सदियों की मानसिकता और जीन्स / जयप्रकाश चौकसे

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सदियों की मानसिकता और जीन्स
प्रकाशन तिथि : 16 मई 2013


न्यूयॉर्क टाइम्स में भावना की तीव्रता से लिखे हॉलीवुड की सुपरसितारा एंजेलिना जोली के एक लेख ने हड़कंप मचा दिया है। ज्ञातव्य है कि जोली सबसे अधिक धन कमाने वाली सितारा हैं और उन्होंने अपने ट्रस्ट से अफगानिस्तान में एक स्कूल खोला है तथा वह अमेरिका की युद्ध नीति के खिलाफ एक सशक्त फिल्म निर्देशित कर चुकी हैं। उनकी तीन संतान हैं और तीन बच्चे उन्होंने गोद लिए हैं। स्पष्ट है कि वे असाधारण सितारा हैं। उन्होंने कुछ माह पूर्व अपना डीएनए कराया। आजकल जीन्स के अध्ययन से होने वाली बीमारियों की जानकारी मिलने का विज्ञान का दावा है। एंजेलिना के टेस्ट में 'ब्रकई' नामक जीन्स मिला, जिसका अर्थ है कि भविष्य में उन्हें स्तन का कैंसर हो सकता है। इसका 87 प्रतिशत खतरा है। एंजेलिना ने साहस करके शल्य चिकित्सा द्वारा अपने स्तन कटवा लिए हैं और कैंसर के 87 प्रतिशत खतरे को समाप्त कर दिया है।

उनके इस साहसी निर्णय में उनके पति और बच्चों की सहमति है, जिसका अर्थ है कि उन्हें एंजेलिना से सच्चा प्यार है और उनके लिए एंजेलिना एक संपूर्ण महिला हैं तथा उन्हें किसी अंग विशेष से प्यार नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपने शरीर के विभिन्न अंगों का जमाजोड़ नहीं होता, वह कुछ और भी है अर्थात प्याज के छिलके ही प्याज नहीं हैं, सारे छिलके उतारने पर जो गंध रह जाती है वह प्याज का सार है। इसी तरह मनुष्य का सार भी उसके अंगों के परे है। यह पूरा सोच ही साहसी है। सदियों से स्त्री के इस अंग विशेष के प्रति पुरुष आकर्षण ने मनुष्य मनोविज्ञान में क्रूरता को स्थापित किया है। इतना ही नहीं, यह आकर्षण जुनून की हदों को पार करके मनुष्य अवचेतन में स्त्री के सौंदर्य के मानदंड की तरह स्थापित है और एंजेलिना ने इसी जुनून पर प्रहार किया है और उन्हें यकीन है कि दर्शक उनकी आगामी फिल्मों को पहले की तरह चाहेंगे। इस अंग विशेष को इतना महत्व दिया गया है कि किसी जमाने में हॉलीवुड की एक सितारा ने इसका मिलियन डॉलर का इंश्योरेंस भी लिया था।

पाकिस्तान की शायरा सारा शगुफ्ता की कविता की पंक्ति है कि 'औरत का बदन ही उसका वतन नहीं होता, वह कुछ और भी है।' शायद इसके आगे की पंक्ति कुछ इस तरह है कि 'मर्दानगी का परचम लिए घूमने वालो, औरत जमीन नहीं, कुछ और भी है।' दरअसल इस अंग के लिए जुनून ने सारी कलाओं को प्रभावित किया है और यह आदिमकाल से ही चला आ रहा है। आम पुरातन गुफाओं में अंकित आकृतियों को देख लीजिए। कैमरा प्राय: लंपट पुरुषों की आंख रहा है। कैमरा दिमाग के बदले आंख में केंद्रित होने से मूर्खतापूर्ण परिणाम सामने आते हैं। मामला पुरुष जुनून तक ही सीमित नहीं है, अनेक महिलाओं के विचार का भी यह केंद्र है, जिसके परिणामस्वरूप उभार की शल्य चिकित्सा वालों ने सिलीकॉन इम्प्लांट से खूब धन कमाया है और सिलिकॉन के संभावित घातक परिणाम की बात छुपाई है। उसके जस का तस उजागर होने से लोग डरते रहे हैं।

जीवन के अनेक क्षेत्रों में असल महत्वपूर्ण मुद्दों को अनदेखा करके गौण को महत्व देने में अकल्पनीय मनुष्य ऊर्जा की हानि हुई है। मौजूदा राजनीति में तो केवल यही काम हो रहा है। कुछ दल यह जानते हुए कि यह असंभव है, परंतु उसी को मुद्दा बनाकर संसद ठप कर देते हैं। मौजूदा संसद में सबसे कम काम हुआ है और विपक्ष इस आरोप से बच नहीं सकता। मनुष्य के व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण पक्ष को अनदेखा करके अन्य पक्षों पर अपना ध्यान रखना भी अय्याशी है और इसमें जमाना सदियों से व्यस्त रहा है। महिलाओं के मन में भी एक एंटिना होता है, जिससे वह अपनी पीठ के पीछे होते संकेतों को भी पकड़ लेती हैं। नारी स्वतंत्रता की नारेबाजी में यह बात भी अनदेखी रह जाती है कि उस बेचारी का सड़क पर चलना भी दूभर कर दिया जाता है। निगाह के नश्तर उसे हमेशा चुभते रहते हैं।

मुंबई की लोकल ट्रेन या भीड़भरे अन्य स्थानों पर महिलाओं को कितने अनचाहे स्पर्श झेलने पड़ते हैं और संवेदना को कुंठित करने के लिए यही पर्याप्त है। आज हमारे तथाकथित सबसे पुरानी और हान संस्कृति के वारिस निरंतर दुराचार कर रहे हैं। पुलिस थानों में भी महिलाओं को हिंसा झेलनी पड़ रही है। यह कोई अचानक विस्फोट नहीं है, परंतु अब मीडिया इसे उजागर कर रहा है। इसकी जड़ में भी बकौल सारा शगुफ्ता वह 'बदन है' और शायद उसके अंग विशेष का पुरुष अवचेतना में तथाकथित प्रेम के शिलालेख की तरह स्थापित होना।

इस संदर्भ में एंजेलिना का निर्णय वंदनीय है, परंतु वे शायद नहीं जानतीं कि जीन्स का द्विअर्थी संवाद भी होता है और जिस्म के सारे दरवाजे बंद करने के बाद भी महाठगनी मौत कहीं से भी प्रवेश कर जाती है।