समंदर / सत्यनारायण सोनी

Gadya Kosh से
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5 सितम्बर, 2004 भोपाल भारत भवन। साहित्य अकादेमी रै 'नए स्वरÓ कार्यक्रम रै तहत अबार ढाई बजे जिकी कहाणी-गोष्ठी होवणी है, बीं मांय म्हारो भायलो रामेश्वर कहाणी बांचसी। बो सभा-भवन सूं बारै सदर दरवाजै कानी पैडिय़ां पर बैठ्यो रिहर्सल करै। मन मांय अेक डर कै कहाणी ढंगसर नीं बांचीजी तो फजीती हो ज्यासी। दिनूगै-दिनूगै ई म्हनै बोल्यो- यार सत्तू, थांरो वाचन कीं ठीक है, बांचÓर बता, कियां सुणाऊं?ÓÓ म्हैं बांचÓर सुणाई तो बीं रो कीं जीव टिक्यो, स्यात संप्रेषण ठीक-ठाक हो ज्यासी। पण जियां-जियां गोष्ठी रो वगत नेड़ै आवै, बीं री चिंता बधती जावै। पैली दफै इत्तै बड़ै आयोजन मांय कहाणी बांचण रो मौको मिल्यो है, फेर भारतीय भासावां रै नांमी लेखकां बिचाळै कीं कच्चोपण नीं दीखणो चाइजै। पैडिय़ां पर बैठ्यो बो लगोलग कहाणी रा पाना पलटै। डावड़ै हाथ री तर्जनी गाÓल पर तो मध्यमा अर अंगूठो ठोडी नीचै। गोडां माथै कहाणी रा पाना अर जीवणै हाथ मांय बालपैन, जिको होठां रै बिचाळै कुचरणी-सी करै हो। उणी वगत साÓरै आ बैठै सुरेन्द्र गुंसाई। सुरेन्द्र सूं रामेश्वर रो लारलै दिनां अम्बाळा मांय हुयी अनुवाद कार्यशाला मांय बेलीपो हुयग्यो हो। अठै बां री दूसरी मुलाकात ही। सुरेन्द्र साहित्य अकादेमी रै एकाउंट सैक्सन मांय काम करै। बड़ो प्रेमी अर मिलनसार बंदो। बां नै बैठ्या देखÓर म्हैं ई लोवै गयो। बातां चालै ही- आपकी शादी को कितने बरस हो गए?ÓÓ सुरेन्द्र पूछ्यो हो। चौरासी में हुई।ÓÓरामेश्वर होठां पर जीवणै हाथ री तर्जनी मैÓली। बीं री आंख्यां थिर हुयगी। बो हिसाब लगावै हो स्यात- इक्कीस बरस।ÓÓ इक्कीस ही हमारी शादी को हुए हैं।ÓÓ सुरेन्द्र बतायो। मगर आप तो स्वयं इक्कीस के लगते हैं।ÓÓ म्हैं मुळकतै म्हारो दाखलो दर्ज करायो। बां दोनुआं रै होठां माथै ई मधरी मुळक सांचरी। सुरेन्द्र आपरी निजरां सूं म्हारै उणियारै रो जायजो लियो अर म्हैं बीं रो। आंख्यां पर बेसी पावर रो चस्मो अर ओछा बाळ। कीं काळा, कीं धोळा। मूंडै पर आब। भरवां गाल। गोळ मूंडो। दूर सूं देखां तो सांगोपांग जवान दीसै। म्हैं बां रै साम्हीं ऊभो हुय, जीवणो पग पैडिय़ां पर मेलÓर गोडै पर हाथ धर लियो। म्हारो डावो हाथ डावै पसवाड़ै कड़तू पर हो अर म्हैं बां दोनुआं पर झुक्योड़ो-सो बां री बातां सुणै हो। बच्चे कितने हैं?ÓÓ रामेश्वर बतळावण जारी राखतां पूछ्यो। तीन थे।ÓÓ फगत इत्तो बतायÓर बो चुप हुयग्यो। म्हारी सवालिया निजर बीं रै मूंडै पर अटकगी। बीं रा होठ अर होठां रै आसै-पासैवाळी जिग्यां रा रूं-रूं जियां फड़कण लाग्या। लाग्यो जाणै बो कोई पीड़ा रै ऊंडै समंदर मांय गोता लगावै हो। कई पलां रै आंतरै पछै रामेश्वर सूं निजरां जोड़तां बण बतायो, एक मिस हो गया।ÓÓ मिस?ÓÓ म्हारै मूंडै सूं मतै ई निकळ्यो। हां, गुम हो गया भाई साÓब! ...ग्यारह बरस का था, पांच साल हो गए। सोलह का हुआ होता अब तो...।ÓÓ बतांवतां-बतांवतां बो गळगळो हुयग्यो। ओह! बहुत बुरा हुआ, मगर गुम कैसे हुआ?ÓÓ क्या बताएं रामेश्वर जी, नीचे खेल रहा था। सत्रह जून निन्यानवे की बात है...उसके बाद किसी ने कहीं नहीं देखा। वह दिन और आज का दिन...कहां-कहां नहीं ढूंढ़ा! अखबारों में फोटू छपवाए। टीवी, रेडियो...।ÓÓ बो आगै को बोल सक्यो नीं। म्हारै बिचाळै सरणाटो-सो पसरग्यो। म्हैं बीं रै जीवणै पासै पैडिय़ां पर बैठग्यो। सुरेन्द्र लाम्बी सांस छोड़ी, म्हैं ई...। बहुत छोटा था साहब, पता नहीं किस हाल में होगा।