सफलता के सोपान / गोपाल बाबू शर्मा

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सामान्यतः यह माना जाता है कि उसी का जीवन सफल है, जिसका संसार में यश फैले और जिसकी सभी सराहना करें–

जाको जस है जगत् में, जगत् सराहै जाहि।

ताको जीवन सफल है, कहत अकब्बर साहि॥

यश प्राप्त करने के अनेक मार्ग हैं, अनेक साधन हैं। कोई धन के क्षेत्र में यश प्राप्त करता है, तो कोई विद्या के क्षेत्र में। किसी की सराहना त्याग, तपस्या और बलिदान के कारण होती है, तो किसी की सद्धर्म और परोपकार के कारण।

सफलता के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न विचार हैं। जब हम इस बात पर मनन करते हैं कि सफल में जीवन का रहस्य क्या है, जीवन सफलता कैसे मिलती है? तो इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आत्मनिर्भरता, आलस्य-हीनता, साहस और धैर्य, लक्ष्य के प्रति एकाग्रता-निष्ठा, आत्मविश्वास आत्मनियंत्रण आदि अनेक गुण सफलता प्राप्ति के आधार स्तम्भ हैं।

जीवन में सफलता पाने के लिए आत्मनिर्भरता का होना अत्यावश्यक है। जो व्यक्ति अपने भरोसे पर कार्य करते हैं, वे अवश्य सफल होते हैं। जो लोग दूसरों का मुँह ताकते हैं या भाग्य का सहारा ढूँढ़ते हैं, वे सदैव अपने को कार्य करने में असमर्थ पाते हैं और सफलता उनसे दूर रहती है। इसीलिए कबीर ने मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा दी है–

कर बँहियाँ बल आपनी, छाँड़ि पराई आस।

जाके आँगन है नदी, सो कत मरत पियास॥

सफलता की कामना करने वाले व्यक्ति को आलस्य से कोई नाता नहीं रखना चाहिए, क्योंकि आलस्य सफलता का सबसे बड़ा शत्रु है–

'आलस्यं हि मनुष्याणाम् शरीरस्थो महान् रिपुः।'

जो व्यक्ति आलसी होते हैं, वे हर कार्य को कल पर टालते रहते हैं। उनका कोई कार्य समय पर पूरा नहीं होता। फलस्वरूप उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिलती।

प्रायः लोग यह चाहते हैं कि हाथ-पाँव न हिलाने पड़ें और अलाउद्दीन के जादुई चिराग़ की तरह ऐसा सुनहरा अवसर उन्हें मिल जाए कि वे मनचाही चीज़ पर अधिकार कर लें, लेकिन यह कैसे मुमकिन है? बिना प्रयास के सफलता शायद ही मिले। अवसर कोई पकी पकाई खीर नहीं है कि झट से उसे खा लिया जाए। अवसर की कभी कमी नहीं रहती। जिनके आँख, कान, मन-मस्तिष्क खुले हैं, उनके सामने बढ़िया से बढ़िया अवसर हाथ बाँधे खड़े रहते हैं, केवल उन्हें जानने-पहचानने की ज़रूरत है।

आर्कमिडीज ने देखा कि पानी से भरे बर्तन में किसी वस्तु के डूबने से कुछ पानी बाहर निकल जाता है। बस, इसी से उसने पदार्थों के आयतन जानने का तरीका ढूँढ निकाला। पेड़ से सेब को गिरता देख आइजक न्यूटन को पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के सिद्धान्त का पता चल गया। गैलीलियो को गिरजाघर में ऊँचाई पर लटका लैम्प हवा में झूलता दिखाई दिया, तो उसने पैण्डुलम वाली घड़ी बना डाली। बिस्तर पर पड़े बीमार एलियास ने पत्नी को कष्टपूर्वक पुराने-फटे कपड़े को सीते हुए देखा, तो उसका हृदय करुणा से भर उठा और अन्त में वह ऐसी मशीन बनाने में सफल हो गया, जो आसानी से जल्दी-जल्दी कपड़े सीं सके।

