सब से लंबा बौना / स्वदेश दीपक

Gadya Kosh से
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मैं इस शहर में नया-नया आया था। बहुत भाग-दौड़ के बाद राधाभवन में ऊपर की मंजिल पर एक कमरा मिल सका। बैंक में साथ काम करनेवालों ने जब सुना कि मैं राधाभवन में रहने लगा हूँ तो एक ने एक-दूसरे की ओर देखा, जासूसों की तरह गुप्‍त मुसकानों का आदान-प्रदान किया, एकाध ने कोई आवाज भी कसी जिसका अर्थ मेरी समझ में न आया।

मकान के किराए की बातचीत मालकिन से ही तय हुई थी। वह दो बच्‍चों की माँ थी और उसके शरीर के प्रत्‍येक अंग पर अनावश्‍यक मांस चढ़ा हुआ था। उसे देख कर मुझे एकदम से उस संतुष्‍ट भैंस का खयाल आया, जो चारा खाने के बाद जुगाली कर रही हो। मालकिन ने मुझे ताकीद कर दी कि किराया उसी के हाथ में ही दिया जाना चाहिए। मैं समझ गया कि यह उन औरतों में से है जिन्‍हें मर्द-मार कहते हैं। मैंने पेशगी किराया दे दिया।

रात आधी अवश्‍य गुजर चुकी होगी। नीचे की सीढ़ियों का दरवाजा कोई बड़े जोर-जोर से खटखटा रहा था। ऊपर और तीन किराएदार और खु़द मकान के मालिक भी रहते हैं। मैंने उठने की आवश्‍यकता न समझी। जानता हूँ मुझसे इस समय कोई भी मिलनेवाला नहीं आ सकता, और किसी के घर आया होगा, खुद कोई-न-कोई उठ कर नीचे का दरवाजा खोलेगा।

दरवाजे पर पिछले दस मिनट से दस्‍तकें दी जा रही हैं। अब तक तो मकान में रहनेवाले सारे किराएदारों को उठ बैठना चाहिए, नीचे जाना चाहिए, लेकिन ऊपर का कोई भी दरवाजा खुलने की आवाज न आई। अब सीढ़ियों के दरवाजे पर बहुत जोरों से आवाजें आ रही हैं, और मुझे धड़ाक-धड़ाक के शोर से अंदाज हो गया कि नीचे के दरवाजे पर किसी बड़े पत्‍थर से चोटें की जा रही हैं। मैं चारपाई से उठ कर अपने कमरे के बाहर खड़ा हो गया। मकान-मालकिन का दरवाजा खुला। उसके कपड़े अस्‍तव्‍यस्‍त थे जिनमें से उसके बेडोल अंग बाहर झलक आए, लटक आए थे। उसके चहरे पर असीम झुँझलाहट थी। वह झटके से सीढ़ियाँ उतर गई। दरवाजा खुला। उसकी मोटी आवाज ने एक गंदी-सी गाली दी, जैसे कि इस प्रदेश की अनपढ़ औरतें बात-बात में निकालती हैं। फिर कुछ झगड़े की आवाजें आईं। और किसी को कमीज के कालरों से प‍कड़ कर वह घसीटती हुई ऊपर ले आई। रात के अँधेरे में उसकी सूरत मैं ठीक से देख न पाया। सोचा उसका आवारा किस्‍म का लड़का होगा, घर देर से आने पर गालियाँ दे रही है, पीट रही है। यह शायद प्रति रात्रि का सिलसिला होगा, इसीलिए और कोई भी किराएदार न उठा, कोई भी दरवाजा न खुला।

सुबह अभी सो कर उठा भी न था कि दरवाजे पर किसी के जोर-जोर से पुकारने की आवाजें आने लगीं। मैं एक झटके से उठ ठहरा, इतनी भारी-भरकम आवाज किसी आदमी की हो सकती है यह सोचा भी न था।

और जब दरवाजे में खड़े आदमी को देखा तो हैरान रह गया। यह बौना है। एक लंबा बौना। कद किसी सूरत में चार फुट से ऊपर न था। बाल सैनिक ढंग से बहुत छोटे-छोटे कटे हुए थे। ऐनकों के अंदर से उसकी बैल जैसी गोल-गोल आँखें जैसे शीशे तोड़ कर बाहर आने का संघर्ष कर रही थीं। मुझे पता चल गया कि यह कोई सस्‍ता नशा करता है।