ÓÓ भळै बो जीवणै हाथ रै अंगूठै नै आंगळियां री जड़ां सूं लगांवतो बोल्यो- इतने-इतने-से तो हाथ थे। कैसे काम करता होगा साहब!ÓÓ बो छिणेÓक चुप रैयÓर भळै बोल्यो- मर जाता तो संतोष हो जाता, जी टिक जाता। मगर अब दिल को कैसे तसल्ली दें सर!ÓÓ म्हैं आपरा आंसू लकोवण सारू मूंडो फोर लियो। सुरेन्द्र बोल्यां जावै हो, वरना पैंतीस की उम्र भी कोई हार्ट-अटैक पडऩे की होती है!ÓÓ तसल्ली रखो सुरेन्द्रजी, अब जी टिकाने से ही पार पड़ेगी। बाकी बच्चों की जिम्मेदारी भी तो आप पर ही है।ÓÓ रामेश्वर रो हाथ सुरेन्द्र रै मोढै पर हो। अब कैसा है स्वास्थ्य?ÓÓ म्हैं पूछ्यो। अब तो ठीक है, मगर उसकी मम्मी...!ÓÓ कैंवतां-कैंवतां बो भळै गळगळो हुयग्यो। कंठ रुजग्या। बोल को पाट्या नीं। आगै कीं पूछण री छाती म्हारी ई को पड़ी नीं। रामेश्वर रै हाथ मांय कहाणी रा पाना जियां थिर हुयग्या हा। म्हैं ई पाखाण री पूतळी बण्यो बैठ्यो रैयो। छोडि़ए साहब!ÓÓ सुरेन्द्र भळै मून भांग्यो, मैं भी कैसा..., नाहक ही परेशान किया आपको। आप तो तैयारी कीजिए, कहानी पढऩी है आपको अगली गोष्ठी में।ÓÓ कैंवतो बो ऊभो हुयÓर चालण लाग्यो। नहीं-नहीं, बैठिए, ऐसी कोई बात नहीं है। तैयारी को तैयारी ही है। पढ़ देंगे, बस!ÓÓ नहीं, आप पढि़ए, मैं भी शिरकत करूंगा। आपकी कहानी तो जरूर सुनूंगा।ÓÓ उण मुळकता थकां हाथ मिलायो। म्हारी निजर उणरै चेÓरै माथै थिर हुयगी। बीं री निजरां मांय अर उणियारै पर जिकी चमक दीसै ही, बा अचरज करणजोग ही। देखतां-देखतां ई उणरै चेÓरै रा भाव पलटो मारग्या हा। कोई आदमी इत्ती पीड़ थकां ई मुळक सकै! लखदाद! भारत भवन मांय गोष्ठी सरू हुयगी। च्यार कहाणीकारां आप-आपरी कहाणियां बांची। राजस्थानी, हिन्दी, पंजाबी अर कश्मीरी रा कथाकार हा। पण कोई भी कहाणी म्हंनै बाँध को सकी नीं। म्हारै कानां मांय तो सुरेन्द्र रा बै ई सबद गूंजै हा- इतने-इतने-से तो हाथ थे, कैसे काम करता होगा साहब! ...मर जाता तो संतोष हो जाता, मगर अब दिल को कैसे तसल्ली दें साहब!ÓÓ इणी बीच म्हारै लारलै पासै-आळी कतार मांय अेक जणै री जोर सूं ताळी बाजी अर साथै अै बोल ई गूंज्या, वाह भाई वाह, रामेश्वरजी!ÓÓ म्हैं मुड़Óर देख्यो, सुरेन्द्र हो। रामेश्वर आपरी कहाणी बांची ही अर बो दाद देवै हो। म्हंनै लाग्यो जाणै सुरेन्द्र कहाणी रै मिस आपरी पीड़ सूं जूझण रा जतन करै हो। गोष्ठी पूरी हुयी। रामेश्वर मुळक बिखेरतो सभा-भवन सूं बारै निकळ्यो। बो श्रोतावां रै उणियारै पर आपरी कहाणी रै असर रा अैनाण टोÓवै हो। लोगां सूं हाथमिलाय-मिलायÓर वां सूं प्रतिक्रियावां री उडीक करै हो। म्हैं ई लोवै गयो। सुरेन्द्र म्हारै सूं पैली ई पूग लियो हो। म्हैं पूग्यो तो सुरेन्द्र आपरै डावड़ै हाथ रो पंजौ म्हारै जीवणै हाथ रै पंजै मांय फसांवतां मुळकतां म्हंनै हुंकारो भरवायो- क्यों भाई साहब! रामेश्वरजी की कहानी वाकई बड़ी गजब की थी, है नां?ÓÓ हां!ÓÓ कैंवतो म्हैं ई मुळक्यो। रामेश्वर री छाती दूणी हुगी। रामेश्वर दूजा रचनाकारां साथै बातां में बिलमग्यो। सुरेन्द्र म्हारो हाथ झाल्यां थिर ऊभो बां नै तकांवतो रैयो। भळै अेकाअेक म्हारै कानी मूंडो फोर्यो। बीं रै चेÓरै पर अेक अजीब-सी मासूमियत दीखी म्हंनै। म्हारी आंख्यां में आंख्यां घालÓर बोल्यो, पता नहीं क्यूं, कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरा बेटा मुझे मिल जाएगा। एक न एक दिन तो मिल ही जाएगा ना?ÓÓ अर म्हारै मूंडै पर अटकी बीं री सवालिया निजर ऊथळै नै उडीकती रैयी।

(2004)