समाधान / संतोष भाऊवाला

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाय ड्यूड कम ओन

इतना क्या सोच रहा है... एक कश ले लेगा, तो क्या बिगड़ जायेगा

नहीं नहीं मुझे नहीं करना ये सब, तुझे करना है तो कर…

अरे यार, तू बहुत घबराता है, देख कक्षा में सभी तुझे कितना चम्पू है ऐसा कहते हैI क्या तू हमेशा ऐसा ही रहना चाहता है।

वो सब तो ठीक है, मै भी तुम लोगो के जैसे कूल दिखना चाहता हूँ, लेकिन क्या करूँ, मेरी माँ इतनी मेहनत से पैसा कमा कर मुझे पढ़ा रही है ओर मै यह सब ..नहीं नहीं .

अरे भई, देख इसमें कोई बुराई नहीं है ओर फिर उनको कैसे पता चलेगा, जब तक तू बताएगा नहीं

अच्छा ठीक है सिर्फ एक बार

हाँ हाँ

जैसे ही उसने मुहं के लगा कर एक कश खींचा, जोर जोर से खांसने लगा

थोडा धीरे धीरे आराम से खींच, तब खांसी नहीं आएगी

ठीक है और वह धीरे धीरे सम्भाल कर कश खींचने लगा,शने: शने: एक अलग सा नशा दिल दिमाग पर हावी होने लगा थाI दिमाग कह रहा था मत कर, ये सब छोड़ दे, भाग चल, यहाँ से दूर, लेकिन पाँव जैसे अंगद के हो गये, अपनी जगह से हिलने का नाम न ले रहे थे और फिर धीरे धीरे पता नहीं कब आनंद आने लगा

जब सिगरेट ख़त्म हुई, तब होश आया कि वह क्या कर रहा था। एकदम से छुट कर भागा और घर जाकर सांस ली। दरवाजे पर माँ खड़ी इंतज़ार कर रही थी, लेकिन उसे कुछ दिखाई न दियाI सीधे बाथरूम में जाकर दम लिया ओर सोचने लगा कि यह सब कैसे हो गया,कैसे वो अपनी माँ के त्याग को भूल गया कैसे.. कैसे .. अब आगे से ऐसा न होने देगा।

थोडा संयत होकर बाहर निकला तो देखा, माँ की आँखे कुछ सवाल कर रही थी उससे?

पहले तो कुछ समझ में नहीं आया उसे, कि क्या कहे, आज वो क्या करके आया है।उसने नज़रे झुका ली ओर सोचने लगा कि क्या कहे..

माँ ने कहा कि यह तो मुझे समझ में आ रहा है कि मेरे बेटे से कोई गलती हो गयी है, लेकिन ऐसी कौन सी गलती हो गयी, जो मुझे बताने में उसे हिचक हो रही हैI

यह सुनते ही उसने माँ के गोद में सर छुपा लिया। माँ की समझ में जैसे सब कुछ आ गया। माँ ने कहा कि कुछ भी करो, लेकिन मुझसे छुपाना नहीं। मुझे तो तुम्हारे मुहं से उसी वक्त दुर्गन्ध आ गयी थी। लेकिन मैंने कहा नहीं क्यों कि मै चाहती थी, तुम खुद मुझे बताओ। मै तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड बनना चाहती हूँ।

सुन कर वह आश्चर्य से माँ को देखने लगा। आज पहली बार उसने माँ का यह रूप देखा था।अब तक तो मार्गदर्शक के रूप में ही पाया था उन्हें…

माँ ने कहा, मै भी चाहती हूँ कि मेरा बेटा ज़माने के साथ कदम से कदम मिला कर चले, किसी से भी पिछड़ कर नहीं,

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मै तुमसे गलत काम करने को कह रही हूँ। लेकिन जो भी करो अपने से समझ कर करो। अपने दिमाग का इस्तमाल करो। आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल ना हो। किसी ब्यसन के अधीन न हो। कोई अपने इशारे पर तुम्हे चलाये, ऐसा मत होने दो। मै जानती हूँ कि उस समय मन को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन तुम्हे सही निर्णय लेने की समझ होनी चाहिए।तुम्हे अपने आप पर भरोसा करना सीखना होगा।फिर तुम कभी भी गलत काम कर ही नहीं सकोगे। मै हर समय तुम पर निगाहें तो नहीं रख सकती। इसीलिए तुम्हे परिपक्व होना बेहद जरूरी है।