उसने गिड़गड़ाती आवाज में बताया कि मकान-मालिक है और मुझसे किराए की माँग की।

जब मैंने उसे बताया कि किराया तो मैं मालकिन को दे चुका हूँ तो सैनिक मुद्रा में तना हुआ उसका शरीर ढीला पड़ गया। उसके चेहरे के छोटे-छोटे भागों में खिंचाव आ गया।

'वह तो बड़ी गंदी औरत है, साहब। सब से पैसे खुद वसूल कर लेती है, मुझे जेब खर्च को भी कुछ नहीं देती। और रोज मारती भी है। पर जनाब, मौके की बात है। जिस दिन मेरे हाथ चढ़ गई बस फिर याद करेगी।'

मैंने नोट किया कि स्‍टेज के खलनायकों की तरह उसे हाथ उठा कर और आँखें उधर-उधर घुमा कर बात करने की आदत है। संवाद भी बिलकुल फिल्‍मी ढंग से बोलता है। मैंने सोचा कि यह चार फुट का आदमी उस लंबी-तगड़ी पत्‍नी को क्‍यों कर ठीक करेगा। उसकी कमर तक तो नहीं पहुँचाता।

तभी नीचे का दरवाजा खटका। गाँव का दोधी दूध ऊपर ला रहा है। इसके चेहरे पर अपार घृणा तैर रही है।

सोचा, मालकिन दरवाजे पर आ कर दूध लेगी। लेकिन नहीं। वह आदमी धड़ाके से अंदर चला गया। फिर मालकिन ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। काफी देर तक अंदर से कहकहों की आवाजें आती रही।

फिर तेज कदमों से यह बंद दरवाजे के सामने पहुँच गया। इसने दोहत्‍थड़ पीटना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद दरवाजा खुला। दोधी के शरीर ने दरवाजे को जैसे भर दिया। यह अपने दोनों छोटे-छोटे हाथों से उछल-उछल कर उसकी छाती पर मुक्‍के मार रहा है और दोधी लगातार हँसे जा रहा है। फिर उसने बड़े हलके हाथों से इसे परे धकेल दिया। इसका छोटा-सा, निर्बल शरीर इस धक्‍के से नीचे गिर गया और वह दोधी बड़ी विजयी मुसकानें उछालता हुआ नीचे उतर गया।

अब वह हाथ-पैर पटक-पटक कर बीवी को गालियाँ दिए जा रहा है। उन दोनों का खून करने की धमकियाँ दे रहा है। बीवी के माँ-बाप, उसके सारे खानदान का बखान मोटी-मोटी पंजाबी गालियों के माध्‍यम से कर रहा है। शायद वह हद से आगे बढ़ गया है। बीवी अंधड़ की तरह बाहर आती है, उसको हाथ से पकड़ती है और घसीटती हुई अंदर ले जाती है। दरवाजा बंद हो जाता है। अंदर से मार-पिटाई और इसकी गालियाँ देती मोटी खलनायक आवाजें बहुत देर तक गूँजती रहती हैं।

बैंक में चाय पीते हुए खजांची ने इस लंबे बौने के बारे में बताया कि उसका बाप शहर का प्रसिद्ध व्‍यापारी था। जिस मुहल्‍ले में मैं किराए पर रहता हूँ वह सारा-का-सारा उनका था। पिता की मृत्‍यु के पश्‍चात लड़के ने एक-एक करके सारे मकान बेच डाले, क्‍योंकि किसी प्रकार का कोई काम कर लेने का उसके लिए सवाल ही नहीं उठता था। पढ़ाई हुई ही नहीं, क्‍योंकि साथ पढ़नेवाले लड़के इसे बहुत छेड़ते थे, पीटते थे। बाप ने पैसे के बल पर इस लड़की से इसकी शादी कर दी।

