सफेद हाथी / सुधा भार्गव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्कूल का आखिरी दिन! स्कूल का आखिरी घंटा बजते ही आखिर बच्चों के सब्र का बांध टूट ही गया। कुछ खरगोश की तरह फुदकते, कुछ हिरण की तरह चौकड़ी मारते कोलाहल करते मस्ती की तरंगों में डूब गए ---

छुट्टी हो गई रे भैया छुट्टी

भागो दौड़ो शोर मचाओ

धूम- धड़ाका,बम-पटाका

पोथी पत्रा दूर भगाओ।

छुट्टी --–छुट्टी---छुट्टी

हैया छुट्टी ---

गेंदा चहचहाने लगा –अब न किताबों की खटपट न मैडम की उट्ठा-बैठक। कुछ दिन को तो आजादी मिली!बस खाऊँगा पीऊँगा और सारे दिन तोता –मैना से बात करूंगा। कितने शौक से बाबा ने मेरे लिए उन्हें खरीदा था पर उनसे बात करने का समय ही नहीं मिलता।

-मैं तो नानी के घर जा रहा हूँ। उनके यहाँ एक भूरी बिल्ली है। मुझे देखते ही उछलकर मेरी गोद में बैठ जाती है, आह उसके बाल –रेशम से चमकीले जगरमगर करते रहते हैं। उसके ऊपर हाथ फेरने से मुझे बहुत अच्छा लगता है। नाना मामा मुझे इतने उपहार देते हैं लगता है कोई त्यौहार मनाने आया हूँ।

-तूने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। गर्मियों की छुटटियाँ हमारे लिए किसी त्यौहार से कम थोड़े ही हैं।। मैं भी जा रहा हूँ पीनांग –मलेशिया का बड़ा प्रसिद्ध शहर हैं।

-तेरे नाना रहते हैं क्या वहाँ?

-नहीं,होटल में ठहरेंगे। -

-तब तो बहुत पैसा खर्च होगा।

-हाँ,पर मेरे पापा कहते हैं किताबों को पढ़ना ही काफी नहीं है। जगह जगह घूमकर, वहाँ रहने वालों से मिलकर बहुत सी नई नई बातें पता लगती हैं।

-पीनांग से लौटकर हमें भी अपनी सैर के बारे में बताना।

-जरूर –जरूर।

आज बच्चों के मन में जलतरंग बज रही थी। उनके चेहरे पर थकान की कोई लकीर न थी बस फूलों की ताजगी ने अपना डेरा डाल लिया था।

गोलू,गोल –गोल गुलाबी गालों वाला एक हंसमुख बच्चा था। कोई उसे गोलू कहता तो कोई प्यार में उसके गाल जोर से खींच लेता। बेचारा उन्हें सहलाता ही रहता। बस उसकी एक कमजोरी थी। खाने पर उसे जरा भी काबू न था। एक बार खाना शुरू करता तो जरा ध्यान न रखता कि पेट की मोटर में खाने की सवारी कम भरे वरना ठूँसा ठास भरने के बाद फेल हो जाएगी।

सिंगापुर होते हुए गोलू को पीनांग पहुँचना था। जहाज में बैठते ही उसने एलान कर दिया –मुझ पर कोई रोकटोक का पहरा न दे वरना मेरा मजा किरकिरा हो जाएगा। माँ –बाप अपने लाडले पर हँसकर रह गए।

पीनांग पहुँचते ही वे एक अच्छे होटल में रुके। थकान के कारण गोलू जैसे ही गुदगुदे पलंग पर पसारने लगा,एक कर्मचारी भागा –भागा आया। बोला –तुम इसपर न बैठो वरना यह भी गोल हो जाएगा। मैं तुम्हारे लिए मजबूत सा लोहे का पलंग डाल देता हूँ।

कड़े पलंग पर गोलू रात भर करवटें बदलता रहा। सुबह तृषा (trishaw)साइकिल से शहर घूमने भी जाना था सो उसे जाना ही पड़ा। फूलों से सजी रिक्शा को देखकर वह खुश हो गया। उसकी सीट भी नीची थी। बड़ी शान से उछलकर उसमें जा बैठा। रिक्शावाला घबरा उठा। हाथ जोड़ते हुए मम्मी –पापा से बोला –आप दूसरी तृषा में बैठ जाइए। आपका बच्चा ही चार के बराबर है। रिक्शा खींचते –खींचते मेरे सांसें ही खिंच जाएंगी।

शहर घूमने के बाद तृषा चालक बोला –साहब,आपके बच्चे का दुगुना पैसा लूँगा।

-क्यों ?पापा आश्चर्य से पलक झपकाने लगे।

-आप देख नहीं रहे –मेरे सांस किस कदर टूट रही है ?वह तो गनीमत है कि तृशा नहीं टूटी वरना इसका पैसा भी आपसे ले लेता।