अपना भला बुरा जानना हैI मैंने तुम्हे इसी तरह से पाला है। अगर इंसान ना चाहे तो कोई भी उसे गलत राह पर घसीट नहीं सकता। अपना दिमाग खुला रखो। तुम्हे हमेशा गलत रास्ता अपनी ओर बुलाएगा। हो सकता सही भी लगे तुम्हे लेकिन निर्णय तुम्हारा ही होगा, उस समय क्या सही है क्या गलत..? एक गलत फैसला जिंदगी बदल कर रख देता हैI बड़े ध्यान से सब सुनने के बाद वह सोने चला गया। लेकिन नींद न माँ की आँखों में थी और न ही बेटे की क्यों दोनों ही जानते थे कि नियंत्रण में रहना, इतना आसान नही होता .

अगली सुबह नहा धो कर तरो ताजा होकर अपने आपको पूर्ण रूप से संयत कर चल दिया वह कॉलेज की ओर, सोचता जा रहा था कि कितना भी कहे पर, वह गलत काम न करेगा। सिर्फ पढ़ाई पर ही ध्यान देगा। उसे अपनी माँ का सपना पूरा करना है। इस तरह सोचता हुआ, अपने आपको तैयार करत हुआ पहुंचा। उसे देखते ही फिर से, स्वयं को कूल कहलाने वाले लड़के उसके पीछे पड़ गये। तरह तरह से उसको प्रलोभन देने लगे। वह ना ना करता रहा। बार बार माँ की कही बाते याद करता रहा, लेकिन अंत में रोक न सका और फिर से उसने वही गलती की..

घर गया तो देखा, माँ इन्तजार कर रही थी। वो चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो गया। माँ बिन कहे ही समझ गई कि आज उसका बेटा एक बार फिर कमजोर पड़ गया। मन का शैतान एक बार फिर हावी हो गया ।

मन में गुस्सा तो बहुत आया माँ को, पर अपने आपको संयत किया और शांत दिमाग से सोचने लगी कि कैसे इस समस्या का समाधान खोजे। कैसे बेटे को सही दिशा की ओर मोड़ा जाए। सहसा उठी और बेटे का हाथ पकड़ उसे अपने साथ लेकर घर से बाहर की ओर जाने लगी, बेटा डर गया कि कहीं माँ गुस्से में मुझे घर से बाहर तो नहीं निकाल रही है, परन्तु माँ ने टैक्सी पकड़ी ओर कुछ देर बाद माँ बेटा एक अस्पताल के बाहर खड़े थेI वह समझ ही नहीं पाया कि माँ उसे वहां क्यों लेकर आयी हैI उसने पूछना चाहा पर आवाज गले में फंसी ही रह गईI

ऊपर जाकर माँ ने दिखाया क्या अंजाम होता है इन सबके बाद ..इतनी तस्वीरे कैंसर से पीड़ित लोगो की, दिल दहलाने वाली ..

कैंसर वार्ड में एक के बाद एक लोगो की हालत देख कर मन भर आया, आँखे चौड़ी होती गई, दिमाग में जैसे घंटियाँ बजने लगी। उसने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है .इन सब का अंजाम. ये भी हो सकता है। वह तो बस कूल दिखने के लिए ..ना ना अब नहीं, वर्ना अगर दिमाग पर छा गया तो बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा। इस तरह सोचते हुए

आज पहली बार मन में पक्का इरादा किया। सोच लिया अब मन को ढीला न पड़ने देगा। कोई कितना भी बहकाए उसे, वह न बहकेगा। बस फिर क्या था ..

"मन के हारे हार मन के जीते जीत"

वह दृढ प्रतिज्ञ होकर कालेज गया, फिर से दोस्तों ने देखते ही उसे खींचने की कोशिश की, लेकिन इस बार न तो वह घबराया और न ही मन को डिगाया उसने,अपने मन पर विजय हासिल जो कर ली थी। पुरे दिन वह अपने आपको बहुत हल्का महसूस करता रहा,मन भी पढ़ाई में रम गया। कब शाम हो गई, पता ही नहीं चला घर पहुँच कर देखा माँ, आँखों में कुछ सवाल और चेहरे पर चिंता की रेखाओं के साथ द्वार पर माथा टिकाये खड़ी थी। उसने हँसते हुए कहा बड़ी जोरों की भूख लगी है माँ कहाँ खो गई । माँ को ऐसा लग रहा था, जैसे आज मुद्दतों बाद बेटा घर लौटा हो