आज तक इस बौने पर हर कोई हुक्‍म चलाता आया था, राज करता आया था और शादी के बाद पहली बार कोई उसके हत्‍थे चढ़ा जो उसकी आज्ञा का पालन करे, बात माने। मर्द की सारी पाशविक और निरंकुश प्रवृत्तियाँ जो बीस वर्ष तक दबी रही थीं, शासित थीं, किसी जंगली जानवर की तरह बंधन तुड़ा कर अपनी सारी कुरूपता के साथ उसमें प्रकट हो गईं। दुर्भाग्‍य से विवाह के कुछ महीनों बाद ही बाप की मृत्‍यु हो गई। अब उसे रोकने-टोकनेवाला कोई भी न था। बीवी को बात-बात पर गालियाँ देना साधारण बात थी। सब मकानों का किराया वह खुद वसूल करता था और नशे में धुत जब घर आता तो बीवी को बेतहाशा पीटता था। क्‍योंकि उसके हाथ कद्दावर बीवी के चेहरे पर न पहुँचते थे इसलिए वह चारपाई पर खड़ा हो कर उसके मुँह पर थप्‍पड़ मारा करता था, विक्षिप्‍तों की तरह नाच-नाच कर उसका मुँह और बाल नोचता था। समय बीतने के साथ-साथ उससे दो बच्‍चे भी हुए जो बाप की तरह बौने ही थे। और अपने जैसे बच्‍चे देख कर उसकी क्रूरता और अधिक बढ़ गई। नशा करने की लत इस हद तक बात बढ़ गई कि कई बार घर में खाने को भी कुछ न बचता था। मुहल्‍ले के सारे लोगों के आगे पत्‍नी ने रोना रोया और किराएदारों ने मिल कर निर्णय किया कि आगे से किराए के पैसे बीवी को ही दिया करेंगे।

और एक दिन तो उसका अत्‍याचार सीमा लाँघ गया। जब पत्‍नी को पीटते-पीटते उसके नन्‍हे हाथ थक गए तो उसने पास ही पड़ी ईंट उठा ली। अपने बचाव की सहज प्रवृत्ति उस औरत में भी जागृत हो गई। उसने पति का हाथ धीरे से परे कर दिया। इस हल्‍के-से धक्‍के से वह गिर पड़ा। अब स्‍त्री को पता चला कि न वह निरीह है और न ही निर्बल। पति के जमीन से उठने से पहले ही उसने उसे बालों से पकड़ लिया, इतना मारा कि पति के नाक-मुँह से लहू निकलने लगा और अगर आसपास के लोग न छुड़ाते तो शायद वह उसकी जान ही ले लेती।

और तब से उसके बुरे दिन आरंभ हो गए। पत्‍नी उससे प्रतिकार लेने के लिए तरह-तरह के मर्दों से संबंध रखने लग पड़ी। पता नहीं अपने माँ-बाप के प्रति, सारे संसार के प्रति उसके मन में कितनी घृणा होगी कि इस लंबे बौने को उसे अपना पति मानना पड़ रहा है। आज तक उसके साथ बाहर नहीं निकली। नई-नई शादी हुई थी, दोनों कोई फिल्‍म देखने चले गए और वहाँ पर बैठे लोग सिर्फ इन्‍हें ही देखते रहे, मनचले तीन घंटे इन पर आवाजें कसते रहे, वह दिन और आज का दिन, वह पति के साथ फिर घर से बाहर नहीं निकली।

अब मैं उनके रोज-रोज के झगड़ों का अभ्‍यस्‍त हो गया हूँ। दूसरे किराएदारों की तरह बड़े तटस्‍थ भाव से सारी घटनाओं को देखता रहता हूँ। धीरे-धीरे पता चला कि इस आदमी को प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है। अक्‍सर मेरे पास आ बैठता है, कभी-कभार एकाध रुपया भी माँग लेता है। मेरा विदेश से मँगाया ट्रांजिस्‍टर ठीक नहीं चल रहा। मैं नहाने गया। कमरे में लौट कर देखा तो सारा ट्रांजिस्‍टर खोले बैठा है और बड़ी लगन से उसे ठीक कर रहा है। गुस्‍सा आया, कहीं खराब न कर दे। लेकिन नहीं, मात्र एक घंटे में इसने ठीक कर दिया और यह नए की तरह बजने लगा। मैं पिछली शाम बाजार दिखा कर आया था, दुकानदारों ने ठीक करने के बीस रुपए माँगे थे। इसने मुझसे केवल पाँच रुपए लिए। मैंने उससे कहा कि वह क्‍यों नहीं यही काम करता, थोड़े-थोड़े पैसों के लिए बीवी के आगे हाथ पसारता है।