सफलता पाने के लिए साहस और धैर्य भी बहुत जरूरी हैं। साहस से अत्यन्त कठिन कार्य भी पूर्ण हो जाते हैं। साहस के अभाव में व्यक्ति या तो किसी कार्य को प्रारम्भ ही नहीं करता और यदि किसी प्रकार प्रारम्भ भी कर देता है, तो वह ज़रा-सी भी बाधा उत्पन्न होने पर उसे छोड़ देता है। इस तरह वह सफलता पाने से वंचित रहता है। जो व्यक्ति साहसी होते हैं, वे विघ्न-बाधाओं का सामना करते हुए अपने उद्देश्य तक पहुँचते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भी मनुष्य को सदैव साहसी होने का उपदेश दिया है–

कुछ तो उपयुक्त करो तन को,

नर हो, न निराश करो मन को।

साहस के साथ-साथ मनुष्य में पर्याप्त धैर्य भी होना चाहिए। प्रत्येक कार्य के पूरा होने में कुछ समय लगता है। ऐसी स्थिति में धैर्य नहीं खोना चाहिए। धैर्य-हीन व्यक्ति या तो कार्य को अधूरा छोड़ देते हैं या फिर उसे इतने उतावलेपन से करते हैं कि उन्हें सम्पूर्ण सफलता नहीं मिलती। निम्नलिखित दोहा मनुष्य को धैर्यपूर्वक कार्य करने की ही प्रेरणा देता है–

धीरे-धीरे होत है, धीरे सब कुछ होय।

माली सींचे केवड़ा, रितु आए फल होय॥

लुईस लामूर के अनुसार, "सफलता इंचों में हासिल की जाती है, मीलों में नहीं। थोड़ी अभी प्राप्त कीजिए, पाँव जमाते जाइए, बाक़ी आगे धीरे-धीरे प्राप्त करते जाइए।"

मनुष्य का लक्ष्य निश्चित होना चाहिए तथा उसके प्रति निष्ठा भी आवश्यक है। जो व्यक्ति लक्ष्य निश्चित किए बिना आगे बढ़ते हैं, वे इधर-उधर भटक जाते हैं और किसी कार्य को पूरा नहीं कर पाते। उन्हें सदैव असफलता ही हाथ लगती है, इसीलिए कहा गया है

एकै साधै सब सधै, सब साधै सब जाय।

जो तू सींचे मूल को, फूलै फलै अघाय॥

कभी-कभी मनुष्य को असफलता का भी मुँह देखना पड़ जाता है। ऐसी स्थिति में निराश हो उठना और मन में कुढ़ते रहना ठीक नहीं। मनुष्य का दृष्टिकोण हमेशा आशावादी होना चाहिए। 'बर्तन आधा खाली है' के बजाय यह क्यों न देखा जाय कि ' वह आधा भरा हुआ है। किसी एक असफलता से घबराकर हार मान बैठना, निष्क्रिय हो जाना अपने साथ अन्याय करना है। घोड़े पर सवारी करने वाला ही तो गिरता है, फिर उसका दुख क्यों? देखना चाहिए कि ग़लती कहाँ हुई, कैसे हुई? ग़लती को सुधार कर सही निर्णय लेने में ही समझदारी है। यदि इंजीनियर या डॉक्टर न बन सके, तो न सही। उनके अलावा भी अन्य बहुत से क्षेत्र हैं, जिनमें आदमी उत्साहपूर्वक आगे बढ़ सकता है।

सफलता के लिए मनुष्य में आत्मविश्वास की भावना का होना बहुत ही आवश्यक है। आत्मविश्वास का अभाव व्यक्ति में निराशा का भाव ही उत्पन्न करता है और दूसरे लोग भी उसकी मदद को आगे नहीं आते। कवि नज़ीर ने ठीक ही कहा है–

