बाबा रो थानै पर संपकटुवा के नीमोॅ के पत्ता खिलैलोॅ गेलै। जबेॅ पत्ता हरकट तीत्तोॅ लागै लागलै तबेॅ भोला केॅ संतोष होलै आरो बाबा के पिंडा के तीरपेखन दिलाय केॅ दंडवत परनाम कराय केॅ फेकन साव के भंसिया केॅ घोॅर लानलोॅ गेलै।

सच्चे सौसे गाँव दहली गेलोॅ रहै ई अनचोके घटना सें। अपनां-अपना घरोॅ में बंद जनानी-मरदाना, बच्चा-बूढ़ोॅ, सभ्भे डरलोॅ-डरलोॅ। सबके लागै कि सांपें कखनू काटी लेतौ। फन काढ़नें सांप रसता-पैरा, कोंटा-ओहारी, खटिया-बिछौना, सुततें-जागतें लागै बूली रहलोॅ छै। वरसा-कीचट सें लोगोॅ के मोॅन औकताय गेलोॅ छेलै।

मतुर माया देखोॅ भगवानोॅ के. भियानैं से झांपलोॅ-तोपलोॅ सरंग दिन के दोसरोॅ पहर में एकदम साफ होय गेलै आरो लाल-लाल सूरज उगलै। लोग गाँव-घरोॅ में बूलेॅ लागलै। कोय आपनोॅ ऐंगना रो जमा पानी उपछी रहलोॅ छोॅ तेॅ कोय छपरोॅ पर चढ़ी केॅ नरूआ ठीक-ठाक करी रहलोॅ छेलै।

बहियारोॅ में नजर भर पानी ही पानी। नदी, डाड़, पोखर सब लाल-लाल बोहा के पानी सें भरलोॅ उब-डूब। तहियो किसान खेतोॅ केॅ, खेतोॅ में लगलोॅ धान रो फसल देखै लेली बहियार आबी गेलोॅ रहै। "बेशी से बेशी दू दिनोॅ में पानी खरकी जैतेॅ।" कहतैं नेपाली बहियारोॅ दिस निकललै।

सूरज एक बांस उपर उठी चुकलोॅ छेलै। टुकड़ा-टुकड़ा मेघोॅ के बीचोॅ सें सूरज दमकी रहलोॅ छेलै। बदरकटुओ रौद देहोॅ में कुटकुटाय के लागी रहलोॅ छेलै।