उसने दुनिया को मोटी-मोटी गालियाँ देते हुए बताया कि लोग उससे काम करवा लेते हैं, बाद में या तो पैसे बिलकुल नहीं देते अथवा एक रुपया पकड़ा देते हैं। यह झगड़ा करता है तो धक्‍के दे कर बाहर निकाल देते हैं, पीट देते हैं। और वह किसी दुकान पर काम करने से रहा।

मैंने महसूस किया कि लगातार मिलने के कारण अब मैं उसे लंबे बौने के रूप में नहीं अपितु एक साधारण मानव की तरह लेता हूँ। उसकी बातों से पता चला कि जो ट्रैजडी उसके साथ हुई है वही उसके बौने बच्‍चों से दुहराई जा रही है। वह भी स्‍कूल नहीं जा पाते क्‍योंकि साथ पढ़नेवाले बच्‍चे गालियाँ देते हैं, छेड़ते हैं, पीटते हैं। बच्‍चे माँ-बाप से गालियाँ सीख गए हैं और छोटे-बड़ों पर इनका निधड़क प्रयोग करते रहते हैं, बाप की तरह माँ से पिटते रहते हैं। कहनेवालों का खयाल है कि बीवी किराए के पैसे बैंक में जमा कराती रहती है, कभी भी इसे छोड़ देगी, शायद इसी भय से वह उससे दबा रहता है।

ऊपर एक नया किराएदार आ बसा है। बीस-इक्‍कीस वर्ष का स्‍वस्‍थ लड़का है। किसी दफ्तर में क्‍लर्क है। बिलकुल फिल्‍मी एक्‍टरों की तरह रंग-बिरंगे कपड़े डालता है, चलते-फिरते हर वक्‍त गाने गाता है और कसी हुई तंग पैंटों के अंदर से उसकी मोटी-मोटी टाँगें जैस कपड़ा फाड़ कर बाहर आने के लिए विद्रोह करती रहती हैं। कुछ दिनों में ही मकान-मालकिन के पास उसका आना-जाना हो गया हैं। पहलेवाले मर्द तो कुछ देर के लिए आते थे, वापस लौट जाते थे लेकिन इसने तो उसके घर पर कब्‍जा कर लिया है। रोटी वहीं खाता है, कपड़े वहीं धुलते हैं और रात होते ही वहीं पर सोने के लिए चला जाता है।

इसने उससे उलझने की कोशिश की तो बिलकुल फिल्‍म के नायक की तरह उसने बाँहें ऊपर चढाईं, उसे घूर कर देखा और फिर बुरी तरह पीट दिया। इसका शरीर कई जगहों से सूज गया। सारा मुहल्‍ला इस अनाचार को देख रहा है, बीवी और नए किराएदार के विरुद्ध हो गया है लेकिन इस कपटी औरत से कुछ करने का, उलझने का साहस कोई भी नहीं करता। कीचड़ में हाथ डालने से अपने ऊपर छींटे तो पड़ेंगे ही। अब तो वह बाबू इस औरत को सरेआम बाजार ले जाता है, फिल्‍म ले जाता है और सारे मुहल्‍ले के लोगों को इसकी बातों से पता चला कि अब बीवी इसे अपने पास फटकने तक नहीं देती।

और एक रात तो हद हो गई। दिसंबर का महीना, वह आधी रात को घर लौटा। पहले तो बीवी ने बड़ी देर के बाद दरवाजा खोला और फिर जब उसने उस बाबू को अंदर देखा तो बिलकुल बिफर गया। बीवी के लंबे बाल अचानक इसके हाथों में आ गए। वह उसे पीटती जा रही है और यह अपने सारे वजन के साथ उसके बालों से झूल गया है। बीवी की चीखें निकल रही हैं। और तभी वह बाबू बाहर आ जाता है, बीवी को इसके हाथों से छुड़ाता है। दोनों मिल कर इसे बेतहाशा पीटते हैं, यह बेहोश हो जाता है। और वह दोनों अंदर से दरवाजा बंद कर देते हैं।

