सरकार और शराबी इसे न पढ़ें / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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सरकार किसी की भी हो, सरकार सरकार होती है। सरकार सारे सामाजिक सरोकार, मानवीय गुण, नैतिक जिम्मेदारी इन सभी से मुंह मोड़ सकती है। सरकार सब कुछ कर सकती है। जो उसे नहीं करना चाहिए। सरकार वो भी कर सकती है। जो उसे करना चाहिए, उसे नहीं भी कर सकती है। सरकार भले ही जनता की है, जनता के लिए है और जनता द्वारा है। पर सरकार जनता के कल्याण को छोड़कर जनता को खाई में धकेलने वाले काम भी कर सकती है। सरकार का अपना कोई डंडा नहीं होता। लेकिन वह दूसरों के कांधे पर चढ़कर दूसरों के ड़डों से जनता को हांक सकती है। सरकार गोलियां भी चलवा सकती है। जेल भी भिजवा सकती है। सरकार नजरबंद भी करवा सकती है। सरकार चाहे तो जबरन कुछ खिलवा सकती है। जबरन कुछ छिनवा भी सकती है। जन हित का सहारा लेकर जनता का कुछ भी ले सकती है। सरकार सरकार है। जिसका कोई नहीं होता उसकी सरकार होती है। सरकार माई बाप होती है। सरकार किसी को कुछ भी दे सकती है। सरकार किसी से कुछ भी ले सकती है।

सरकार सर्वेसर्वा है। तारणहार है। अन्नदाता है। आततियों का आतंक कम कर सकती है। आतताईयों को संरक्षण भी दे सकती है। डाकूओं से डाकूगीरी छुड़वा सकती है। भले नागरिक को डाकू भी बना सकती है। सरकार समता ला सकती है। समता पर विराम लगा सकती है। सरकार बच्चों को पैदा होने से रोक सकती है। सरकार गर्भ में ही भ्रूण हत्या करने की छूट दे सकती है। सरकार पतियों को सलाखों के पीछे भी पंहुचा सकती है। सरकार अपनी आय बढ़ाने के लिए कुछ भी कर सकती है।

एक उदाहरण खोजने पर कई मिल जाते हैं। सरकार ने समय-समय पर जनता के जन विद्रोह को बगावत करार दिया है। आंदोलनों का दमन किया है। स्थिति बिगड़ने से पहले कुंभकर्णी नींद सोना सरकार की आदत है। लेकिन कुछ मामलों में सरकार बहुत फुर्तीली होती है। जहां भी राजकोष बढ़ाने का कोई मौका मिले, वहां सरकार कुछ नहीं सोचती। आगा-पीछा भी नहीं देखती। सरकार राज कोष बढ़ाती है तो मनमाने ढंग से उसे खर्च भी कर सकती है। सरकार किसी को भी गाड़ी, बंगला और जमीन भी दे सकती है। देकर वापिस ले सकती है।

अब देखिए न। कहीं चोरी हो जाए, कहीं आग लग जाए, कहीं सड़क दुर्घटना हो जाए। पुलिस काम तमाम होने के बाद पंहुचती है। कहीं लूट हो जाए, सेंध् लग जाए, वहां भी पुलिस पंहुचती नहीं। लेकिन इन दिनों पुलिस ज्यादा सक्रिय हो गई। पुलिस किसकी है। पुलिस किसके लिए है। हमारे लिए? नहीं। पुलिस सरकार की है। सरकार के लिए है। अब सरकार की चिन्ता शराब के ठेकों की सुरक्षा व्यवस्था की है। शराब पीने वाले ठेकों को कोई नुक्सान नहीं पंहुचाते। जिन्हें शराबियों से कष्ट होता है अथवा जिनके घरों में शराब पीने से कोहराम मचा रहता है, वे शराब के ठेकों को बन्द कराने के लिए विरोध् प्रदर्शन करते हैं। शराब के ठेके में जाकर दुकान बंद कराते हैं। अब शराब की दुकान बंद होगी तो शराब बिकेगी नहीं। शराब बिकेगी नहीं तो पिफर सरकार की आय कैसे होगी। अब सरकार की आय नहीं होगी तो सरकार के कारिन्दे कैसे मौज उड़ायेंगे।

आजकल कलक्टर का एक काम प्राथमिकता पर है। कलक्टर कहीं का भी हो, वह फोन पर क्षेत्रा के डी.एस.पी. को कहता है, ‘ठेकों की सुरक्षा व्यवस्था में कोई कोताही न बरती जाए। कम से कम अनिवार्य रूप से चार पुलिसकर्मी लगा दिए जाएं। किसी भी शराबी को शराब खरीदने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए। शराब विरोधियों को 500 मीटर की दूरी से अलग रखा जाए। शराबी को शराब पीने से रोकने वालों की सूची बनाई जाए। जिन्हें गुण्डा एक्ट के तहत कार्यवाई के लिए बख्शा न जाए। जो शराबी घर जाकर शराब पीना चाहे तो उसे सुरक्षित पंहुचाने की व्यवस्था की जाए।’

अब कलक्टर को कौन समझाए कि गली-गली और गांव-गांव में ठेके खुले हैं। पुलिस बल कहां-कहां तैनात कर पाएंगे। पर कलक्टर का कहना है कि शराब से करोड़ों की आय सरकार को होती है। करोड़ों रूपएं विकास में लगाएं जाते हैं। आज के दौर में राष्ट्र का विकास मानवों से नहीं रूपयों से होता है। आज किसी को कुछ नहीं चाहिए पर पीने को चाहिए। कलक्टर भी क्या करे। सरकारी नीतियां ही ऐसा करने को कहती हैं। सरकारी नीतियों को क्या कहें। वे भी तो सरकार जन हित में बनाती हैं। ये शराब को कोसने वालों को कौन समझाए। शराब का पौराणिक महत्व है। ऐसा कौन सा काल है। ऐसे कौन से देवगण हैं, जिन्होंने शराब का कभी विरोध किया हो। अवतारियों को ले लें, उन्होंने भी तो आतताईयों को मारा। पर शराब का विरोध नहीं किया।

सरकार को कोसने वाले भी निठल्ले होते हैं। कुछ काम नहीं है तो सरकार की आलोचना करने लगते हैं। अरे। इस देश के महान नागरिकों शराब के उन्मूलन की दवा तो उस हर एक व्यक्ति के पास ही है, जो शराब पीता है। जब तक वो ही इस शराब को न पीने का संकल्प नहीं लेगा, तब तक शराब का सेवन चलता रहेगा। मद्य निषेध विभाग भी है। आबकारी विभाग भी है। उधर सरकारी लाईसेंस प्राप्त दूकानें भी हैं, जहां शराब मिलती है। अब शराब न पीने का संकल्प किसी राजनीतिक शपथ की तरह थोड़े ही ली जाएगी। जो कभी भी चलन से बाहर की जा सकती है। शराब न पीने की शपथ भी अन्तरात्मा से लेनी पड़ती है। अब यह आंकड़ा किसी के पास नहीं है कि कितने शराबियों ने शपथ लेकर उसका अक्षरशः पालन किया होगा। शराबियों की शपथ तो हर सुबह ली जाती है और शाम ढलने से पूर्व तोड़ दी जाती है। ये तो शराबियों के अंतःकरण की बात है कि वे शराब कब छोड़ेगें। हम-तुम और सरकार उनका क्या उखाड़ लेगी।