जो अपने उबरने की करता नहीं खुद कोशिश,

उस डूबने वाले पर हँसता है ज़माना भी।

ईसा मसीह का भी अपने भक्तों से यही कहना था कि आत्मविश्वास के बिना तुम मुझसे भी कोई लाभ नहीं उठा सकते। आत्मविश्वास की शक्ति असम्भव को भी सम्भव बना देती है। स्कॉट के राजा राबर्ट ब्रूस की कहानी सर्वविदित है। वह अपना सारा राज-पाट हार गया। भागकर उसने एक खण्डहर में शरण ली। उसने वहाँ एक मकड़ी को दीवार से बार-बार गिरते देखा, किन्तु अन्त में मकड़ी ने जाला बना ही लिया। राजा ने मकड़ी से प्रेरणा ली। उसने प्रयत्नपूर्वक दुश्मनों का सामना किया और जीतने में सफल हुआ।

मनुष्य को जीवन में अनेक बार अपनी आलोचना सुननी-सहनी पड़ती है। आलोचना से घबराना नहीं चाहिए। आलोचना भी उन्नति में सहायक होती है। वह सहज ही व्यक्ति के दोषों-दुर्गुणों को दूर कर चरित्र को निर्मल बनाती है। अतः उसका सहर्ष स्वागत करना चाहिए। कबीर ने कहा है–

निन्दक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।

बिन पानी साबुन बिना, निरमल करे सुभाय॥

कालिदास अनपढ़ थे, पर उनकी विदुषी पत्नी के ताने ने उनमें पढ़ने और योग्य बनने की चाह जगा दी। वे संस्कृत के महान् कवि बने। यह जानना चाहिए कि कौन-सी आलोचना आदमी को बेहतर बनाने के लिए है और कौन-सी ईर्ष्यावश आघात पहुँचाने के लिए? पहली प्रकार की आलोचना को स्वीकार कर अपनी कमियों को दूर करें, किन्तु दूसरे प्रकार की आलोचना पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं। दूसरों की उपलब्धियों से जलकर आलोचना करने से खुद को भी बचाना चाहिए।

आत्म-नियन्त्रण सफलता की एक महत्त्वपूर्ण सीढ़ी है। अपने कुविचारों को रोकना, अपने मन को वश में रखना, दूसरों की भड़काने वाली बातों को शान्तिपूर्वक सह जाना अपने ही हित में है। महाकवि गेटे के अनुसार, "जिसने आत्म-नियन्त्रण कर लिया, मानो उसने सफलता प्राप्त कर ली।"

सफलता पाने में सच्चरित्रता का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। धन और स्वास्थ्य से भी बढ़कर चरित्र की महिमा है। चरित्र की शक्ति के सामने दुनिया की बड़ी से बड़ी ताक़त भी झुक जाती है। महात्मा गाँधी, अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन, रूजवेल्ट आदि ऐसे ही महान् चरित्रवान् व्यक्ति थे, जिनका लोहा विरोधियों को भी मानना पड़ा था।

उत्तम स्वास्थ्य, सत्याचरण, कर्त्तव्य-शीलता, पारस्परिक सहयोग, सहानुभूति, उदारता, कृतज्ञता आदि अन्य गुण भी सफलता पाने के लिए अपेक्षित गुण हैं।

जीवन में सफलता प्राप्त करना मनुष्य के लिए गौरव की बात है। सफलता से रहित जीवन निरर्थक माना गया है। जीवन में सफलता प्राप्त करने वाले व्यक्ति ही महान् कहे जाते हैं। सफलता जीवन को सरस, सुन्दर और मधुर बनाती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि वह सफलता के रहस्य को समझे और सफलता के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है, उनसे अपने जीवन को सम्पन्न बनाए।

('जीना सीखें' निबंध-संग्रह से साभार)

डॉ. गोपाल बाबू शर्मा

आगरा