वह किसी घायल कुत्‍ते की तरह आसमान की ओर मुँह उठा कर लगातार लंबी आवाजों में रोए जा रहा है। मैं बाहर निकला हूँ। इतना पिटने के बाद, दिसंबर की इस सर्दी में रात भर बाहर पड़ा रहा तो सुबह तक अकड़ जाएगा। इसे लगभग उठा कर कमरे में लाता हूँ। दो कंबल देता हूँ। यह रो-रो कर मुझसे कहता है कि इसकी जान बचाऊँ नहीं तो यह बाबू और इसकी बीवी किसी दिन इसकी जान ही ले लेंगे। और मुझे उसकी यह बात सच लगती है, यह असहाय, छोटा-सा शरीर कब तक इतनी मार सहता रहेगा।

सुबह मुहल्‍ले के लोगों ने भी इस बारे में मुझसे बात की। सब इस तमाशे और गंदगी से तंग आ चुके हैं। कुछ-न-कुछ तो करना चाहिए वरना यहाँ रहना तो नर्क होता जा रहा है। बैंक में स्‍थानीय थानेदार का हिसाब है। मुझसे उसकी अच्छी जान-पहचान है। उसे सारा किस्सा सुनाया। उसने कानून की किसी धारा का नाम बताते हुए सूचना दी कि सारा मुआमला बहुत आसान है। अगर पति लिख कर शिकायत करे और मुहल्‍ले के कुछ लोग भी गवाही दें तो उन दोनों को पूछताछ के लिए पकड़ा जा सकता है। फिर उस औरत तथा बाबू की जमानत भी कौन देगा। कुछ दिन थाने में रहेगी तो होश ठिकाने आ जाएँगे, सारी आशिकी भूल जाएगी।

मैंने दिन में ही उसे बैंक में बुला कर सब कुछ लिखा लिया तथा यह प्रार्थना-पत्र थाने भिजवा दिया। शाम तो जब सब लोग दफ्तरों से आ कर बैठे ही थे तो थानेदार दो सिपाहियों के साथ वहाँ आ गया। वे लोग मेरे कमरे में ही बैठे। वह सीना चौड़ा किए उस बाबू और अपनी बीवी को देख रहा था जिन्‍हें पुलिस ने मेरे कमरे में ही बुला लिया था। थानेदार को देखते ही बाबू के होश उड़ गए हैं। फिल्‍मी अंदाजवाला सारा अक्‍खड़पन हवा हो गया है। उसकी मोटी टाँगों की अकड़ कम हो गई है। एक के बाद एक मोहल्ले के बुजुर्ग उनके खिलाफ बोल रहे हैं और थानेदार सब कुछ लिख कर उनके हस्ताक्षर कराए जा रहा है। औरत पति के पाँव छू रही है, आगे से ठीक रहने की कसम खा रही है, लेकिन पीछे जितनी मारें पड़ी हैं, उसे सब याद हैं। फिर मैंने भी दिन को काफी समझा दिया था, वह बिलकुल दयावान नहीं हो सका।

पुलिस उन दोनों को ले जाती है। मुहल्‍ले की औरतें खिड़कियों से झाँक कर यह नजारा देख रही हैं। सब खुश हैं, सबके चेहरे इस बात से संतोषपूर्ण दिखाई दे रहे हैं। उसके जाते ही इस लंबे बौने ने आँगन में अपने छोटे-छोटे हाथ उठा कर नाचना शुरू कर दिया। दोनों बच्‍चे एक किनारे में सहमे खड़े हैं। माँ की देखा-देखी वह भी बाप को खूब गालियाँ निकाले आए हैं। सब डर गए हैं। इसने एक-एक चाँटा मार कर बच्‍चों को किताबें निकाल कर पढ़ने को कहा। दोनों चुपचाप अपना बस्‍ता खोल कर एक कोने में बैठ गए।