गोलू को पहली बार लगा कि गोल होकर उसने कुछ गलती की है।

चायमंकलरम (chaymankalarm) मंदिर लकड़ी के मंदिर की शिल्पकला और रंगबिरबगे ड्रैगनों को गोलू देखता ही रह गया। मंदिर में लेटी 33मीटर लंबी सोने की बुद्धा की मूर्ति को देखकर गोलू बोल उठे –पापा यह तो बहुत चमक रही है एकदम मुसकाती हुई है।

-इस मूर्ति पर सोने की परत चढ़ी है और बता रही है कि हमेशा खुश रहो । वह देखो लाफिंग बुद्धा।उसकी तरह खिलखिलाकर हँसो। यहाँ तो हर चीज निराली है। देखो –देखो –उस पेड़ से कितना लंबा साँप लटक रहा है । चलो साँपों के मंदिर चलें।

-उई,मैं नहीं जाऊंगा वहाँ। मुझे तो डर लगता है।

-डरने की कोई बात नहीं। ये जहरीले नहीं हैं। दूसरे एक खास तरह की अगरबत्ती जलाकर रखते हैं जिसके धुएँ से ये बेहोश से रहते हैं। मंदिर के पुजारी ने कहा।

गोलू ने हिम्मत करके मंदिर में पैर रखा पर सामने ही पक्की चबूतरी पर पीले अजगर को देखकर उसकी तो जान ही निकाल गई। पास ही लकड़ी की ऊंची सी मचान पर हरा साँप धीरे –धीरे सरक रहा था।

-पापा यहाँ से जल्दी चलो,अभी हमें जल गांव देखना है कहता हुआ घबराया सा अपने पापा को बाहर खींच कर ले गया ।

जल नगरी वास्तव में जलनगरी थी जिसमें ज़्यादातर मछुए रहते थे। वहाँ के एक बुजुर्ग मछुए ने बताया –जब मलेशिया ब्रिटिश का गुलाम था तब चायना से सात जातियाँ आकर बस गईं तब से यहीं पर हैं और दूसरी जगह जाने का नाम नहीं लेतीं। उनकी एकता और सहयोग की भावना देखने योगय थी।

पानी के ऊपर ही लकड़ी के तख्तों को डालकर आने जाने का रास्ता बनाया गया था और दोनों ओर तख्तों पर लकड़ी के छोटे घर बनाए गए थे। दरवाजे खुले थे मानो राम राज्य हो। बाहर से सब दिखाई दे रहा था। गोलू तो और भी ज्यादा अंदर झांक कर देख रहा था। घरों मेँ स्वच्छता की देवी विराजमान थी। उनमें गैस,फ्रिज,प्रेशर कुकर सभी कुछ तो था। उसे मछुआरे परिवार बहुत मेहनती लगे इसीकारण उनका जीवन सुविधा पूर्ण था।

अंधेरा होने पर वे वहाँ से जल्दी ही चल दिये। अगले दिन उन्हें पीनांग छोडना था .सुबह उसके पापा ने आवाज देते कहा – गोलू मेरे साथ चलो,होटल का बिल चुकाना है,तुम्हारी माँ को कमरे का सामान समेटना है।

पापा ने बिल देखा तो चौंक पड़े।

-आपने हमारा बिल गलत बनाया है। वे रिसेप्शनिस्ट से बोले।

-नहीं साहब!बिल सोलह आना ठीक है। इस होटल में इंसान का वजन और खाने का वजन देखकर बिल लगाया जाता है। कल आपके बेटे ने चार आदमियों के बराबर खाया था और पानी भी छ्ह गिलास तो पीया ही होगा। एक आदमी लगातार आपकी मेज पर खाना परोसता रहा। मेरे कुर्सी औए पलंग ने घंटों आपके सुपुत्र का बोझ ढोया है। न जाने क्या सोचकर आप सफेद हाथी को पाल रहे हैं।

पापा का इतना अनादर!गोलू शर्मिंदा हो उठा। जहाज में घुसते ही वह अपने पापा के पास बड़ी आत्मीयता से बैठ गया। उनका हाथ अपने हाथ में लेकर कुछ कहना चाह रहा था। बड़ी मुश्किल से शब्द निकले –पापा –पापा मैं सोच रहा हूँ अगली बार सफेद हाथी की बजाय सफेद हिरन बनकर ही यहाँ आऊँगा।सुबह -शाम खूब दौड़ लगाऊँगा।

पापा के चेहरे से उदासी के बादल एकाएक छंट गए और हाथ की पकड़ दोनों तरफ से मजबूत होती गई।