सम्पति / रघुविन्द्र यादव

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"अरे अंकल आप कब आये कनाडा से?"

"पिछले सप्ताह ही आये हैं।"

"आंटी कैसी हैं?"

"दवा खा लेती है, इसलिए जिन्दा है। खाना पीना तो उसका लगभग बंद है।"

और आप? "

"मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल है, शुगर काबू नहीं आ रही इसलिए एक आँख चली गयी है।"

"फिर आप विजय भैया के पास ही क्यों नहीं रहे, वापस क्यों आ गए?"

"बेटा, यहाँ अरबों की सम्पत्ति है मेरी। जमीन ठेके पर देनी होती है, मकानों दुकानों का किराया लेना होता है। अब यह सब कौन करे? विजय तो आता नहीं, इसलिए चले आये।"

"अंकल, बच्चे आपने दूर भेज दिए, खा पी आप नहीं सकते, फिर इस दौलत का क्या करेंगे, किस दिन काम आएगी?"

"बेटा, यही बात समझ आ गई होती तो आज न इतनी सम्पति होती और न इतने रोग।"