शायद पहली बार उसका अस्तित्‍व स्‍वतंत्र हुआ है। आज घर में ही बैठ कर उसने पी, नौकरानी पर अपनी भारी खलनायकी आवाज में कई हुक्‍म चलाए। एक-एक किराएदार के पास जा कर ताकीद की कि आगे से किराया उसी को दिया जाए। सब लोग इस समय उसकी सहायता करने का निर्णय किए हुए हैं। अतः कहा मान गए।

सब मुहल्‍ले में शांति है। थानेदार ने मुझे बताया कि वह कुछ दिनों में ही कोर्ट में मुआमला पेश करेगा, दोनों के सिर से आशिकी का भूत काफी उतर चुका है। फिर आँख दबा कर मुझे सूचना दी कि पुलिस अच्‍छे-अच्‍छे लोगों का भूत उतार देती है। बाबू ने वादा किया है कि वह यह शहर छोड़ जाएगा। आखिर भरे बाजार से परेड कराते हुए उसे थाने तक लाया गया है, किस मुँह से इस शहर में रह पाएगा।

घर, मुहल्‍ले में बिलकुल शांति है। थाने में पहुँचे हुए उन्‍हें तीन दिन हो चुके हैं। अब भी वह देर से घर लौटता है और आँगन में खड़ा हो कर अपनी अनुपस्थित बीवी को उछल-उछल कर गालियाँ देता है, मन में भरा जहर उगलता है।

आज सुबह से उसके रंग बदले हुए हैं। वह बड़े ढीले कदमों से यहाँ-वहाँ घूम रहा है। बच्‍चे जब भी उसे देखते हैं, किताबें खोल लेते हैं। वह उन्‍हें थोड़े-से पैसे देता है, बाहर जा कर खेलने को कहता है। वह चकित-से बाप को देखते हैं, एक झटके से उसके हाथ से पैसे ले लेते हैं और तीर की तरह बाहर भाग जाते हैं।

मैंने एकाध बार बात करने की कोशिश की तो वह कतरा कर आगे निकल जाता है। आज कुछ कटा-कटा है।

रात को अचानक मेरी नींद खुल गई। किसी के गाने की आवाज आ रही है। दरवाजा खोल कर देखा वह बाहर दिसंबर की सर्द चाँदनी में बैठा बिरहा गा रहा है। मैंने कल्‍पना भी न की थी कि वह इतना अच्‍छा गा सकता है। तो उसे शास्‍त्रीय संगीत का भी ज्ञान है। मैं दरवाजे में मंत्रमुग्‍ध खड़ा उसकी आवाज सुनता रहा। आज घर की सारी खिड़कियाँ-दरवाजे मुझे सुनसान लग रहे हैं, उदास लग रहे हैं। उसे शायद मेरे वहाँ पर खड़े होने का आभास हो गया है। उठ कर पास आ जाता है। उसका सारा चेहरा आँसुओं से तर हो गया है। मुझसे मरी हुई आवाज में कहता है कि उसकी पत्‍नी को पुलिस से छुड़वा दूँ।

मैं सकते में आ जाता हूँ। मैं उसे समझाता हूँ कि पुलिस अपने आप कुछ दिनों में छोड़ देगी। फिर उसकी बीवी उसे कितना पीटती है। कितना अत्‍याचार करती है।

वह फिर उसे छुड़ा लाने की रट लगाए हुए है। पीटती है तो क्‍या हुआ, कभी-कभी पास भी तो आने देती है।

और फिर उसकी बात का सारा सत्‍य मेरे आगे उजागर हो जाता है। हाँ, और कौन औरत इसे हाथ भी लगाने देगी, पास आने देना तो दूर रहा। और फिर पुरुष की सब से बड़ी आवश्‍यकता औरत ही तो है। क्‍या हुआ अगर वह दुख के जलते हुए अंगारे की तरह है। हम सब उस अंगारे के साथ बँधे हुए हैं और बँधे हुए रहना है। पीड़ा, जलन, दुख इन सब को सहज भाव से सहन करते जाना है। इस जलते हुए अंगारे से कटना, अलग होना कठिन है। शायद सृष्टि के अंत की यही अंतिम स्थिति होगी।

मैंने उससे वादा किया कि कल ही उसकी बीवी को थाने से छ़ुड़ा दूँगा और इसके साथ ही दूसरी सुबह वहाँ से मकान बदलने का निर्णय भी कर लिया।